पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४५१

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४४५ सभी पुराणों में हो बुद्धके जन्मका सान्त पूर्वोक्त-। कलावेत्ता, कवि, स्वाधीन. प्रियतर, प्रमाणरत, अमेक कर्म- रूपसे लिखा है। कर्ता, बहुपुत्रवान् और वहुमित्रसपन्न : कर्कट राशिमें गृहोंके बीच बुध चौथा है । खगोन और इत्ला देग्वा । : रहने पर प्राश, विदेशनिरत, स्त्रीरति और घरमें अतिशय इसका वर्ण काली दूबके समान, यह उत्तर दिग्वली, : आसक्तचित्त, चपल, बहुत प्रलापी, अपने बधुओंका नपुंसक, शूद्रजाति, अथर्व वेदाभिज्ञ, रजोगुण- : विद्वेषी और बादी, द्वेटा, चौग्धनयुक्त, कुत्सितस्वभाषी, विशिष्ट, मिभितरस, मिथुनराशि, मरकत मणिप्रिय और सत्कवि तथा अपने वशको कीर्ति द्वारा प्रसिद्ध होता मगधदेशका अधिपति है। इसके मित्र रवि और शुक्र है। तथा शत्रु चन्द्र हैं। बुधग्रहके एक एक राशिभोगका समय सिंह गशिमें वुद्धिके रहने पर ज्ञान तथा कलाहीन, २८ दिन है। कालपुरुषका वाक्य बुध है । बुध वाल- लोकविख्यात, असत्यवादी, अल्प श्रवणशील, धनवान्, स्वभाव तथा सकल शास्त्राभिज्ञ है । इसको आकृति सत्वहीन, सहजहन्ता, स्त्री दुर्भाग्यहीन, पराधीन, जघन्य- धनुषके समान है। ये ग्रामचर और पशुजातिका है। बुध- कर्मकारी, स्त्रीकी तरह आकृतिवाला, सन्ततिहीन, प्रहके अवस्थानके अनुसार उत्पन्न बालकके शुभा- अपने कुलके विरुद्ध काम करनेवाला तथा लोकप्रिय शुभादिका निण य किया जाता है। होता है। बुधके नवांशमें उत्पन्न मनुष्य स्थूल शरीर, धोर- : ____ तुला राशिमें बुधके रहने पर --सर्वदा शिल्पकर्म और प्रकृति, रक्तलोचन, कालीदूवके समान श्यामवर्ण, सदय- . विवादमें अभिरत, वाक्चातुर्य-सम्पन्न, अतिशय व्ययी, हृदय, राजसेवानुरक्त, हृष्ट, दक्ष, स्वकुलतिलक और नाना दिशाओंमें वाणिज्य व्यवसायो, विद्वान, अतिथि नाना वेशकारी होता है। । और गुरुभक्त, कृत्रिम व्यवहारकुशल, सम्मानित, देव और बुधके बारहवें अशमें उत्पन्न मनुष्य शुचि, सम्यक : विप्रभक्त, शठतापरायण, वलहीन, शीघ्रकोप और परि- रूप शास्त्रार्थवेत्ता, सुखी, दीर्घायु, प्रभु मित्रवर्गका आश्रय, तोपयुक्त होता है। और प्राक्ष होता है। जिस मनुष्यका जन्म बुद्धके तेरहवें . वृश्चिक राशिम बुधके रहने पर.... श्रमशोक और राशिमें होता है, वह उत्कृष्ट विभव और सुखसम्पन्न, ! अनर्थपरायण, अत्यन्त धर्म तथा लजाशील, मूर्ख, साधु- नाना प्रकार रत्नसमन्वित तथा दिन पर दिन उसके शीलहीन, लोभी, दुष्टाङ्गनारतिशील, निष्ठुर और दम्भ- खजानेकी वृद्धि होती है। निरत, अस्थिरकम कर, लोकविशिष्ट, अतिशय विरुद्ध- मेषादि द्वादश राशिमें बुधके रहने पर निम्नलिखित धर्मा, ऋणो और नीचाम्नप्रिय होता है। फल होता है । मेषराशिमें बुधके रहनेसे विग्रहप्रिय, धनूराशिमें बुधके रहने पर----दाता, शास्त्र, श्रुत और अत्रवेत्ता, भतिचतुर, प्रतारक, सर्वदा चिन्तान्वित, वीयसंपन्न, मत्रणाकुशल अथवा पुरोहित, कुलप्रधान, अतिकश, सङ्गीत और नृत्यकर्मरत असत्यवादी, रति- महाविभवसंपन्न, यज्ञ और अध्यापनारत, मेधावी, प्रिय, लिपिवेत्ता, मिथ्यासाक्ष्यदाता, बहुभोजनशील, बहु- वाक्पटु, लिपि, लेखक और शब्दकुशल होता है। श्रमोत्पन्न धनधान्य बिनाशकर, अनेक बन्धनभागी, रणमें मकरराशिमें बुधके रहने पर-नीच, मूर्ख, षण्डप्रकृति, अस्थिर और ब'चक ; वृषमें इसके दक्ष, दाम्भिक, दाता, परकम कर्ता, कलादिगुणहोन, नानादुखयुक्त, शीघ्र- हानापन, विज्ञानशास्त्र और वेदश, आराम, बस्त्रभूषण, विहारी, अतिशय शीलसंपन्न, खल, असत्य चेष्टाविशिष्ट, और माल्यविधिवेत्ता, स्थिरप्रकृति, स्फीततायुक्त, स्त्री- बधुवियुक्त, असंयतात्मा, मलिन मूर्ति, भयचकित और धनयुक्त, प्रियवर्ण कथनशील, गांधर्व हास्यलीला और निष्ठाहीन होता है। रतिशील, मिथुनमें रहनेसे शुभवेशधर, प्रियभाषी, कुम्भराशिमें बुधके रहने पर---वाक्य और बुद्धिकृत- विख्यात,मतिमान्, श्लाघान्वित, मानी, प्रसिद्ध घोड़े की ! कम होन, धर्म शून्य, लज्जारहित, आशाहीन शत परा- तरह क्रीड़नशील, स्त्रीपुतविवादरत, श्रतिकाव्य और भूत, अशुचि, शीलतावर्जित, अश, अतिशय दुप्पा स्त्री- Vol. xv. 112