पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७४ अतिसार और जौरा, प्रत्येक दो-दो तोले ले। काढ़ेके लिये १२ सेर चाशनी अतीव शीतल होनेसे घी तथा शहद भी इन्द्रयवका बकला ६४ सेर पानी में उबाले और मिलाये और लड्डू बांधे। यह मोदक ग्रहणी १६ सेर पानी बाकी रहनेसे नीचे उतार ले। पहले रोगमें बड़ा उपकार करता है। मूर्च्छित तैलमें इन्द्रयवका क्वाथ डाल दे। सात दिन जौरकादि-मोदक, मेधीमोदक, अग्निकुमार- बाद फिर उसमें दहीका मठा छोड़े। एक सप्ताह मोदक, अग्निकुमाररस, ग्रहणीकपाटरस, ग्रहणी- बाद आठ सेर पानीके साथ उपरि उक्त कल्कद्रव्य सिद्ध गजेन्द्रवटिका, वैद्यनाथवटिका, कनकप्रभावटी प्रभृति करे ; निर्जल हो जानेसे नीचे उतार ले। यह औषध अतिसारादि रोगों में विलक्षण फल दिखाते हैं। सिद्ध किया हुआ तैल आठ दिन तक कल्क समेत एलोपेथी-चिकित्सा-गुरुतर आहारके बाद उदरामय किसी पात्रमें धरा रहने दे पीछे इसे कपड़ेसे छानके उपस्थित होनेसे १५ किंवा २० ग्रेन इपिकाक चूर्ण बोतल में भर रखे । यह तैल अनेक प्रकारसे प्रस्तुत ईषत् उष्ण जलके साथ सेवन करानेसे ही पीड़ा करते हैं। इसे सर्वाङ्गमें मर्दन करनेसे कठिन शान्त हो सकती है। किन्तु दुर्बल व्यक्तिको वमन ग्रहणीमें भी विलक्षण उपकार हो जाता है। कराना उचित नहीं। वमनके बाद पेटमें सञ्चित- प्राणेश्वररस-गन्धक, अभ्न, और पारद प्रत्येक मल रहनेपर मृदु-विरेचक औषधका प्रयोग करनेसे चार-चार माशे ले। सज्जीखार, फुलाया हुआ सुहागा, अच्छा फल होता है। अण्डौका तेल सवा तोले और शोरा, पञ्चलवण, त्रिफला, त्रिकट, इन्द्रयव, जीरा, अफीमका अरिष्ट सात बूंद थोड़ेसे अदरकके रस में स्याहजीरा, चितामूल, यमानी, हींग, बायबिड़ङ्ग और अच्छी तरह मिलाकर सेवन करानेसे उदरवेदना, पित्तपापड़ा प्रत्येक एक-एक माशे डाले। फिर इन आंतका भारोपन प्रभृति कष्ट दूर हो जाते हैं। किन्तु सब चीजोंको एकमें पीस माशे-माशेको वटी बनाये। निकटमें हैजा फूटने किंवा रोगी दुर्बल होनेसे विरे- इस रसका अनुपान मधु और पानका रस है। चक औषधको व्यवस्था करना ठीक नहीं। औषध सेवनके पीछे उष्ण जलको पान कर। अत्यन्त अन्त्र-परिष्कार होनेसे निम्नलिखित औषधको कठिन ज्वरातिसार, त्रिदोषज ग्रहणी प्रभृति उपसर्गों में व्यवस्था करे-रेवाचोनीका अक १० बूंद, सोडा यह विलक्षण फलप्रद होता है। बाईका २० ग्रेन और पीपरमेण्टका जल आध छटांक कामेश्वरमोदक-अच, कायफल, कूट, असगंध, गुर्च, एकमें मिला २४ घण्टेके अनन्तर सेवन करे। उदरमें मेथी, मोचरस, भूमिकुष्माण्ड, कालौमुसली, गोखरू, अत्यन्त वेदना होनेसे उक्त औषधको प्रत्येक मात्राके कुलखाड़े के वीज, केलेकी जड़, शतावर, यमानी, साथ ४ बूंद अफीमका अरिष्ट मिला दे। शिशुओंके उड़द, तिल, धनिया, कचर, गन्धमात्रा, मैनफल, पक्षमें अफीम निषिद्ध है। पेटके अधिक दुखनेपर जायफल, सैन्धव, ब्राह्मणयष्टिका, काकड़ासींगो, तारपोन-तेलके साथ गर्म पानीसे सेंके। पुनः पुनः त्रिकटु, जीरा, स्याहजीरा, चौतामूल, दाल जलवत् अधिक मल निर्गत होनेसे धारक औषध चीनी, तेजपात, छोटी इलायची, नागेश्वर, पुनर्नवा, देना योग्य है। गजपीपल, दाख, सेमरका मुसला, नेत्रबाला, खदिरका अरिष्ट २०बूंद, काईनोका अरिष्ट ३० बंद, कोंचके वीज-यह सब द्रव्य प्रत्येक एक-एक तोले सुगन्ध खड़ियेका चूर्ण १० रत्ती, गंदेका मांड़ सवा तोले संग्रह करे और सूक्ष्म पौस तथा छानके रख ले। और पीपरमेण्टका जल सवा तोले-इन सब द्रव्योंको पोछे उक्त सब औषध-द्रव्योंसे द्विगुण चीनौको चाशनी एकत्र मिश्रितकर इसी तरह एक-एक मात्रा औषध बनाये। जब लडडू बनाने योग्य दो-तीन तारको ६ घण्टेके अनन्तर सेवन करे। सन्धमाके बाद ७ बूंद चाशनी बन जाये, तब पिसे हुए सब औषधोंका चूर्ण | अफीमका अरिष्ट खानेसे धारक होता और सुनिद्रा डालके मिला दे और चूल्हे से नीचे उतार ले। भी आ सकती है। रोगी दुर्बल होनेसे अल्प मात्रामें