पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१९६

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१८६ ३ कोरमा, - - प्रायः हम अजमांस इन कई प्रकारोंसे रन्धन पुण्यलाभको आशामें अनेक हिन्दू ताली बजाते कर खाते हैं-१ साधारण शोरबा, २ कलिया, और नाचते-नाचते जौवहिंसा करते हैं, जिसमें उन्हें ४ पोलाव, ५ कबाब, ६ भुना हुआ, कुछ भी मनःकष्ट नहीं होता। बकरा मारते समय ७ बड़ा या पठा। बच्चे बकरेका मांस खाने में सबसे यदि दो हाथ चलाने पड़ें या कटा हुआ मुण्ड अच्छा बताया गया है। दैवात् बोल उठे, तो समूहमें विपद् पड़नेको सम्भावना आजकल बकरा, मेंढा और भैंसा, यही तीन जन्तु हो जाती है देवताके निकट बलि दिये जाते हैं। दूसरे जन्तु दो हाथों में बकरा कटनेसे, 'उलटा हुआ' कहाता अधिक बलि नहीं चढ़ाए जाते। फिर कभी किसी बकास यही विश्वास है, कि दो हाथोंमें बकरा किसी स्थानमें मुर्गी, कबूतर और शूकरको भी बलि कटनेसे पूजा अङ्गहीन हो जाती और इसलिये देवता दी जाती है। किन्तु बकरको बलि ही अधिक बलिको ग्रहण नहीं करता। बकरके उलटा होनेसे प्रचलित है। जिस बकरेके सींग निकल आए ही, गृहस्थके घरमें कोई विघ्न पड़ता है, ईसलिये उस जिसके शरीरमें कहीं क्षत न हो और पहले जिसे उलटे बकरके मांससे होम करना होता है। होम शृगालादि किसी पशुने काटा भी न हो, वही वकरा करनेसे सकल दोषको शान्ति हो जाती है। बलिके योग्य होता है। भविष्यपुराणमें लिखा है- बलि देखो। अज जाति साधारणतः नौ प्रकारको होती है। “अजानां महिषाणाञ्च मेषाणाञ्च तथाविधात् । जैसे-१ जङ्गली, २ सामान्य गृहपालित, ३ माल- प्रौणयेत् विधिवद्द गौ मांसशोणिततर्पणः ॥ दुर्गाया दर्शनं पुण्य दर्शनादभिवन्दनं । टेको, ४ सौरियाकी, ५ अङ्गोराकी, ६ कश्मीरौ, वन्दनात् स्पर्शनं श्रेष्ठ स्पर्शनादभिपूजनं ॥ • न्यूबियाको, ८ नेपाली, और ८ गिनिदेशवाली। पूजनात् सपनं श्रेष्ठं सपनातर्पणं स्मृतम् । वन्ध बकरा-मध्य-एशियाके हिमालय और ककेसस् तर्पणान्यांसदानन्तु महिषाजनिपातनं ॥" पर्वत प्रदेशमें वास करता है। इस जातीय बकरको बकरे, मेंढे और भैंसेके शोणितमांससे दुर्गाको विधिपूर्वक तुष्ट करे। दुर्गाके दर्शन करनेसे ही पुण्य होता है। किन्तु दर्शनको अपेक्षा वन्दनादि द्वारा और भी अधिक पुण्य होता है। फिर, वन्दनादि- को अपेक्षा दुर्गाको स्पर्श करनेसे फल अधिक है। स्पर्शको देखते पूजामें अधिक पुण्य है। फिर पूजा- को अपेक्षा देवीको स्नान करानेसे और भी फल गर्दन छोटी, सींग बड़े और पीठ टेढ़ी होती है। लाभ होता है। स्नान करानको अपेक्षा तर्पण | सर्वाङ्ग धूसरवर्ण लोमसे आवृत, समस्त पीठको अधिक श्रेष्ठ है। फिर जिस पूजामें मांसदानके लिये रौढ़पर एक काली रेखा, पूछ छोटी और पेट दाढ़ी भैंसे और बकरेकी बलि दी जाती है, उसका फल भूरी होती है। सबसे अधिक है। सामान्य ग्रहपालित बकरा-हमारे देशमें दो प्रकारका किन्तु देवीको रुचि बकरके मांसपर ही अधिक देख पड़ता है। प्रथम,-नाना वर्णका खर्वाकार रहती है- बकरा। द्वितीय,-राम बकरा। वङ्गन्देशादिका "अजस्य दशवर्षाणि रुधिरण सुतर्पिता।" खाकार बकरा प्रायः काले, सादे और मटमैले बकरके रक्तसे तर्पण करनेपर वह देवी दश रङ्गका होता है। प्रधानतः वह काले रङ्गका हो वत्सर प्रीत रहती है। इसी संस्कारके वशसे अधिक देखने में आता है। इनमें कोई बकरी ४८