पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष नवम भाग.djvu/७५२

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७४० वैवट-सेवार (तैयार) . तिवट(हि.सो.) सात दोघं अथवा १४ लघु माताओं- पत्थर पर ग्वोदो हुई है। शय्या पर एक पुरुष-मूति का एक साल। सोई हुई है, जिसका दाहना घुटमा उठा हुआ है और तेवन (म.की. ) नव भावे न्यु ट । १ कोड़ा, खेल। उस.पर बायाँ हाथ र वा हुआ है । दहिना हाथ सिरके २ केनिकानन, प्रमोदकानन । अपर है। मूति के चारों बगल बहुतमो मनुष्य मूर्तियाँ तेवर (शि०५०) कुपित दृष्टि, क्रोधभरो मजर। म कुटी, हाथ जोड़े खड़ा हैं। मिर के निकट हाथ जोड़ हुई एक भौह। स्त्रो मुर्ति बठो है और परकं नाचे पुरुष-मूर्ति खड़ा तवरमो ( हि'. स्त्रो० ) १ ककड़ी । २ वोरा । ३ फट । है। इपक भो पोछे शिलालेखको दो पालियां , किन्तु नवग (हि.प.) दूनमें बजाया हा रूपक ताल। उनके अक्षर प्राय: लुम हो गये हैं। मोई हुई मूर्ति का तेवरना (जि. क्रि० ) १ चममें पड़ना, सन्द हमें पड़ना। आकार पुरुषकार होने पर भी ग्रामके लोग उन्हें त्रिपुरा २ विस्मित होना, पाथर्य करना । ३ मूच्छित हो जाना, देवो कहा करते हैं। और भी एक पुत्तलिकाको प्रतिमा वेहोश हो जाना। है। ये कुम्भोर पर चढ़ी हुई चार हाथवालो देवो मूति' तवरी (हि.सौ. ) त्यारा देगे। हैं । स्थानीय मनुष्य "नर्मदा माई" नाम पुनको पूजा तेवहार (हिं. पु. ) त्यौहार देखो। करते हैं। शायद यह किमो प्राचीन मन्दिरको गङ्गाको तेवार (तयार ) मध्य भारतका एक छोटा ग्राम। यह प्रतिमा हैं। इसके मिवा शिव, कृष्ण और भैरवादिको जब्बलपुरमे मील प्रथिम, बम्बई के रास्तं पर अवस्थित मतियां भी हैं। एक बड़ा गिन्ना पर उन्लंगिनो गोपियोसे हैं। यहाँक अधिकांश अधिवासी पत्थर काट कर अपनो घिरो हई वंशोबदन कणको मूर्ति क्या हो खूबोमे जीविका निर्वाह करने हैं। प्राचीन नगर करण वेलक खोदी हुई हैं। ध्वंसावशेषमे तथा मन्दिरोमि हो ये लोग पत्थर काट लात ___जैनों दिगम्बर सम्प्रादायको प्रादिनाथको मूर्ति का है। मगांव पूर्व में बाल-सागर नामक एक सुन्दर शिलाफलक मा विद्यमान है। बड़ा तालाब है। मोढ़ियां चौकोन पत्थर और लोहको करणबेल और ते वार ग्राम बहुत प्राचीन कालसे बनी हुई है। सालाबके बीच में एक छोटा होप है। उम इतिहास पुरणादिमें मगहर है। इन दोनों ग्रामका होप पर एक प्राधुनिक मन्दिर विद्यमान है। गाँवर्क प्राचीन नाम त्रिपुर नगर हैं, जहां किसी समय चेटि पश्चिम प्रान्समें एक बडे के नीचे कारकार्यविशिष्ट राजाओंको गजधानो थो । कहा जाता है, कि महादेवने बहुतमे छोटे छोटे पत्थरके खण्ड एकत्र हैं। उनमें से जिस जगह त्रिपुरको मारा था, वहो जगह त्रिपुर. नामसे अधिकांश अच्छ दिखाई पड़ते हैं। और बहुतमे टट विख्यात है। नर्मदाक उत्पत्ति स्थलस्थ प्रदेशमें पहले फट भो गये हैं। ये मब पत्थर के खण्ड करणबेल नगरके पोगणिक युगमें प्रवल पराक्रान्त है हयवंश राजा राज्य वंशावशेषसे लाये गये हैं। इस ग्रामके दक्षिण-पश्चिम करते थे। चेदिराज्य भी यहाँ तक विस्टत था। पाव कामको दूरी पर प्राचीन करणबेल शनका खगड हर महाभारत में उपरिचर, शिशपाल, भीमक प्रादिक नाम अवस्थित है। एकत्र पत्यमिसे एकमे "वज्वयाणि" | पाये जाते हैं । उपरिचर वसुको गजधानोका नाम महा- बुद्ध मूति खोदी हुई है। वह एक चौकोम पत्थर . पर भारत में नहीं है, किन्तु शुशिनदो के किनारे अवस्थित यो उत्कोण हे । एमके पीछे "ये धर्म हेतु" इत्यादि लिखा ऐग लिखा है। कालक्रमसे चेदिराज्य.दो भागमे विभक्त छपा है । चन्द्रातपके नोचे वचपागि उपविष्ट है। इनके हुआ एक भाग महाकोशल कहलाया जिमको गजधानी बायें बगल वचंधर मनुष्य मूर्ति और दहिने बगन में मांग पुरमें था। दूमरा भाग चेदि नामसे हो मशहर था. हाथ जोड़े हुई एक मनुष्य मूर्ति नीचे घुटने के बल बैठो . और उमको गजधानो वत्त मान तेवारोवा त्रिपुर नगरीमें हर है। बोइमत्रक नीचे एक लम्बो चौड़ो शिलालिपि थो। हेमकोषमें त्रिपुरनगरका दूसरा नाम चेदिनगरो है। इसके अलावा एक दूसरी प्रतिमा भो एक बड़े लिखा है। चेदि माम क्यों पड़ा इसका पता हो