विश्वकोष
(पञ्चदश भाग)
Ma ( ल स्त्री० ) प्रतानां प्रेतेभ्यो वा या शिला।। अस्मत्कुले मृता ये च गतिर्येषां न विद्यते ।
पिण्ड वास्थित प्रस्तरविशेष, गयाको वह शिला तेषामावाहयिष्यामि दर्भपृष्ठे तिलोदकैः ।
Hि, नोक उद्देश्यसे पिण्डदान किया जाता है। पितृवंशे मृता ये च मातृवंश च में मृताः। ..
गरुड़ पुराण-गयामाहात्म्यमें लिखा है, कि गयामें जो | तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्डं ददाम्यहम् ॥
प्रेतशिला कहलाती है, वह तीन स्थानों में अवस्थित है, मातामहकुले ये च गतिर्येषां न जायते।
प्रभासमें, प्रेतकुण्डमें और गयासुरके मस्तक पर । यह तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्यं वदाम्यहम् ॥
प्रेतशिला समस्त देवस्वरूपिणी और धर्म कर्तृक धारित | अजातदन्ता ये केचित् ये च गर्भेषु पोडिताः ।
है। पितृ प्रभृति पनि यदि कोई प्रेतभावापन्न | तेषामुद्धरणार्थाय इमं पिण्ड ददाम्यहम् ॥
हो तो गयादन अशौच होता है, यही पू. है, उन पर दिन करके आर वेश्या पायावर ... .
पिण्डवा कालव्यापक अशौचको ग्वगडाशौच कहते हैं। ' के ६ दिन करके उम अशौचकी वृद्धि होगी। उम
- शौचमें ही खण्डाशौच होता है। दूरस्थ ज्ञातिके, वर्द्धित शौचमें केवल दैव वा पत्रकार्य करना निषिद्ध है,
मरण पर तीन दिन और मानदिक शातिक मरण पर पर लौकिक सभी कार्य कर सकते हैं। किन्तु मास-
पक्षिणी अशीच होता है। वह पक्षिणी अशीच दिनको संख्यक दिनमें, लौकिक वा दैविक किसी भी कार्यमें
हो चाहे रातको, उस समयसे ले कर सूर्यास्तकाल पर्यन्त अधिकार नहीं है। मप्तम वा अष्टम माममें गर्भस्राव
रहता है। पूर्वोक्त चतुर्वर्णके पूर्वपुरुषको जन्म नाम स्मरण होनेसे खजात्युक्त पूर्णाशौन तथा निर्गुण सपिण्ड के एक
पर्यन्त एक दिन अशौच होता है। उसके बाद सगोत्रके दिन अशौच होता है। वह वालक जीवित प्रसूत हो कर
जनन वा मरणमें स्नानमानसे ही शुद्धि होती है। यदि उसी दिन मर जाय, तो भी उसी प्रकारका अशौच
पहले जिस समानोदकादिका उल्लेख किया गया है, . होता है। द्वितीय दिनमें मरनेसे पितामाताके सिवा और
उसका अर्थ यो है सप्तमपुरुष पर्यन्त ज्ञाति मपिण्ड, किसीको अशौच नहीं होता है।
दशमपुरुष पर्यन्त साकुल्य, पीछे चतुर्दशपुरुष समानो बालाघशौचव्यवस्था। नवम और दशममासजात
दक कहलाता है।
बालककी अशौचकालके मध्य मृत्यु होनेसे वह जनना-
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७
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