पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६३५

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ब्राह्मणवध-ब्राह्मणीव ६२४ योग, तपस्या, दम, दान, सत्य, शौच, दया, शास्त्र. अलस, दुष्पुरुष, कापुरुष, राजन्, गणपति, अधिपति, ज्ञान और आस्तिक्य ये सब ब्राह्मणके लक्षण हैं। गडुल दायाद, विशस्ति, विषम, विपात, निपात । ब्राह्मणबध (सं० पु. ) ब्राह्मणस्य वधः। ब्राह्मणहत्या। . (पाणिनि ) ब्राह्मणवत् (संत्रि०) १ ब्राह्मणतुल्य । २ ब्राह्मणयुक्त। ब्राह्मणायन (स.पु०) ब्राह्मणस्यापत्यं नडादिभ्यः, फक् । ३चेदके ब्राह्मणनिर्दिष्ट विधिके अनुरूप। (पा ४१ ) ब्राह्मणका गोलापत्य, शद्धवंशजात विप्र । ब्राह्मणवर्चस् ( स० क्लो०) ब्रह्मणस्य वचः ततोऽचसमा- ब्राह्मणिक ( स० वि० ) ब्राहास्य मवेतरवेदभागस्य सान्तः। ब्राह्मणक तेज। ब्रह्मवर्चस् देखो। व्याख्यानो ग्रन्थः ठक। मंतर वेदभाग व्याख्यान ग्रंथ । ब्राह्मणशस्त्र ( स० क्ली०) ब्राह्मणस्य शस्त्रमिव तत्- ब्राह्मणी ( स० स्त्री० ) ब्राह्मण स्त्रियां ङोप। १ ब्राह्मण- कार्यकारित्वात् । अभिचारादि मन्त्रोच्चारणात्मक विप्र- पत्नी। मनुमें ब्राह्मणीगमनका विषय इस प्रकार लिखा वाक्य । ब्राह्मण जिस मंत्रका उच्चारण करके अभिचारादि है..- कार्य सम्पन्न करते हैं यह वाक्य शस्त्रकी तरह कार्य शूद्र यदि अरक्षिता ब्राह्मणी-गमन करे, तो उसका करता है, इसीसे इसका ब्राह्मणशस्त्र नाम पड़ा। लिङ्गच्छेद और सर्वस्वहरण तथा भर्नादि कस्तक ब्राह्मणसम ( स० पु०) ब्राह्मणस्य समः । क्रियारहित विप्र, रक्षिता ब्राह्मणगमन पर उसका बध और सर्वस्व- वह ब्राह्मण जो ब्राह्मण-कर्तव्यकर्म नहीं करता है। ब्रह्म हरण दण्ड विधेय है। वैश्य यदि रक्षिता ब्राह्मणी वीजसे जन्म ले कर मंत्र और संस्कारादि वर्जित होनेसे गमन करे, तो उसे एक वर्ष कारावरोध दण्ड दे और उसको ब्राह्मणसम कहते हैं। उसकी सारी सम्पत्ति छीन ले। क्षत्रिय यदि ऐसा ब्राह्मणसात् (स० अव्य०) ब्राह्मणाधीनं करोति ब्राह्मण करे, तो उसे सहस्र पणदण्ड तथा गर्दभमूत्र द्वारा साति । जो ब्राह्मणके अधीन हो। उसका मस्तक मुड़वा दे। वैश्य वा क्षत्रिय यदि अरक्षिता ब्राह्मणस्पत्य (सं० पु०) बृहस्पतिका काय । ब्राह्मणी-गमन करे, तो वैश्यको ५०० सौ पण और क्षत्रिय- ब्राह्मणहित ( स० वि०) ब्राह्मणस्य हितः। ब्राह्मणका को १०० पण दण्ड होना चाहिये। वैश्य वा क्षत्रियके हितकारो। पर्याय-ब्राह्मण्य । गुणवती रक्षिता-ब्राह्मणीका गमन करनेसे उसे शूद्रवत् ब्राह्मणाच्छसिन् ( स० पु०) ब्राह्मणे मवेतरवेदभागे दण्ड और ब्राह्मणके बलपूर्वक रक्षिता ब्राह्मणो गमन विहितानि शास्त्राणि उपचारात् ब्राह्मणानि तानि शंसति | करनेसे सहस्र पण दण्ड तथा सकामा ब्राह्मणीगमन द्वितोयार्थे पञ्चम्युपसख्यानं इति अलुक । सोमयज्ञमें करनेसे ५०० सौ पण दण्ड होना चाहिए। (मनु ८ अ०) ब्रह्मरूप ऋत्विकका सहकारी ऋत्विक भेद । "कुलटा विप्रपत्नीनां गमने सुरविप्रयोः । ब्राह्मणाच्छंसीय (सं० वि० ) ब्राह्मणाच्छंसिनो भावः बदमहत्यापोड़शाशं पातक तु भवेत् धुवम् ॥" 'होत्राभ्यश्छ', इति च्छ । ब्राह्मणाच्छंसोका भाव या कर्म । (ब्रह्मवैवर्तपु० प्रकृति ख० ४५ अ०) (सांख्या० प्रा० ३018) कुलटा ब्राह्मणी-गमन करने पर भी ब्रह्महत्याके १६ ब्राह्मणाच्छंस्प (सत्रि०) ब्राह्मणाच्छंसिसम्बन्धीय। भागोंका एक भाग पाप लगता है। ब्राह्मणादि ( स० पु.) भाव और कममें व्यञ् प्रत्यय २ घुद्धि । महाभारतमें 'बुद्धि'-को परिभाषिक ब्राह्मणी- निमित्त पाणिन्युक्त शब्दगण । यथा-ब्राह्मण, वाड़व, रूपमें बतलाया गया है । ( भारत १४|३४|११-१२) माणव, चोर, धूर्त, आराधय, अपराधय, उपराधय, एक- ३ तार्थविशेष। इस तीर्थमें स्नानदानादि करनेसे भाव, द्विभाव, विभाव, अन्यभाव, अक्षेत्रज्ञ, संवादिन, पनवर्ण यान द्वारा ब्रह्मलोककी गति होती है। संवेशिन्, संभाषिन्, बहुभाषिन्, शोषघातिन, विघातिन्, (भारत ३।४।५४) समस्थ, विषमस्थ, परमस्थ, मध्यमस्थ, अनोश्वर, कुशल, ब्राह्मणीत्व ( सं० क्लो० ) ब्राह्मणी भावे त्व । ब्राह्मणीका चपल, निपुण, पिशुन, कुतूहल, क्षेत्रस, मिश्र, पालिश, | भाष मा धर्म। Vol. xv. 158,