पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२८७

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२८० अतीक्षा-अतोस बीता। न हो। अतीक्षण (सं० त्रि०) तीखा नहीं, कुन्द ; तेज । अतीथ- अतिथि देखो। नहीं। अतीतनौका (स. स्त्री०) नावसे उतरा, किनारे अतीचार-अतिचार देखो। लगा। अतीत (स.त्रि.) अति-इन्-क्त । १ गत, गुज़रा, अतीत्वरौ (वै० स्त्री०) दुष्टा स्त्री, बदमाश औरत। २ भूत, हुआ। ३ अतिक्रान्त, अधिक, अतीन्द्र (स० पु०) अतिक्रान्तं इन्द्रं शक्त्या, अतिक्रा०- ज्यादा। ४ मृत, मुर्दा। तत्। १ विष्णु। (त्रि.)२ इन्द्रका अतिक्रमकारी, "लङ्लुङोरतीतत्वम्। लिटक्कसोर्बक्तुः परोक्षत्व' अतीतत्वञ्च । इन्द्रको उल्लङ्घन करनेवाला। लुडोऽतीतत्वं क्रियातिक्रमय । कुतश्चि गुण्यात् क्रियानिष्पत्तिः क्रियाति- अतीन्द्रिय (सं त्रि०) अतिक्रान्तं इन्द्रियं तद्दिषय- क्रमः। वक्तवत्वीरतीतत्वम् ।" (सारमञ्जरौ) बहिर्भूतत्वात्, अतिक्रा० तत् । अप्रत्यक्ष, नजरसे अतीत (सं० पु०) सन्यासी अर्थात् जिसने सांसारिक बाहर ; इन्द्रियोंसे अग्राह्य, जो मन, चक्षु, कर्ण विषय-वासनाओंसे अपना सम्बन्ध परित्याग कर और हस्त आदिसे अग्राह्य हो; परब्रह्म। परब्रह्मको दिया है। अतीत शैव और वैष्णव दोनों हो सकते मनन नहीं कर सकते, वह ज्ञानसे अगोचर है। उसे हैं। भारतवर्ष में आजकलके अतीत अर्थात् सन्यासियों चक्षुसे भी देख नहीं सकते, वह सकल इन्द्रियोंसे के प्रायः चार सम्प्रदाय देखे जाते हैं। यथा- अतीत है। १ भारती, २ गिरि, ३ पुरी और ४ अरुण। यह अतीव (सं० अव्य०) प्रादि-सः। अतिशय, बहुत, गेरुए वस्त्र पहनते और गले में रुद्राक्षको माला डाले ज्यादा ; अतिशय अवधारित । रहते हैं, जो कण्ठी कहलाती है। यह मांस और अतीव्र ( स० त्रि०) तीव्र नहीं ; कुन्द, जो तेज मदिराको व्यवहार नहीं करते और चेलोंको मन्त्र देते घूमा करते हैं। अन्तमें मरते समय अपनी अतोष (स'. पु.) अति-ईष-क, अतिशयन ईष्यते सम्पत्ति चेलोंको सौंप देते हैं। इसके सिवाय गृहस्थ इति। एकजन बङ्गाली परिव्राजक । यह तन्त्रशास्त्र में अतीत अपने दलमें किसी बाहरी आदमीको नहीं विलक्षण रूपसे दक्ष थे,और चिरकाल तक देशदेशान्तरमें मिलाते और हिन्दू धर्मके अनुसार श्राद्ध आदि कर्म धर्म प्रचार करते फिरे थे। सन् १०४२ ई० में यह करते हैं। कहीं-कहीं यह कृषकका भी काम अपनी तिब्बत देशमें पहुंच तान्त्रिक मतका प्रचार करने भूमिमें करते हैं, इन्होंने जागीरको तरह ज़मीन्दारोंसे लगे। तिब्बतवासी बहुकालसे बौद्धधर्मावलम्बी हैं, भूमि पाई है। इनके पुरोहित ब्राह्मण हैं। युक्तप्रदेश किन्तु उनमें कोई अतोषके विरोधी न बने ; वरं बुस्तन मिरजापुरमें यह शवदेहको मुखमें अग्नि डालके गङ्गामें प्रभृति अनेक सुपण्डित व्यक्ति इनके शिष्य हो गये। बहा देते हैं। मृत्युका सूतक दश दिनतक रहता अतीषने तिब्बतमें विस्तर पुस्तकें लिखीं और तिब्बत- ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इनके हाथको भाषामें अनेक पुस्तकोंका अनुवाद भी किया था। कच्ची-पक्की रसोई नहीं खाते ; हां, शूद्र खा लेते हैं। अतौस (हिं. पु.) शिशुभैषज्य । यह ओषधि दूसरे और यह लोग भी आपसमें 'नमो नारायण हिमालयके समीप सिन्धु नदसे कुमायूतक मिलती कहकर अभिवादन करते हैं। है। इसका मूल कटु और तिक्त है। इसके सेवनसे अतीतकाल (सं० पु०) विगत समय ; गुजरा हुआ कफ और पित्त सम्बन्धी पौड़ा, आम, अतिसार, कास, जमाना। ज्वर, यकृत् और कमिसम्बन्धीय पौड़ा प्रभृति रोग अतीतना (हिं.क्रि.) १ जाना, होना, बीतना। छुट जाते हैं। यह पाचक, अग्निसंदीपन और विषघ्न २ गुज़ारना, निकालना। ३ परित्याग करना, होती है। बालकोंकी बीमारीमें यह बहुत काम छोड़ देना। आती है। इसका रंग काला, सफेद और लाल-