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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४७४

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संवत् १६११ वि०में गव सुरजनजी अपने स्वतन्त्र को और गढ़मंडला (वारीगढ़-गढकंटक) विजय करने पर पैत्रिक राज्य वदोके स्वतन्त्र नरेश हो गये और मेवाड़मे चुनारका परगमा और दिया। इनका कोई सम्बन्ध न रहा। इन्होंने वदी राज्य प्राप्त राव सुरजनके पुत्र कुभोजने कुवर पदमें ही सूरत और होने पर मेवाड़से अपने दो छोटे भाइयोंको भी बुला कर अहमदनगरका विजयमें अच्छा नाम कमाया । राष राजा बूंदी राज्यमें ही बीस वोम हजार रुपये वार्षिककी जागीर भोजने जैसा अकबर बादशाहको अपनी वीरतासे प्रसन्न दे दी और जो वदी राज्यके परगने राव सुरतानसिहजीके किया था, वैसे ही उसने उसकी धर्मविरुद्ध भात्माओंको समयमें शत्रु लोग दबा बैठे थे उन्हें वीरताले विजय कर भंग करके अपनी मूछोंकी लाली रखी थी। . बूंदी राज्यमे मिला लिया, जिससे उनकी कीर्ति चारों इनके पुत्र सरबुलंदराय राव राजा रतनसिंहजीने बुर- ओर फैल गई। इसी समय अर्थात् संवत् १६१५ विक्रम हानपुरके मैदानमें खुर्रमकी बड़ी सेनाको परास्त कर में शेरशाही खानदानके हाकिम हाजी खां पठानने अकबर जहांगीरका जाता हुआ राज्य वचाया था। इनके छोटे पुत्र बादशाहके उरसे घबडा कर रणथभोरका किला राव माधोसिहजीको कोटाका स्वतंत्र राज्य मिला जिसमें उस सुरजनके हाथ बेच डाला। इस समय मेवाड़वालोंका समय ३६० गांव थे। सर बुलंदरायके पौत्र बूंदीके राष रणथंभोरसे कोई संबन्ध न था। दूसरे वर्ष अकबरके राजा छत्रसाल और कोटेके राव मुकुन्दसिंहजीने धोल सेनापति हबीब अलीने अकबरकी आज्ञासे रणथंभोर पुर और फतिहाबाद ( उज्जैनके पास ) की लड़ाइयोंमें पर चढ़ाई की और देशमे उपद्रव मचाया, परन्तु राव सुर शाहजादे औरङ्गजेब और मुरादको मिश्रित सेनाओंसे जनने उसे मार भगाया। तुमुल संग्राम कर दाराशिकोहको भागनेका अवसर दे इस समय तक वू'दोके अधीश कभी मेवाड़वालोंके | वीरगति पाई, पर जोधपुरके महाराज संवत्सिंहकी तरह अधीन नहीं थे और न रणथंभोर पर हो मेवाडका अधि। पीठ दिखा कर अपने कलको कलंकनलगने दिया।राब कार था, वे सदैव स्वतन्त्र नरेश रहे थे(१) वित्तोड़ विजय राजा छत्रसालके पुत्र राव राजाभावसिहने औरङ्गजेब- करनेके पीछे संवत् १६२५ विक्रमीमें अकबरने रणथंभोर की धर्मविरुद्ध आशाओंका सदैव तिरस्कार कर पर चढ़ाई को। तुजुके जहांगीरी में जहांगीरने लिखा है, कि मंदिरोंकी रक्षा की और जल झूलनी एकादशीके धर्मो- राव सुरजनके पास ६७ हजार सवार सदैव नौकर रहने , त्सवका जुलूस अपनी भुजाओंके बल दिल्ली नगर थे। इससे यह भी जाना जा सकता है, कि जब ६७ हजार में बड़ी धूमधामसे निकाल कर यमुना तट पर सवार राव सुरजनके पास रहते थे तो १५२० हजार । पहुंचाया और पोछे अपने स्थान पर ला कर धर्मरक्षाकी पैदल भी अवश्य ही रहते होगे, इसके अलावा गजपति मर्याक्ष पालन को। इनके भ्रातृपौत्र राव राजा अनिरुद्ध- और रथपति । जहांगीरने लिखा है, कि गव सुरजनने १४ सिंहजीके पुत्र राव राजा बुधसिंहजोने अपनो भुजाओंके दिन तक उसके वालिद वादशाह अकबरको रणथंभोर बल जाजऊके मैदानने आजमशाहको मार कर यहादुर पर परेशान किया। सुरजन चरित्रमे लिखा है, राव सुर- शाहको दिलोके तख्त पर बिठाया और हफ्तहजारी मन- जनने १४ बार बादशाह अकबरको परास्त किया था। संभव सब और महाराव राजाकी पदवी पाई। इस युद्ध में है, ये १४ लड़ारयां १४ दिनमें हुई हों । १४ दिनकी लड़ाई' आजमका पक्ष समर्थन करने पर जयपुरके सवाई महाराज से हतोत्साह हो कर बादशाह अकबरने राव सुरजनको । जयसिंहको घायल हो खेत छोड़ कर भागना पड़ा था नर्वदा, मथुरा और काशी मण्डलोंका लोभ दे कर संधि , जिसका उसके मनमें डाह जमा हुआ था। फर्रुखशियर - --- के समयमें जब कि बादशाहतमें गड़बड़ी मची, तो जय- (१) मालक बादशाह नादुरशाहन चिताड़ पर चढ़ाई की। पुर नरेश सवाई महाराज जयसिहजी अपने बहनोई दी. उस समय चिनाउके राणा विक्रमादित्य और उसके छोटे भाई | के महाराव राजा बुधसिहजीको अपने साथ जयपुर ले उदर्यासहको बदीगजने आश्रय दिया था। आये जहां उन्होंने इन्हें बड़ी प्रोतिके साथ अपने पास