पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३१

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पोमिसरीनोट-पोषितभार्यानायक २ पेगू विभागके प्रीम जिलेकी राजधानी और मदर। प्रोषितपतिका ( स० स्त्री० ) पतिके विदेश जानेसे दुःखित यह इरावती नदीके बाएँ किनारे अक्षा०१८४ उ० और स्त्री। प्रोषितभर्तृका देखो। देशा० ६५ १३ पू०के मध्य अवस्थित है । पिन- प्रोषितप्रेयसी ( स० स्त्री० ) प्रोषितभट का देखो। सुके उनर विख्यात श्वे-सान- पागोदा है। प्रवाद है, प्रोषितभक्त का ( स० स्त्री० ) प्रोषितो विदेशगतो भर्ता कि सात थान सोनेके ऊपर एक मरकत बकसके मध्य यस्याः, समासान्तकप् प्रत्ययः। विदेशस्थ पतिका । गौतम बुद्धके तीन बाल हैं, उसीके ऊपर यह मन्दिर जिस स्त्रीका स्वामी विदेशमें रहता है, उसे प्रोषितभत्तका बनाया गया है। १८६२ ई०में भीषण अग्निसे यह नगर कहते हैं। विलकुल भस्मीभूत हो गया था। "नानाकार्यवशाद् यस्या दूरदेशं गतः पतिः। ईसा जन्मके पहलेसे प्रोमनगर राजधानीरूपमें गण्य सा मनोभवदुःखार्ता भवेत् प्रोषितभत्र्तृका ॥" होता आ रहा है। थ-रे-खेल ( श्रीक्षेत्र ) नगरका ध्वंसा- (सा० ३१११८) वशेष आज भी अभ्यन्तर भागमें दृष्टिगोचर होता है। ___ नाना प्रकार कार्य वशतः जिसका पति दूर देश १ली शताब्दीके शेषभागम थरे-खेत्रके परित्यक्त होनेके गया हो, उस कन्दर्पपीड़िता नारीको प्रोपितभर्तृका बाद प्रोम कुछ समयके लिये आवा और कुछ समयके कहते हैं । प्रोषितभरत का नारीके लिये ह सना, दूसरे घर लिये पेगूके शासनाधीन रहा। फिर कुछ समय तक जाना, समाजोत्सव देखना, क्रीड़ा और शरीरसंस्कार यह स्वाधीन भी था। इसके बाद भारतके बड़े लाट करना वर्जनीय है। डलहौसीने इसे भारत-राज्यकी सीमामें मिला लिया। "हास्यं परगृहे यानं समाजोत्सवदर्शनम् । १८७४ ई०में यहां म्युनिसिपलिटी स्थापित हुई है। क्रीड़ां शरीरसंस्कारं त्यजेत प्रोषितभर्तृका ॥" शहरमें एक म्युनिसिपल हाई स्कूल भी है। यहांका जो। (चिन्तामणि ) अस्पताल है उसका भी खर्च म्युनिसिपलिटी देती है। जिस स्त्रीका पति परदेश गया हो, उसे परपुरुषके प्रोमिसरीनोट-प्रामिसरीनोट देखो। साथ आलाप, केशादिका संस्कार और सब प्रकारका प्रोमोशन ( अं० पु.) १ किसी पदाधिकारीका अपने प्रमोदजनक विषय परित्याग करना चाहिये। पदसे ऊचे पद पर नियुक्त किया जाना, तरक्की ।२ रसमञ्जरीमें लिखा है, कि प्रोषितभर्तृका स्त्रियोंके विद्यार्थीका किसी कक्षा से आगेकी कक्षामें भेजा जाना, : दश प्रकारकी अनङ्ग दशा अर्थात् पतिविषयक चेष्टा होती दर्जा चढ़ना। है। यथा --१ पत्यभिलाष, २ पतिचिन्ता, ३ स्मृति, ४ प्रोम्भण ( स० क्ली० ) प्रकृष्टरूपसे पूरण । गुणोत्कीर्तन, ५ उद्वेग, ६ विलाप, ७ उन्माद, ८ व्याधि, प्रोणु नविषु ( स० त्रि०) प्र-उणु ञ् आच्छादने सन्-उ। ६ जड़ता, १० मृत्यु। पतिके विदेश जाने पर पहले उस आच्छादनाभिलाषी। विषयमें अतिशय अभिलाप होता है, पीछे चिन्ता आदि प्रोणुनाव ( स० पु० ) सन्निपात ज्वरविशेष। उपस्थित हो जाती है। यहां तक, कि आखिरमें उसको प्रोल्लाधित ( स० वि० ) रोगमुक्त । मृत्यु भी हो जाया करती है। रसमञ्जरीके मतसे यह प्रोष (स.पु.) प्रष-दाहे-भाषे घञ्। सन्ताप, बहुत प्रोषितभत्तु का नायिका दो प्रकारकी है, प्रोषितभत्तृ का अधिक दुःख या कष्ट। और प्रोष्यंत्भत्र्तृका । जिस स्त्रीका पति विदेश गया हो प्रोषक (स० पु०) महाभारतके अनुसार एक पेशका नाम। उसे प्रोषितभर्तृका और जिसका पति जानेवाला हो, उसे प्रोषित (स' त्रि०) वस-क्त, इट, सम्प्रसारणं, प्रकृष्टदूरं प्रोष्यत्भत्र्तृका कहते हैं। उषितः। प्रवासगत, जो विदेश गया हो। प्रोषितभार्यानायक (सं० पु०) प्रोषिता-भार्या यस्य प्रोषित- प्रोषितनायक (सं० पु० ) वह जो विदेशमें अपनी पलीके भार्याः तादशः नायकः कर्मधा। नायकभेद। जिसकी वियोगसे विकल हो। पत्नी विदेशमें रहती हो, उसे प्रोषितभार्यानायक कहते हैं। Vol. xv 7