बाल-बालकृषि
धर्म शास्त्रमें भी बालकका छठां या आठवां मास ही। १० पुच्छ, दुम । ११ मत्स्यविशेष, एक प्रकारकी मछली।
अन्नाशनका विहितकाल निर्दिष्ट हुआ है। वालकको १२ किसी पशुका बच्चा । १३ वह जिसको समझ नहीं
गोदमें रख कर उसे शिष्टालापादि द्वारा सुखी करे, हो, नासमझ आदमी। (त्रि०) १४ मूख, नासमझ ।
कभी भी तर्जनादि द्वारा अप्रसन्न न करे। निद्रित १५ जो सयाना न हो, जो पूरी बाढ़को न पहुंचा हो ।
अवस्थामै सहसा न जगावे और जव तक स्वयं उठ कर १६ जिसे उगे या निकले हुए थोड़ी ही देर हुई हो।
बैठ न सके, तब तक बैठानेकी चेष्टा न करे। गोद पर बाल (हिं स्त्री०) १ कुछ अनाजों के पौधोंके डंठलका
विठाने अथवा सुलाने और औषधादि प्रयोग करनेके वह अग्र भाग जिसके चारों ओर दाने मुछे रहते हैं । २
सिवा अन्य समयमें अनर्थक रोदन न कराये। एक प्रकारको मछली। .
___ वालकके इच्छानुसार अर्थात् जिससे उसका मन | बाल ( पु०) अङ्रेजी नाच ।
हमेशा प्रसन्न रहे, उस विषयमें विशेष यत्न करना बालक ( स०पु०) बाल स्वार्थे-कन् । १ होवेर, सुगन्ध-
आवश्यक है। क्योंकि, मनके प्रफुल्ल रहनेसे ही शरीर वाला। २ अंगुलीयक, अंगूठा। ४ लड़का, पुत्र । ५
की दिनों दिन वृद्धि होती है। वायु, रौद्र, विद्युत, वृष्टि, शिशु, थोड़ी उमरका बच्चा । ६ अबोध व्यक्ति, अनजान
धूम, अग्नि, जल, उच्च और निम्न स्थानसे हमेशा बचाये आदमी। हाथीका बच्चा। ८ घोड़े का बच्चा। ६
बलय, कंगन। १० केश, बाल । ११ हाथी तथा घोड़े-
___ तैलाभ्यङ्ग, उद्वर्तन, स्नान, नेवाञ्जन, कोमल वस्त्र | की दुम।
और मृदु अनुलेपन जन्मसे ही बालकके लिये हितकर | बालकताई ( हि स्त्री० ) १ बाल्यावस्था। २ लडक-
है । बालकको आठ वर्ष के बाद नस्यका प्रयोग करावे । पन, नासमझी।
सोलह वर्षके पहले विरेचन देना उचित नहीं । (भावप्र०) बालकपन (हिं० पु०) १ बालक होनेका भाव। २
(सुश्रु त शारीरस्थान दशम अध्यायमें इसका विशेष लड़कपन, नासमझी।
विवरण लिखा है, विस्तार हो जानेके भयसे यहां नहीं बालकप्रिया ( स० स्त्री०) बालकानां प्रिया ६-तत् । १
लिखा गया।)
१ इद्रपारुणी। २ कदली, केला । (त्रि० ) ३ बालक
बालकके शरीरकी मेधा, वल और बुद्धि बढ़ानेके |
प्रियमात्र।
लिये निम्न लिखित चार प्रकारके योग निर्दिष्ट हुए हैं। बालकदास-सनामी सम्प्रदायके एक गुरु, घासीदासके
इन सब योगोंका नाम प्राश है। बालकको इनमेंसे पुत्र । १८६० ई०में ये विद्व पी हिन्दुओंके हाथसे मारे
गये।
एक योगका सेवन कराना कर्तव्य है। प्रथमयोग
बालकराम-वैद्यमहोत्सव टोकाके प्रणेता।
सुवर्णपूर्ण, कुष्ठ, मधु, घृत और बच ; द्वितीय सोमलता,
बालककवि---कपूररसमञ्जरी नामक अलङ्कार शालके
शङ्कपुष्पो, मधु, घृत और सुवर्ण ; तृतीय अर्कपुष्पी, मधु,
रचयिता।
घृत, सुवर्णचूर्ण और वच; चतुर्थ सुवर्णचूर्ण, कटफल,
बालकाण्ड (सपु० ) रामायणका वह भाग जिसमें
श्वेतवर्ण भूमिकुष्माण्ड, दूर्वा, घृत और मधु । सुश्रुतशरीर
रामचन्द्रजीके जन्म तथा बाल-लीला आदिका वर्णन
१० अ०)
(पु० ) बलति मस्तकं रक्षति संवृणोतीति वा-वल-
| बालकाल ( स० पु०) बाल्यावस्था, बचपन ।
ण। 8 शिरोभव आच्छादनविशेष, लोम, केश । पर्याय --
कश। पयाय- बालकी (हिं० स्त्री०) कन्या, पुत्री।
चिकुर, कच, केश, कुन्तल, कुञ्जर, शिरोरुह, शिरज । ५/ बालकुटज़ाबलेह (संपु०) बालरोगाधिकारमें अपलेह-
घोटक शिशु, घोड़े का बच्चा, बछेड़ा । ६ अश्वाबालधि | भेद।
घोड़े की दुम । ७ करिबालधि, हाथीकी दुम । ८ नारि- बाळकृमि (स.पु०) वालस्य केशस्य कृमिः ६-तत् ।
केल, नारियल। । पञ्चवर्षीय हस्ती, पांचवर्ष को हाथो। केशकीट, जूं।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३३६
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