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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७१६

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सूफान वेग प्रवाहित होतो है एवं बमो कमो क्षणमात्रमें पृथ्वी यदि निवला होतो पौर सर्वत्र समान उत्तल अधिक दूर तक विस्तृत स्थानके वृक्षाको उन्म लित, होतो तो वायुमण्डलमा निश्चल होता तथा वाय - मकानावा शिव भित्र, उद्यानोको तहम नरम, नव प्रवाह होता नहीं, किन्तु वास्तवमें ऐसा नहीं है। पादिको भग्न और यानवाहनादिको किन भिव कर एवोके गोलख हेतु निरपरेखाके उभय पायवर्ती डालती है। दम वेगवान वायुमगड-न को लोग सफान मितनेनो स्थानो में लम्बरूपसे पंसित होता है, सुतरा कहते हैं। हिन्दुओंके पुराणादि ग्रन्याम ४८ पवनों का दोनों मेरुप्रदेशको अपेचा निरवंदेश पधिक उत्तम होता उल्लेख है। वे पवन कभी कभी एक एक पोर कभी है। इससे निरवदेय भूपृष्ठम लम्न वायु राथि भो कभी सब मिल कर तूफान पंदा करते हैं। चोनः उत्तम होने के बाद लघु हो कार अपर उठ जाती है एवं अधिवासियों का विश्वाम है कि टाइफन (किजय पाववर्तीको अवा योतल वायु पा कर उसका स्थान अर्थात् तूफानको अधिष्ठात्रो देवो भनेक मन्ताम) पूर्ति कर देता है। म.प्रकार पृथ्वी पर नियत कभी कभी भित्र भिव दिशा में आनेवाले तफान उत्तर भोर दक्षिण प्रदेशसे वाय गपि निरचदेशको कपो अपनो सन्तानको ले कर क्रोड़ा करतो है, वही घूर्ण पोर तथा वाय सागरके अपरा. भागमें निरक्षदेवसे वायु पश्वा टारफुन है। वाय राशि दोना मेरुप्रदेशको पोर प्रवाहित होतो है। सूफान जैसा उत्पात मचाता है उसमें पहलेहोसे पृथ्वो यदि निश्चला रहतो तो वाय राशि ठोक उत्तर पोर सावधान ररने पर बहुत अनिष्टसे बच सकते है। यरोप- दक्षिणाभिमुख बहतो, किन्तु पृथ्वो मेरुदण्ड के जपर के पण्डित वायुमान-यन्त्र हारा पनेक तफानको सम्भा- पश्चिम पूर्व को शेर वेगसे पावसन करतो है, सुतरा वना निश्चय करते हैं। पहले सभी देशों में कितने लक्षण- भूपृष्ठका वाय प्रवाह ठोक सरलतामे नहीं पाता। इसो को तूफान के पूर्व लक्षण बतला बर विश्वास करते थे प्रकार निरषदेयके उत्तरभागमें वाय प्रवाह ठोक उत्तर संथा उसोके हारा तमाम और दृष्टिका निर्णय करते थे। से नहीं पा कर उत्तर-पूर्व दिया तथा निरक्षके दक्षिण- उदय और अस्तकालमें सूर्य को कान्ति, मेघका वंगा भागमें पूर्व दक्षिण से पाता है। किन्तु भूपृष्ठ पर स्थल और वायुको गति प्रादिके हारा अब भी अनेक तफान और जलराशिका असमान संस्थान, सुदोर्थ पोर पत्यु च पोर दृष्टिको मन्भावना की जाती है। सार यस कि पताक अवस्थान इत्यादि कारणले वायु राथि उता ये सब नितान्त पमूलक नहीं है। समस्त नियमों के बावर्ती न हो कर अनेक स्थानों में वायु और प्रलय शम देखो। परिवतन हो जाता है। इसी प्रकार वाणिज्य वाय, यूरोपीयों के प्रयाबसे पृथ्वीके प्रायः सभी स्थानों में मोसम वायु ( Monsoon ) प्रभृति वायुप्रवाह उत्पन वायुकौं गति और दाम-निण य, दृष्टिपरिमाण प्रभृति होता है। इनका विस्तृत विवरण वायुप्रवाह तथा तत्तत् विषय देखने के लिए यन्वादिषाविष्क्षत हुए है। इन शब्दमें लिखा जायगा। यन्त्रको महायतामे तथा प्राकतिक विज्ञानादिके द्वारा किसो स्थानको वायु किसो कारणसे उत्तम होने पर उन्हों ने तूफान के प्रक्षततत्त्व, उत्पत्ति, गति, विस्तार विस्टत होतो है सुतरा लघु हो कर जपर उठ जातो है पोर पूर्व सूचना आदिको माल म किया है। किन्तु अब तथा चारों पोरसे वायुराशि इस स्थानाभिमुख दौड़तो तक सब स्थानो के वायविक परिवर्तनादिको तालिका है। ये समस्त विभिनमुखो वायु एकान मष्ट हो कर पर्याप्त रूपसे प्राप्त न होने के कारण इनका सूक्ष्म तख घमतो हुई गमन करतो है, सो धायमान वायुको अचान्तरूपसे प्रदिपादित नहीं हुआ है। यूरोपके घावायु कहते हैं। इसका व्यास कभी कभी कई विहानों ने बहुत परिक्षामों के हारा तूफानको उत्पत्ति गजका हो जाता है। उस समय यह अस्वल भूभागके मालतिक गति, और व्याशि प्रमृति जिस प्रकार निर्धारण अपरमे धमतो ही भोषण वेग से गमन करतो को', उसका मूल मम नोच लिखा जाता है किन्तु कभी कभी इन समस्त वर्षबाबा बास