पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२७७

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अतिसार २७१ कि पीड़ा उदरामय, किंवा ज्वर है। ख्यातनामा लगता है। परिणाममें शोथ आ उपस्थित होता डाकर गुडिव इस बातको अपने मुंहसे स्वीकार करते है। यह सकल कठिन लक्षण देख पड़नेसे प्रायः हैं, कि ज्वरसंयुक्त रक्तातिसार और उदरामय सभी रोगी प्राण छोड़ देते हैं। रोगको ठोक प्रकृति समझने में वह कईबार हार मेदातिसार ( Fatty diarrhoea)-ऐसे उदरामय रोगके बैठे थे। लक्षण प्रायः तरुण प्रदाहजनित उदरामयके ही जैसे प्रदाहजनित अतिसार-दो प्रकारका है,-तरुण और होते हैं। प्रथम उदरमें वेदना उठती, इसके बाद पुरातन । तरुण प्रदाहजनित अतिसार (Acute सञ्चित मल निर्गत हो जाता है। फिर चर्बी और inflamatory diarrhoea) अतिशय उत्कट पौड़ा तैल-जैसा पदार्थ निर्गत हुआ करता है। रोगीको अन्त्रकी भिक झिल्ली में प्रदाह होनेके एकबारगी हो तैलाक्त द्रव्य न खिलानेसे भो मलको कारण यह पौड़ा उत्पन्न होती है। प्रथम सञ्चित अवस्था परिवर्तित नहीं होती। अनेकोंको ऐसा मल निर्गत हो जाता, इसके बाद कभी चर्बी विश्वास है, किलोम और पेङ्गक्रियास (Penereas) को जैसा श्लेष्मा एवं गलित मांस-जैसा पदार्थ विकृतिक कारण यह सकल लक्षण उपस्थित हो जाते हैं। निकलता है। कभी हरे रंग और कभी कुछ दूसरा भी एक प्रकारका अतिसार है, जिसे कुछ लाल खूनको छीटें उसमें मिश्रित रहती प्रायः हम सञ्चितग्रहणी कहते हैं। सञ्चितग्रहणी पेटको वेदना दुःसह हो जाती ; बोध होनेसे अनेक लोग स्वभावसे हो दुर्बल और होता, मानो कोई कुरीसे आंत फाड़ता है। रोगी उद्यमहीन हो जाते हैं। जिस काम में अधिक उदरमें हाथ लगाने नहीं देता, वह पैर गोदकी ओर परिश्रम और अध्यवसाय आवश्यक है, उस कामको ला पेटको पेशी बचा लेता है। इसके साथ ज्वर, वह कर नहीं सकते। अनेकोंको अल्प हो कारणसे आहारसे अनिच्छा, जिह्वामें मलिनभाव, पिपासा भय और मनःकष्ट उपस्थित होता, और स्वभाव प्रभृति नाना प्रकारके उपसर्ग उत्पन्न हो जाते हैं। चिड़चिड़ा पड़ जाता है। इस प्रकार लक्षणादि असाध्यस्थलमें क्रमशः मलसे बहुत ही सड़ी बदबू रहते भी वह विषयकर्मका निर्वाह करते हैं। निकलती, मलहार फैल जाता, किसीके मुखमें क्षत सञ्चितग्रहणी रोगमें सकल उदरामय भी होता , इसके बाद नितान्त दुर्बल हो रोगी नहीं होता। रोगी विशेष विवेचना-पूर्वक आहारादि प्राणत्याग करता है। करते हैं, मध्य-मध्यमें उदरामय श्रा धमकता पुरातन प्रदाहजनित अतिसार रोगमें रोगी कभी है। इसके बाद कोई-कोई रोगी १०। १५ दिन कभी अल्प परिमाणसे पुनः पुनः मलत्याग किया और कोई-कोई दो-तीन मास कष्ट उठाके पुनर्वार करता है। फिर कभी-कभी अधिक परिमाणसे बड़ी आरोग्यको लाभ करते हैं। सञ्चितग्रहणीका देरमें मल निकलता पहले मल पित्त लक्षण सर्वत्र समान नहीं। पौड़ाके समय कोई. मिश्रित रहता, क्रमसे खेतवर्ण और जलवत् हो कोई व्यक्ति कुछ न खानेसे अच्छे रहते, किन्तु जाता है। कभी-कभी फेनदार और कभी-कभी मल सामान्य खाद्य द्रव्य उदरस्थ होते हो पेट दुखता कृष्णवर्ण देख पड़ता है। कोई द्रव्य उदरस्थ होनेसे और मलत्यागका वेग बढ़ता है। फिर किसी-किसी उसी समय मलत्यागका वेग बढ़ जाता है। परिशेष रोगीका लक्षण इससे बिलकुल विपरीत होता है। में तीसरे पहर अल्प-अल्प ज्वर चढ़ता ; शरीर रूक्ष पेट खाली रहनेसे पुन: पुन: अल्प-अल्प मल निर्गत पड़ जाता, उदरमें वेदना उठती, पेशाब स्वल्प उतरता, हुआ करता, जो किञ्चित आहार लेते ही रुक जाता नाड़ी क्षीण और वेगवतो चलती, अरुचिका प्रादुर्भाव है। इस रोगमें मलको अवस्था भी सकल समय होता और हस्तपदका अन्तभाग शीतल मालूम होने एक रूपसे नहीं रहती। कभी आम-मिश्रित, कभी समय