पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/६४७

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का बीज । भारतवर्ष में सोसोके पौधेसे तीसोका है, तब वह काट लिया जाता है पोर तोसो उसमें चैव , बोज, बोजसे तेल और खरी वा खम्लो बनती है। इस देश- मास तक लगो रहतो । दियारको जमोनमें तोमो अधिक में तीसोमे रेशे नहीं निकालते हैं, इस कारण बोज बहुत होतो है। गेई, चने, सरसों वा खेसारोमें इसे मिला पतला बोया जाता है । पतले पौधेमें टहनियां और फल कर बोते है अथवा बिना किसी दूसरे पनाजमें मिलाये बहुत निकलते हैं। फूल झड़नेपर छोटो धुडिया वंधती भी यह बोई जाती है, जो खेत बहुत गहरा जोता गया हैं। पन्हीं घुडियो में बीज रहते है। यरोपमें केवल रेशे. हो, उसमें तोसी पच्छी नहीं उपजती है। तोसी बो कर का ही पादर अंधिक है। इस कारण वे बहुत घना बोज खेतको चौरम कर देना अच्छा है। पहली फसल बोई बोते है, जिमसे पोधोंमें टहनियां न निकले और पौधे भी जाने के बाद खेत में एक बार हल चलाया जाता है; बड़े हो। भारतवर्ष में खेतोके दोष वा गुणसे तोसोका पोछे तोसी दो कर दो बार चो को देनी पड़तो है। यह दामा पतला और मोटा हुषा करता है तथा रंग भो फसल पाखिन पौर कार्तिक माममें बोयी जातो पौर कई तरह हो जाते हैं। तोसो सफेद और लालरंगको चैवमें काटो जातो है। कंवल सोसो बोने में प्रति बोचे होती है। खेतोको प्रणाली पौर जङ्गली गुणमे लान ३ सेर पोर मिलाकर बोनमें १॥ मेर बोज लगता है। तोसोके भी फिर कई भेद हैं जिन्हें केवल महाजन लोग सिफ सोसो प्रति बोधे २ मन उपजती है। गङ्गाके ही पहचानते हैं। किनारे रमको फसल अच्छी लगती है। फसल पच्छो __ सफेद तोसोका बोज लाल सोसोके बीजसे पुष्ट और सरह पक जानेके पहले हो से जड़से काट डालते है। बोजका छिलका पतला होता है। इससे तेल भी काफो शासबादमें यह जी, मसुर प्रादिके साथ मिला कर निकलता है। इसका छिलका (भूसी) भो एक बोई जातो है। युतप्रदेश और अयोध्याके सभी जिलों में और खाटु होता है। मफेद तोसी गेह और चनेक इसको खेती होती है। काश्मोरके पश्चिमाधम भी यह मोसमें बिकता है। जबलपुरमें इस प्रकारको तोमी कम नहीं उपजती है। इसका तेल उस देशमें बहुत बहुत उपजतो है। नर्मदाके दक्षिण में इस तोसोको वास होता है । मन्द्राज और ब्रह्म देश में इसकी खेतो व्यवहार अधिक है। जबलपुरको सफेद तोसो दूमरे प्रायः नहीं के बराबर समझना चाहिये। बम्बई प्रदेश में देशमें उपजानेसे लाल हो जाती है। भो इसका खूब पादर है। पूना, शोलापुर, नासिक, बहुत वर्षा होनसे तोसो नुकसान हो जाता है क्योंकि खानदंश, अहमदनगर, गुजरात पादि खानों में भी यह इसके पत्त में गोटोमा दाग पड़ जाता है, इसीसे प्रायः कुछ कुछ उपजायो जाती है। मध्यभारत पौर बरारमें प्राधेसे अधिक पौधे नष्ट हो जाते हैं। इसके सिवा इसमें कुछ अधिक होती है, हैदराबादमें भी कम नहीं उपजतो। और भी कई तरह के कीड़े लगकर इमका सत्यानाश तीसीका तेल । बौजको पुष्टि और श्रेणीके पनुसार कर डालते हैं। इसके तेलका परिमाण जाना जाता है। पुराने बीजसे बङ्गालके मध्य वर्ड मान-विभागमें सर्वत्र इसको नये बोजमें तथा पतले दानसे मोटे दानेमें अधिक तेल खेती नहीं होती है। दियागको तोमो अच्छो होतो है। निकलता है। कमसे कम s४ मेर बोज१ सेर तेल पाया हल्की तथा पङ्गमय जमोन तोसोको खेतोक लिये उपयोगी जाता है, किन्तु दाना अच्छा रहनसे २ सेरमें एक मेर- है। कड़ी महोमें तोमो नहौं उपजतो । तासोक खेत- तेल निकलता है। शाहाबादमें यह तेस्त दोयमें व्यवाहत का पानो अच्छी तरह बाहर निकाल देना अच्छा है ; : होता है। जलाने के समय इस तेलसे धुषा निकलता क्योंकि खतम पानो के रह जानसे रमका बहुत नुकसान है। विलायतसे जो तोसोका तेल रस देशमें पाता है. होता है। जिस खेतका पानी सूख गया हो तथा वन विशज होता है और रंगसाजो तथा लिथोके छापेको जिसमें धानक पोध नगे ही हो, वैसे खेतमें प्रति बाधे स्याहो बनाने के काममें भाता है। इसके सिवा उस तेलमें ७२ मेर तोसो बोई जाती है। पन्तमें जब धान पकता. मुखानिका गुण पधिक है। किन्तम सोगोंके देशको