पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७७२

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भना-... विभूति भवा (स. स्त्री०) पती, । - शिता प्राप्त शी। १४ वर्षकी उम्र में एक मवाचल (स.पुण) भव महादेवरा र लः । यः' दामीन फौजदारको हुगली मार्ग दिखा देने के कारण पर्वतके पूर्ववती लधेट। म कप फौदार इन पर बहुत खुश हुए और इनको एलता भवात्मजा (सस्त्री० ) भवस्य शिवम्य आत्मजेति। और साहसको पख कर वे इन्हें सप्तप्राममें मनसादेवी। 'यहां इन्होंने पारसी भाषा और राजकार्यको ... ' भवास 'म' त्रि०) भवानिव दृश्यते यः इति व्युत्पत्त्या पाई । उक्त हुगलोके फौजदारके प्रयत्नसे बगालके भवच्छन्दपूर्वक दृश् धातोः कर्माण क्रमेण लक् विप् टक् नवाबने इन्हें कानूनगोका पद दे कर सम्राट के प्रत्ययेन निष्पन्नः। युष्मत् सदृश, आपके जैसा। यहांसे सनद और मजूमदार उपाधि दिला दी। प्रतापा भवादृश ( स०नि० ) भवान देखो। दित्य विजयके समय इन्होंने सैन्य-सहित मानसिंहको भवानन्द --१ एक प्राचीन कवि । पद्यावलीमें इनकी रचना लगातार सात दिन तक होनेवाली आंधीमें भोजनादि दे उद्धत हुई है । २ एक वैदान्तिक । इन्होंने कल्कलना नामक कर उनको रक्षा की थी। प्रतापादित्यको पराजित कर घेदान्तप्रन्थ सकलन किया । ३ सदप्कन्दर्णकाव्यके दिलो जाते समय मानसिंह भवानन्दको अपने साथ लेते प्रणेता। गये। वहां उन्होंने जहागीर बादशाहसे अनुरोध कर भवानन्द तर्कवागीश - नवदीपवासी एक पण्डित । इन्होंने भवानन्दको महतपुर, नदीया, मरूपदह, लेपा, सुलतान- रघुनाथ शिरोमणिकृत आख्यातवादको एक टिप्पनी पुर, कासिमपुर, बयसा, मसुण्डा आदि १४ परगनोंका लिखी है। फरमान दिलाया था। (हिजरी १०१५, ई०१६०६) भवानन्दपुर--- बङ्गालके दिनाजपुर जिलान्तर्गत एक गएड' सम्राटसे फग्मान पाते समय इन्हें नौवत, उड्डा, प्राम। यह कुलिकनदीके पश्चिमी किनारे पाव भरकी घड़ी, निशाने आदि मिली थी । स्वदेश लौट कर आपने दूरी पर अवस्थित है। यहां एक आम्र-काननके मध्य पीर | मटियारीमें राज-भवन बनवाया और वहीं वे राजकार्य नेकमर्द की समाधि है । प्रति वर्ग बैशाखमासमें उक्त करते रहे । आपके कार्य से परितुष्ट हो कर सम्राट्ने सात पोरके उद्देश्यसे मेला लगता है। वर्ष वाद पुनः इन्हें उखड़ा आदि कई परगने दिये (१६१३ भवानन्द मजूमदार- कृष्णनगर-राजवशके प्रतिष्ठाता । ई०) । श्रीकृष्ण, गोपाल और गोविन्द नामक आपके तीन भट्टनारायणसे अधस्तन विंशतितम पुरुष रामचन्द्र समा- पुत्र थे । गुण-ज्येष्ठ मध्यमपुत्र गोपाल पितृ-राज्यके दारके ज्येष्ठपुत्र । इन्होंने बाल्यकालमें ही संस्कृतविद्यामें अधिकारी हुए थे। (क्षितीशवशावलि ) -~-car- पञ्चदश भाग सम्पूर्ण