पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१२३

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पड़ा है। अग्निरूप-अग्निविकार ११७ रोहति। मांसादनी वृक्ष, इस वृक्षका अग्निवर्ण वत् अग्निवर्चस् –(स० वि०) अग्नेर्वच इव वर्ची दीप्तिरस्य, नया अङ्गुर आग जैसा लाल होनेसे अग्निरुहा नाम बहुव्रौ । अग्नितुल्य दीप्तिमान्, आग जैसा चमकौला। (क्लो०) अग्निका तेज। अग्निरूप (स. त्रि०) अग्नेरिव रूपं वर्णो यस्य। १ अग्निवर्ण-(सत्रि०) अग्नवर्ण इव वर्णो रूपं यस्य। जिसका अग्नितुल्य वर्ण हो, जिसका रूप आग जैसा अग्नितुल्य रक्तवर्ण, आगको मानिन्द सुख। (पु०) देखा जाये। २ अग्नि सदृश मान्य, आगकी तरह सूर्यवंशके राजविशेष, जो सुदर्शनके पुत्र थे । बद्ध प्रतिष्ठा पानेवाला। अग्निरिव रूप्यते असौं, ६-तत्। नृपतिने सन्तानको राज्यभार दे नैमिषारण्यके प्रति- (क्लो०) ३ अग्निका वर्ण या मूर्ति, आगका रङ्ग या गमन किया। किन्तु अग्निवर्णने राज्यपर कोई ध्यान आगको शकल। न दिया। वह रात-दिन अन्तःपुरमें ही पड़े रहते अग्निरतस (स० लो०) अग्ने : रेतः, ६-तत् । अग्निका थे। प्रजा साक्षात् करनेको आ उनके दर्शन न पाती शुक्र यानो सुवर्ण । सोना आगका वौर्य है। थी। इसी तरह नियत इन्द्रिय परवशताके कारण काञ्चन और कार्तिकेय शब्द देखो। उन्होंने यक्ष्मरोगग्रस्त हो अकालमें प्राणत्याग किया। अग्निरोहिणी (सं० स्त्री०) एक रोग जो सन्धिस्थान- रघुवंश १८ सर्ग। में फफोले डालता और जिसमें रोगीको दाह और अग्निवईक (सं० वि०) अग्नि-वृध-णिच्-ख ल् । अग्नेः ज्वर हो जाता है। यह रोग त्रिदोषज है। वईकः । १ क्षुधावृद्धिकारक औषध, भूख बढानेवाली "मल : पित्तोलणै: स्फोटा ज्वरिणो मांसदारणाः । दवा। २ पथ्य । ३ आहार। कक्षाभागेषु जायन्ते येऽग्न्याभा: साऽग्निरोहिणी। अग्निवर्धन (सं० क्लो०) १ जठराग्निवृद्धिकर ट्रव्य, हाज़मे- पञ्चाहात्मप्तराबाहा पक्षाचा हन्ति जीवितम्।" (वाभट उ० ३२ अ०) को बढ़ानेवाली चीज़। २ जीरक, जौरा। अग्निलिङ्ग (स० पु०) वह विद्या, जिससे अग्निका अग्निवल्लभ (स० पु०) ६-तत् । १ सालवृक्ष । २ राल । आकार देख शुभाशुभ बताया जाता है। (त्रि.) अग्निप्रिय, आगका प्यारा। अग्निलोक (स० पु०) अग्नेः लोकः, ६-तत् । सुमेरु अग्निवल्ली (सं० स्त्री०) लता-विशेष। एक प्रकारको पर्वतके नौचेका जनपद-विशेष, वह एक खास जगह बेल जो आग जैसी लाल होती है। जो सुमेरु पर्वतके नीचे है। काशीखण्डमें लिखा है, अग्निवाण (बाण) (सं० पु०) एक इकार अस्त्र, जिसमें कि इस अग्निलोकका स्थान अन्तरीक्षमें है। मालूम आगको ज्वाला निकले। होता है, कि सुमेरु पर्वतके नीचे किसी उपत्यकामें अग्निवायू (स• पु०) अग्निश्च वायुश्च । अग्नि और वायु पहले अग्निपूजकोंका कोई स्थान था, जिसे सब देवता । २ चौपायों पशुका एक रोग। ३ दद्रु, ददरा । लोग अग्निलोक कहते रहे। चीन-परिव्राजक यूअन्- अग्निवासस (स. क्लो०) अग्निरिव शुद्ध वासो वस्त्रम् । चुअं अ-कि-नि नाममें उल्लेख किया। वस-असुन्–वासस्, वस्त्र । वसणित् । उण १२१७॥ अग्नि- अग्निलौह (स० पु०) अर्श या बवासीर रोग मिटाने- तुल्य शुद्धवस्त्र, आग जैसा पाक कपड़ा। (त्रि०) अग्नितुल्य वाला एक रस। अग्निमुख देखो। वस्त्रपरिधायी, आग जैसा पाक कपड़ा पहननेवाला। अग्निवक्त (स० पु०) भल्लातक वृक्ष। चौत । अग्निवाह (स० पु०) अग्नि-वह-णिच्-अण, अग्नि अग्निवत् (स' त्रि०) अग्नि-मतुप। १ साग्निक ब्राह्मण। वाहयति । १ छाग, बकरा । २ धूम, धुआं । (त्रि.) २ अग्नितुल्य, आग जैसा। ३ अग्निवाहक द्रव्य, आगको ले जानेवाली चीज़ । अग्निवती (स. स्त्री०) अगिया नामक महौषध । अग्निवाहन (स० क्लो) ६-तत् । १ छाग, बकरा। २ अग्निवधू (स० स्त्री०) अग्ने: वधू, ६-तत् । स्वाहा, दक्ष अग्निका रथ । अग्निका रथ चार बकरे खींचते हैं। कन्या। अग्निविकार (स० पु०) एक प्रकारका रोग, अग्नि- खाहा देखो।