पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२० पोष्यत्पस्नीनायक-प्रौढ़ा प्रोग्यन्पत्नीनायक (संपु०) नायकविशेष । जिसकी प्रोहकरटा ( सं० वि०) प्रोहकरट'इत्युच्यते यस्यां क्रियायां पत्नी विदेश जायगी, ऐसे नायकको प्रोष्यत्पत्नी-नायक मयूरव्यं समासः । करटसम्बोधनक प्रकृष्ट ऊहार्थ कहते हैं। निदेशक्रिया। प्रोष्ठ (स० पु०) प्रकृष्ट ओष्ठोऽस्येति ( ओत्वोष्ठयोः समासे प्रोहकर्डमा ( स० स्त्री० ) प्रोहः कई म इत्युच्यते यस्यां वा । पा ११॥६४) इत्यस्य वार्तिकाक्त्या साधुः । १ प्रोष्ठी- क्रियायां मयूरव्यः समासः। कदम सम्बोधनक ऊह- मत्स्य: सौरो नामको मछली। २ गो, गाय । ३ महा- निदेशकिया। भारतके अनुमार एक प्राचीन देशका नाम जो दक्षिण- प्रोहण (सं० की। प्र-ऊह-ल्युट। प्रोह, तर्क। में था। प्रोापदि (स अध्य० ) प्रोह्यौ पादौ यत्र प्रहरणे द्विद प्रोष्ठपद ( सं० पु० ) प्रोष्ठो गौस्तस्येव पादौ यस्य सः ण्ड्यां समासः इच ततः पदभावः। दो पैरोंसे अच्छी (प्रातसुश्वसूदिवेति । पा ५।४।१२० ) इति अच् प्रत्ययेन । | तरह मारना। साधुः, प्रोष्ठपदो नक्षत्रविशेषस्तद्युक्ता पौर्णमासी यत्र : प्रौढ ( स० त्रि०) प्रोह्यते स्मेति, प्र-वह-क्त, सम्प्रसारणां मासे अण. पक्षे न वृद्धिः। १ भाद्रमास, भादोंका महीना। ततो वृद्धिः । १ वर्द्धित, अच्छी तरह बढ़ा हुआ। २ २ नक्षत्रविशेष, पूर्वाभाद्रपद और उसरभाद्रपद नक्षत्र। 1. प्रगल्भ, पुष्ट, गजवृत। ३ निपुण, चतुर, होशियार । ४ (त्रि. ) ३ गोतुल्य पदयुक्त, गायके जैसा पांववाला। । प्रकरूपसे ऊढ़, यथाविधि विवाहित । ५ जिसकी प्रोष्टपदा ( सं० स्त्री० ) प्रोष्ठो गौस्तस्यैव पादा यासां ततो अवस्था अधिक हो चली हो, जिसकी युवावस्था समाप्ति बहुब्रोहावच पद्मावश्च निपातितः । पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, . पर हो। ६ युवा, जवान। ७ पुरातन, पुराना । ८ उत्तरभाद्रपद नक्षत्र । गम्भीर, गूढ़। (पु०) ६ तान्त्रिकोंका चौबीस अक्षरोंका प्रोष्ठपदी ( सं० स्त्री० ) प्रोष्ठपदाभिर्युक्ता पौर्णमामी अण ; . एक मन्त्र । स्त्रियां ङो । भादमासकी पूर्णिमा। प्रौढ़ता ( स० स्त्री० ) प्रौढ़ होनेका भाव, प्रौढत्व । प्रोष्ठपाद ( सं० वि० ) १ प्राप्ठपदामें जात, जो पूर्वभादुपद प्रौढत्व ( स० क्ली० ) प्रौढस्य भावः त्व। प्रौढ़का भाव उत्तरभादपद नक्षत्रमें उत्पन्न हुआ हो । २ मानवक। या धर्म, प्रौढ़ावस्था। (पु.) ३ पूर्वभाद्रपद और उत्तरभादपद नक्षत्र । प्रोप्ठिल एक जैनाचार्य । आप जैनधर्मशास्त्रोक्त द्वादशाङ्ग- प्रौढ़पाद ( सं पु० ) प्रौढ़ः पादो यस्य । आसनारोपित में पण्डित थे। महावीरको मृत्युके १७२ वर्ष बाद आप | पादतल, पैरके दोनों तलुए जमीन पर रख कर बैठना। १४ वर्ष तक आचार्यरूपमें परिचित रहे। शास्त्रों में इस प्रकार बैठ कर भोजन, स्नान, तर्पण, पूजन, (सरस्वतीगच्छपावली) अध्ययन आदि कार्य करना मना है। प्रोष्ठो (म पु० स्त्री०) प्रोष्ठनासिकोदरोष्ठेति जातेरिति वा प्रौढ़ा ( स० स्त्री० ) प्रौढ़-टाप् । नायिकाभेद । पर्याय--.. होप । मत्स्यभेद, सौरी नामको मछली । पर्याय.. चिरिण्टी, सुवयाः, श्यामा, दूटरजाः। नायिका चार शफगे, शफर, श्वेतकोल । गुण · तिक्त, कटु, स्वाद. शक्र- प्रकारको है, बाला, तरुणी, प्रौढ़ा और वृद्धा । साधारण कारक, कफवातनाशक, स्निग्ध, मुख और कण्ठरोग- ३० वर्षसे ५० या ५५ वर्ष तकको स्त्री प्रौढ़ा मानी जाती नाशक तथा श्रेष्ठ । । है। भावप्रकाशके अनुसार ऐसी स्त्री केवल वर्षा और प्रोष्ण ( स० वि० ) अत्यन्त उष्ण, जो बहुत गरम हो। यसन्त ऋतुमें सम्भोग करने योग्य होती है और किसी प्रोष्य ( स० अव्य० ) प्र-वस ल्यप् । विदेश जा कर। . समय नहीं। साहित्यमें इसके रतिप्रीता और आनन्द- प्रोह ( म० पु० ) प्रोह्यते वितपर्यते विस्मयाकुलितैरिति सम्मोहिता ये दो भेद माने गये हैं। मानके भेदानुसार प्र-ऊह घम्। १ हस्तिचरण, हाथके पैर । २ पर्व, धोरा, अधीरा और धीराधोरा ये तीन भेद तथा स्वभावके मन्धिस्थान। ३ हस्तिचरणपर्व, हाथीके पैरके संधि- अनुसार अन्यसुरतदुःखिता, वक्रोक्तिगर्विता और मान- स्थान। ४ नः । (नि.)५निपुण, चतुर। वती पे तीन भेद माने जाते हैं। अलगा इसके स्वकीया;