पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४३६

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४३० बुद्धदेव वस्त्र बदल लिया। जिस स्थान पर उन्होंने कापायवस्त्र मगधराजने बोधिसस्थसे कहा, 'आपके दर्शन पा धारण किया था, वहां पर भी एक चैत्य स्थापित हुआ कर मैं कृतकृत्य हो गया। कृपया आप मेरे सहायक जो आज भी कापायग्रहण नामसे मशहर है। हों, मैं आपको सारा राज्य दान करता हूँ-- आप यथेष्ट छन्दक सिद्धार्थका आभरण ले कर राजधानी कपिल काम्यवस्तुका भोग करें। वस्तु पहुचा। उससे सारा हाल सुन कर शुद्धोदन, उपकारो तथा दयाचित्त बोधिसत्त्व मधुर, अकु- महाप्रजावतो प्रशृति सभी गभीर शोकमागरमें इव गए। टिल और प्रेमपूर्ण वाक्यमें बोले, 'हे धरणीपाल ! आप- सिद्धार्थ के पुनः घर लौटनेकी सम्भावना न देख उन्होंने का सर्वदा मङ्गल हो ; मैं किसी भी कामसुखका प्राथीं उनके सभी आभरण पुष्करिणी में फेक दिये। वह पुष्क- : नहीं। कामना विषतुल्य और अनंत दोपका आकर रिणी आज भी आभरण नामसे विख्यात है। है। कामके वशीभूत हो कर मनुष्य नरक, प्रेत, तिर्यग गोपाने प्रातःकाल उठ कर जव सुना, कि उनके इत्यादि योनिमें जन्म लेते हैं। ज्ञानियों ने कामनाकी स्वामीने संमाराश्रमका त्याग किया है, तब वह पृथिवी : सब जगह निन्दा की है। मैंने उसे श्लेष्मपित्त-जैसा जान पर गिर पड़ी और अपना केश काट कर शरीर परके छोड़ दिया है।' सभी अलङ्कार उतार दिये। वे कहने लगी,-- हाय ! मेरे इस पर बिम्बिसारने पूछा, -हे भिक्षो ! आप परिणायक मुझे छोड़ कर चले गए, मैं जीवनकी सभी किस देशसे आये हैं ? आपका जन्म कहां हुआ और प्रकारको प्रिय वस्तुसे आज हो वियुक्त हुई। आपके माता पिता कहां रहते हैं ? दीक्षा ग्रहगा । । बोधिसत्त्वने उत्तर दिया,- हे राजन् ! शाक्यों का बोधिसत्त्व छन्दकको लौटा कर यथाक्रम शाक्या सुसमृद्धिशाली कपिलवस्तु एक नगर है। वहीं के और पद्मा नामकी दो ब्राह्मणीक आश्रममें अतिथि हुए। राजा शुद्धोदन मेरे पिता हैं। बुद्धत्वलाभको आशासे वाद वे रैवन नामक ब्रह्मर्षिके आश्रममें पहुंचे और अन्तमें मैंने प्रत्र ज्या ग्रहण की है। वैशाली महानगरी गए। वहां आराड-कलाम नामक तब विम्बिसार बोले,--आपके दर्शनसे हमें बड़ा किसी उपाध्यायसे उनको भेट हुई। उक्त उपाध्यायके . आनन्द हुआ। हम लोग आपके ही पिताके शिष्य तीन सौ चेले थे। बोधिसत्त्वने भी उनका शिष्यत्व हैं। हे स्वामिन् ! यदि आप बुद्धत्व प्राप्त करें, तो मैं ग्रहण कर कुछ दिन तक ब्रह्मचर्यका अनुष्ठान किया। आपके ही धर्मका आश्रय लू। यह कह कर विम्बि- आराड-कलाम अपने शिष्योंको आकिञ्चनप्रायतन-धर्मको सार बोधिसत्वके चरणोंकी वन्दना कर राजगृहको लौट शिक्षा देते थे । उनका कहना था, कि इस प्रकार विषय. आये। वासनासे विरहित हो कर सर्वत्यागी होना ही परम उस समय रुद्रक नामक कोई उपाध्याय राजगृहमें मुक्ति है; किंतु वोधिसत्त्व इस शिक्षासे विशेष तृप्ति-: अध्यापना करते और अपने शिष्यों को 'नैव संज्ञाना- लाभ न कर सके। - संज्ञायतन समापत्तिके उपाय' की व्याख्या देते थे। ___ अनन्तर वे मगधके अनर्गत पाण्डव-पर्वतराजके उनका कहना था, कि श्रद्धा, वीर्य, स्मृति, समाधि और समीप विहार करने और राजगृह नगरमें भिक्षा मांग कर प्रज्ञा इन पांचोंका अवलम्बन कर मोक्षमार्गका पथिक अपना गुजरा चलाने लगे । गजगृहके सभी मनुष्य उन्हें होना उचित है। मुक्तिलाभ होनेसे ज्ञान और अज्ञान देख कर बड़े ही विस्मित हुए। उन्होंने वहांके राजा दोनों का अतिकम किया जा सकता है । बोधिसत्वने विम्बिसारके पास जा कर कहा, -महाराज! स्वयं कुछ समय तक रुद्रकसे धर्मशिक्षा प्राप्त की। इसके बाद ब्रह्मा, देवराज इन्द्र अथवा सूर्य आपके नगरमें भिक्षा वे मगधके गयाशीर्ष नामक पर्वत पर गए और मांगते हैं। इस पर बिम्बिसार बहुतसे मनुष्योंको साथ; वहीं तीन प्रकारकी आध्यात्मिक उपमा उनके मनमें ले पाण्डव पर्वतराजके समीप गए। । उदित हुई । इन्होंने कहा, कि जिसके काम्य वस्तु विष-