पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/५९३

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तिमत्तर दिन सपने में उस ऋषिने दर्शन दिया और उनके शव नदोके रूपमें वह चला । यही नदी पूर्वोक्त अभिषेक-जनके चरितके कुकर्मों के लिये मृदु तिरस्कार करते हुए कहा, माथ मिल कर पहले पचनायोगदमें गिरो है, पोछे इमोके समो कर्म दोषसे अापने अब तक पुत्रमुख दर्शन नहीं जलसे कावेरी नदोको उत्पत्ति हुई है। किया है। बाद त्रिशूलीने इमके लिये प्रायश्चित्त करने- त्रिमन्दो उत्सव के समय वाहक स्कन्ध पर मात स्वतन्त्र को यो विचारा--"मोहमद में पड़ कर शैशवकालमें स्थानों में लाये जाते हैं। कहते है कि रन मात खामोंमें ऋषिको खाने के लिए मैंने जो पत्थर भिक्षामें दिया था, मात ऋषि गुलभावसे तपस्या करते हैं। उनीको दर्शन अभी मुझे वही भोजन करना उचित है।" ऐमा स्थिर देनेके लियेगी ऐमा किया जाता है। प्राचीनकाल में कर वे अन्यान्य खाद्य त्याग कर छोटे छोटे पत्थरके टुकड़े सूर्यवंशोय महाराज सुरथ इस उत्सवमें बहुत रुपये खाने लगे। उनका नाम शिलासरण (शिलाभक्षक) खर्च करते थे। तन्नोर तालुक बोर्ड के निरीक्षण में यहां पड़ा। प्रायश्चित्तसे मन्तुष्ट हो कर भगवान्ने अपना दर्शन एक संस्कृत हाईस्कल है। इसके सिवा एक वैदिक- दिया और कहा, 'जमोन खोदने पर एक ब स और स्कल और एक घंगरेजी हाई स्कल भी है। उममें एक शिव मिलेगा।' वैमा भो हुपा । त्रिशूलीको तिरुवरङ्ग-दक्षिण-आकट जिले में कल्पकुचि शहरसे जो बच्चा मिला, उसका मनुष्थ -सा शरीर और गौसा मुख १० कोम दक्षिण पूर्व में प्रवस्थित एक स्थान । यहाँ एक था। शिशुको पा कर त्रिशूलोने उसे महादेवके नाम प्राचीन विष्ण मन्दिरमें बहुतमो शिलाम्लिपियां पाई पर अर्पण कर दिया। महादेवने उसे अपने अनुचरी- जातो है। का अधिनायक बनाया। सोका नाम था तिरुनन्धि वा तिरुवरम्बर-चिशिरापलो जिले में तमोरके रास्ते पर विनन्दी । जो शिवजीका बाहम कह कर प्रमिक है। 8 अवस्थित एक स्थान। यह विधिरा पनो शहरमे ३ ऋषिको बहन के साथ विनन्दोका विवाद हुआ था। कोम पूर्व और उत्तर में पड़ता है। यहां एक रेलवे विनन्दोको प्रमथाधिपत्व-दानके समय जब अभिषेक स्टेशन है। इसके पाम को एक ऊंचे पहाड़के अपर होता है. तब उनके मस्तक पर शिवके हस्तस्थ एक सुन्दर शिवमन्दिर है । दूरसे इस मन्दिरको शोभा कम लुका जल, शिव के मस्तकस्य गङ्गाजल, शिववाहन अपूर्व दोख पड़ती है। इसको दोवारमें बहुतसे वृषभके मुखका जल और चन्द्रमासे अमृतधारा गिरती है, शिलालेख मिलते हैं। इस स्थानका दूसग नाम त्रिमन्दीके मस्तक परसे यह चार प्रकारका अल गिर कर एकम्बखर है। नदोको धागके साथ एक गहरमें जमा हो जाता है। लिवल-विवाह गज्यका एक स्थान जो कुईलन शह इमी गारमें वर्तमान पञ्चनाली सरोवर है। वत्त मान से १७ कोस उत्तरमें ५. वस्थित है। यहां एक पति शियाली शहरके समीप प्राचीनकालमें इन्द्रका एक प्रिय प्राचोन मन्दिर है। त्रिवन्द्रम् के प्रसिद्ध मन्दिर के बाद हो कानन था। एक बार वर्षा के नहीं होनसे यह बिलकुल इस स्थानके मन्दिरका उल्लेख किया जाता है। सूख गया था। वरुणके अधिकार, जलगशि रहनेक तिरुवल गाड़- सञ्जोर जिले के सियालो शहरसे ३ कोस कारण इन्द्र इसका कुछ भो प्रतोकार कर न सके । बाद दक्षिण-पूर्व में अवस्थित एक ग्राम। यहां एक प्राचीन नारदन पा कर उनसे कहा, 'पथियम् नामक पर्वत- शिव-मन्दिर है, जिममें बहुत से शिलालेख खुदे हुए हैं शिखर पर अगस्त्य ऋषिने कमण्डलुमें गङ्गाजल रख छोड़ा और यहां के कन्तमऋषि के मन्दिर में एक ताम्रगामन है। है। यदि पाप पिशिहर नामक देवताको महायतासे निस्वलन रि-तोर जिले के कुम्भकोणम् तालुकका एक उस जलको चुरा लावें तो पापकी पच्छा पूरी हो. इन्द्रने स्थान । यह कुम्भकोणम् शहरसे डेढ़ कोस दक्षिण पश्चिम में वैसा ही किया। पिशिहर गो-मूर्ति धारण कर कमगढ़. प्रवस्थित है । यहां एक प्राचीन शिवमन्दिर है जिसमें लुका जल पोने गये । अगस्त्यने मामान्य गो जान कर उमे बहुतमे उस्कोण शिलालेख पाये जाते हैं। यह मन्दिर हटा दिया। ऐसा करनमें कमण्डलु उसट गया भोर जल अत्यन्त हहत् पोर सुन्दर गोपुर विषिष्ट है। Vol. Ix. 146