पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२७६

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२७० अतिसार पड़ता है। न बिकनेसे हलवाई बासी चीज नई चौजमें मिला। कुछ फूलता है। पेड़ में मरोर उठतो ओर ऊपरी देते हैं। इसीसे हलवाईवाली दुकानको मिठाई पेट भारी मालूम पड़ता है। ऐसी अवस्थामें कुछ विषके लड्डू सिवा और कुछ भी नहीं। इन सकल क्षण रह रोगो वमन करनेका आरम्भ करता है। द्रव्योंको भोजन करनेसे उदरामय प्रभृति नाना वमनके साथ भुक्त-ट्रव्य, लार, पित्त और अम्लजल प्रकारके रोग आ उपस्थित होते हैं। सड़ा मत्स्य- निकल पड़ता है। फिर पुनःपुनः मलत्याग करनेको मांस अत्यन्त कुपथ्य होता, कभी-कभी मत्स्यके इच्छा चलती है। अवशेषमें श्लेष्मायुक्त मल निर्गत भीतर एक प्रकारका क्षुद्र कौड़ा भी निकल पड़ता होता है। रुग्ण शरीर या दुर्बल व्यक्ति होनेसे इस है। ऐसा रुग्ण मत्स्य खानेसे लोगोंको उत्कट सामान्य उपसर्गसे ही कठिन अतिसार रोग उत्पन्न यौड़ा उत्पन्न हो जाती है। हो सकता है। साथ ही हैजे का प्रादुर्भाव होनेसे क्या सुस्थ और क्या पीड़ितावस्था, दोनों इस अवस्थामें कितनों ही को उसके पञ्जे में पड़ जाना ही में कभी अधिक भोजन न करे और भोजनके बाद अधिकक्षण न जागे। आहारान्तमें विश्राम लेना पित्तातिसार (Bilious diarrhoea)-यह अतिसार उष्ण- कत्तव्य है। विश्राम न लेनेसे प्रायः क्षुधामान्य और प्रधान देशमें अलस व्यक्तिको हौ अधिक लगता है। अजीर्णरोग आ उपस्थित होता है। आंतमें छोटा जो अतिरिक्त मद्यपान करते, किंवा अधिक मांस किंवा बड़ा कौड़ा रहनेसे भी अतिसार हो सकता है। खाते हैं, हमारे देशमें उन सब लोगोंके इस प्रकारके इसके सिवा दूसरी भी कई एक बातें अतिसार- उदरामय हो जानेकौ अधिक सम्भावना है। इसका को कारण गिनी जा सकती हैं। गन्दा पानी पानसे कारण यही है, कि मांस खानेसे रक्त में अधिक हाइ- उदरामय रोग उत्पन्न होता है। वर्षाकालमें गांवों ड्रोजन और अङ्गार उत्पन्न होता है। शीतप्रधान के तालाब पानौसे भर जाते हैं। मुंहानेसे पानी देशमें फेफड़ेसे यह सकल बाष्प निकल जाते हैं। पहुंचते समय, मल-मूत्र और अन्यान्य नाना प्रकारके किन्तु उष्णप्रधान स्थानमें अलस व्यक्तियोंके फेफड़ेका द्रव्य तालाबमें दाखिल होते और पासके तृणादि भी काम कितना ही कम रहता है, इसौसे हाइड्रोजन डूबते हैं। पौछे यह सकल द्रव्य सड़ा करते ; और अङ्गार प्रश्वासके साथ यथेष्ट परिमाणमें इसीसे वर्षाकालका जल अपरिष्कृतावस्थामें पौनेसे निकल नहीं सकते। सुतरां इन दोनो बाष्पों द्वारा ज्वर, उदरामय प्रभृति नाना प्रकारको पौड़ायें उत्पन्न पित्तवृद्धि होती है। पित्त बढ़ते ही यकृत्में पैत्तिक होती हैं। जल देखो। रताधिक्य उत्पन्न होता और अन्त्रमें भी अधिक शीत ग्रीष्मादिके समय असावधान रहनेसे परिमाणसे पित्त आ पहुंचता है। इस अवस्थामें • उदरामय हो जाता है। ग्रीष्म और शरत्कालमें कभी-कभी यकत्के मध्यमें फोड़ा हो जाता है। दिनको रौद्र-धूप लगने और रातको ठण्डी हवामें अतएव सामान्य उदरामय होनेसे भी कभी निश्चिन्त सोनेसे भी उदरामय उत्पन्न हो सकता है। हठात् न बैठे। धर्म-पसीना रोकनेसे अतिसार उत्पन्न होता है। पित्तातिसारमें पुनः पुनः अल्प-अल्प पतला हरिद्रा- दांत निकलते समय शिशुओंको उदरामय रोग बहुत वर्ण मल निर्गत होता, पेट शूलकी तरह वेदना किया सताता है। इसका विवरण दन्तोद्गम शब्दमें देखी। मल निर्गत होनेसे पहले पेटमें मरोर आहारके दोषसे उदरामय निकलनेपर प्रायः आती है। मलेरिया प्रधान देशमें ऐसे उदरामयके रात्रिकालमें ही पीड़ा उपस्थित हुआ करती है। साथ उत्कट स्वल्पविराम ज्वर ( Remittent fever ) पहले निद्रा नहीं आती, किंवा आनेसे भी शीघ्र टूट रोगीको धर दबाता है। इस अवस्थामें यह जानने- जाती है। इसके बाद सारा पेट कड़ा हो कुछ के लिये विज्ञ चिकित्सकोंका भौ शिर चकरा जाता करता है