पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७३०

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७२ तपसन्द (पु.) वृमिव सदति स्कन्द-पच तणावत (म. पुनरावत यति मायेति या-कृत- वृषवत् चल स्वभावयुख, जिसका स्वभाव हणमा गाच पक्षागबारूप वातसमूतपूर्ण वाकुलवंडर। चंचल हो। ___२ कमरान एक देवका नाम । एक दिन भने तपस्यपरिवा (सं० पु० ) जैनधर्मानुसार मुनियों के लिए इसे बोलपको मारनेके लिये गोकुल मनाया। नवात पावश्यक पालनोय बारस परिषहोममे एक मार्ग चलते (बवंडर का रूप धारण कर इसने गोक्षसमें सरल ममय काटे या कार पाहिले चरण बिड होने पर भी मचा दिया। धूप सबोंको चाबन्दी गई मुनिगण मशको वोतराग भावसे सहन करते है, तथा हमके घोर गमसे सब दिखाएं गूंज उठी थो। उसे दूर करनेका कोई प्रयास नहीं करत। सोका यापसुर बासका को कुछ जपर भो ले गया था। माम तृणमय परिवह है। वहां बोहणतने भारो हो गये कि भूरिभार बहन हाडम्य (स'• पु० को. ) वृणाच्छादितो हमेतब करना सके लिये दुसाधो गया । धार धोरे वायुवेग युक्त पालिका, वह पटारी जिसके अपर खड़का घर घटने लगा। इससे उस दैत्यको श्रीक्षण पौर भो पर्वत. बना पाये। के समान माराम पड़ने लगे। बोक्षण उसका गला वृणाधिप ( पु.) वरूपः पड हिपः। मन्यामक पकड़े हुए थे। इस कारण वह उन्हें छोड़ भो नहीं हण, एक प्रकारको धाम। सकता था। अधिक समय तक गला पकड़े रहने वणाम्गि (सं• पु० ) समाजातः । पग्निः । ता पनि , कारण वाटाशून्य से गया और उसकी दोनों पाखें चास कसकी आग, करमोको पाँच।। बाहर निकाल पाई। पोछे वा भव्यक्त शब्द करता एमा वणाचन (म'• पु०) ग्रामिव पचनः। कलास, गिर गतान होकर बोलनको साथ लिये अजमें गिरा। गिट। पाकायले शिक्षा पर गिरने के कारण तणावत की हडो हणाटवो ( स्त्रो०) प्रचुरा पटवो । हणमय वम चूर चूर हो गई और बौं पनालको प्रास हुपा।। तणाव ( को० , वरीषु पाठ य । पर्वतजात वण, (भाग. १०७०) वह घास जो पहार पर उगो हो। . तुपावडोतोय (म• को०) नोर्थ विशेष, तृवामन सोध । बषादि (स.पू.) वृक्षको पादिमें रख कर प्रत्यय तृणासज (मो .) तुषु परमिक रसात्वात्। तुष. निमित्त पाणिनि-उमा गण विधष । यण, मह, मुल, वन, कुरम, रोपिस घास। पर्ण, वर्ग, विल, पूल, फल, पर्जुन, पर्व, सुपर्ण, वश, तलामा (स.लो. , तुणविशेष, एक प्रकारको पास। परण, बसुये वृषादि।(पाणिनि) तृणेशु ( पु.) तुमिछुरिव मधुररसवात्। वयना, सागबागे। गुलाब (सं० को) तपस्य बल धान्यस पर्व। सन्त्रि तपेन्द्र (स• पु०) तथा इन्द्रय । तृणराज, ताड़का पेड़। चावलका भात। घृषीतम (० पु०) तृणे उत्तमः। उखवंस तृण, जखम वणाम ( को०) विमल, पवनी तोयं । बास। । हषास( को०) तणेषु पमालवण , मोनिया, पम तुणात्य ( को०) तृणकाम रोशिस पास। सोनो। तृषालय (स. पु. ) हणेषु जति पद भूप। १ सवारणिन्याय (म.पु.) न्यायभेद, और तब परमा मोवार धान्धमद, सोनी धान, पस हौं। ५ तुमजात सतम्स कारणके समान अवस्था। यो तो पब्लिक पनि पास फूसको पाग। (वि.) ३ हपजात मात्र, पंदारीने में बण और परण दोनों कारण घर परमेर जो केवल घाससे उत्पब एषा हो। निरपेचपर्धात् पलग अलग कारण। परणिले पनि तृषालुप (सं.की. ) उसप तुष, एक प्रकारको पास। उत्पनीका कारण दूसरा और वम पनि लगानिक पीला ( सो.) माता सका। तृपजा का पार कसबी मशाला