पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फते महामद खाँ नायक-फतेपुर उत्तर एक सुवहन् मन्दिरका भग्नावशेष नजर आता है। अकबरशाहके राज्यकाल पर्यन्त इन्होंने स्वाधीनता अक्षण्ण इम ग्धानको यहांके लोग चामधेरी कहते हैं। इसके रखी थी। अकबरने सामान्य कारणोंसे अप्रसन्न हो पूरबमें और भी कितने छोटे छोटे म्तृप देग्वे जाते हैं : कर अगलराज्यके विरुद्ध सेना भेजी। युद्ध में हिन्दूराज जिनका व्यास २० फुट है। प्रवाद है, कि चास नगर• मारे गये और उनका दुर्ग तथा प्रासाद भूमिसात् कर के इस वृहत् स्तूपमें प्रचुर रत्न गड़ा हुआ है । किस उपाय डाला गया । इसके बाद मुगल-सम्राट्ने राजस्व वसूल से उस स्तूपमेंसे वह अर्थ निकाला जा सकता है वह करनेके लिये यह प्रदेश असोथरके ठाकुर रा ओंके हाथ रावलपिण्डीके मुद्राव्यवसायियों के पास एक पुस्तकमें सौंपा। लिखा है, किन्तु कोई भी इस ओर ध्यान नहीं देते। इसके समीप ही हसवा नगरका ध्वंसावशेष प्राचीनत्व- फतेमहम्मद खाँ नायक ---विख्यात.महिसुरराज हैदरअलीके : का परिचायक है। राजा कुशध्वजने इसे बसाया था। पिता। हैद अली देवो। विस्तृत विवरण हस वा शब्दमें देखो। फते पक्षाल · काश्मीर राज्यके अन्तर्गत एक गिरिमाला । : ११९५ ई०में शाहबुद्दीन घोरीने इस स्थानको लूटा। इसके दक्षिण काश्मीरकी उपत्यका भूमि है । यह अक्षा० ३३ तभीसे यह स्थान दिल्लीके शासनाधीन हुआ । १३७६ ई० ३४ उ० और देशा० ७४४० पू०के मध्य अवस्थित है। में फतेपुर, कोरा और महोबा नामक स्थान मालिक-उल- इसकी ऊंचाई १२ हजार फुट और लम्बाई ४० मील है। सार्क नामक किसी शासनकर्ताके अधीन था। उन्होंने फतेपुर -युक्तप्रदेशके इलाहाबाद विभागके अन्तर्गत एक अपने बाहुबलसे तैमुरके भीषण आक्रमणमे देशरक्षा की जिला। यह अक्षां० २५ २६ से २६१६ उ० और थी। उन्हींके सुशासनसे राज्य भर शान्ति विराजती देशा०८०१४ से ८१२० पू०के मध्य अवस्थित है। थी। मुगलराजवंशके अधिष्ठानके पहले भी वह नष्ट इसके उत्तग्में गङ्गानदी, पश्चिममें कानपुर, दक्षिणमें यमुना नहीं हुआ। १५२६ ई०में बाबरने इस स्थानको दखल और पूर्व में इलाहाबाद जिला है। भूपरिमाण १६१८ किया । उस समय भी यह स्थान पठानराजाओंका केन्द्र वर्गमील है। स्थल था । उन्होंने बड़े साहससे युद्ध करके मुगलोंके उत्तर और दक्षिणमें गङ्गा तथा यमुना नदोके वहनेसे राज्यस्थापनकी आशा धृलमें मिला दी थी। हुमायुनके यह जिला दोआबके अन्तर्भुक्त हुआ है। पहले बहुत-सो : सिंहासन पर अधिरूढ़ होने पर भी शेरशाहने यहां बल- स्रोतस्वती हिमालय पर्वतसे निकल कर इस स्थान हो । संग्रह करके उन्हें मार भगाया था। दिल्ली-राजवंशकी कर बहती थी। आज भी उनका निदर्शन पाया शासनप्रभा जब बुझने पर आई, तब फतेपुरका शासन- जाता है। पतद्भिन्न पाण्ड, रिन्द और नुन नदी प्रवाहित : अयोध्याराजके हाथ सौंपा गया। कोराके जमोंदार भूभागको दृश्यावलो अतीव मनाहर है। जिलेके मध्य ! अयजूके बुलाने पर १७३६ ई०में मराठोंने इस प्रदेशको भागमें कुछ झीलें भी हैं जिनसे कृषिकायमें विशेष । लूटा और १७२० ई० तक यह उन्हींके दखलमें रहा । सुबिधा होता है। पश्चिममें पर्वतसंलग्न बबूलका , पीछे फतेगढ़के पठानोंने यह स्थान मराठोंके हाथसे छीन वन है। लिया। इसके तीन वर्ष बाद अयोध्याके स्वाधीन वजीर बहुत प्राचीनकालसे ही यहां भील नामक अनार्य सफदरजडने उसे जीत कर निज राज्यभक्त किया। जातिका बास है। रामायणमें लिखा है, कि रामचन्द्र १७५६ ईमें अयोध्याके वजोर दिल्लीके अधीनता-पाश- यहां पर गुहकके अतिथि हुए थे। यह स्थान बहुत समय को तोड़ कर स्वाधीन हो गये। १७६५ ई०में अंगरेज- तक अर्गल राजवंशके अधिकारमें रहा (१) इन सब राजा- राजने उन्हें स्वतन्त्र राजाके जैसा स्वीकार किया। उसी ओंने कन्नोजराजके पक्षसे मुसलमानोंके विरुद्ध युद्ध किया सालकी सन्धिके अनुसार फतेपुर सम्राट शाह- था । कन्नोजराजकी पराजय होने पर भी सम्राट आलमके हस्तगत हुआ । परन्तु १७७४ ई०में उक्त (१) कनोजसे इलाहाबाद पर्यन्त इनका राज्य विस्तृत था। सम्राटके मराठोंके हाथ आत्म-समर्पण करने