पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२८८

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अतिसार-अषित २८२ तीन तरहका होता है। सफेद अतीस अधिक लाभ "मृष्यन्ति वै चोपपति स्त्रीजितानाच सर्वशः । दायक है। अनिर्दशश्च प्रेतान्नमतुष्टिकरमैव च ॥" मनु० ४।२१७ । अतीसार-अतिसार देखो। स्त्रीका उपपति करना जो सह्य कर लेता, और अतीसारकिन्–अतिसारकिन देखी । जो व्यक्ति स्त्रीको बुद्धिसे सब काम किया करता है; अतुङ्ग (सं० त्रि०) ऊंचा नहीं, छोटा, बौने-जैसा। उसका अब, तथा दश दिन गत न होनेसे अशौचका अतुन्द (स. त्रि०) बलिष्ठ नहीं, दुबला पतला, और अच्छा न लगनेवाला अन्न कभी भोजन न करे। कमज़ोर। अतुहिन (वै० त्रि०) ठण्डा नहीं, गर्म । अतुर (वै० त्रि०) १ अनुदार, बखोल। २ दरिद्र, अतुहिनरश्मि (सं० पु०) न तुहिनो न शीतल उष्णो गरीब। रश्मिः किरणोऽस्य। १ सूर्य, आफ़ताब। जिसकी अतुराई (हिं. स्त्री०) १ आतुरता, जल्दबाजी। किरण शीतल न हों, गर्म शुआए। अतुहिन: न तुहिनो २ चञ्चलता, चुलबुलाहट । न शीतल उष्णो रश्मिः किरणः, कर्मधा । उष्ण किरण। अतुराना (हिं० क्रि०) आतुर बनना, जल्दबाजी वेपितुझ्याई खश्च। उण रा५२ । करना, हड़बड़ाना, शीघ्रता दिखाना। अतूतुजि (सं० पु०) न तुज-कि हित्वदीर्धे। कृपण, अतुल (सं० पु०) १ कफ। २ तिलवृक्ष । (त्रि.) कङ्ग्स। ३ तुलना-रहित, जिसके बराबर कोई न हो। अतूथ (हिं० वि०) बहुत ऊंचा, निहायत बुलन्द । अतुलनीय (सं• त्रि०) तुलनारहित, बेजोड़। अतूर्त (वै त्रि०) १ अहिंसित, वेचोट। २ खुला। अतुलित (स० त्रि.) तुलना-रहित, जिसके बराबर ३ सुस्थिर। (क्लो०) ४ परिमित स्थान, महदूद जगह । कोई न हो, न तुला हुआ। अतूर्तदक्ष (वै० त्रि०) उन प्रयत्नोंको धारण करने- अतुल्य (सं० त्रि०) न तुल्यम्। नौ-वयो-धर्म-विष-मूल-मूल- वाला जो रुक नहीं सकते। सौता तुलाभ्य-स्तार्य-तुल्य-प्राप्य-वध्या-नाम्य-सम-समित-संमितेषु । ४४॥ अतूर्तपथिन् (वै त्रि०) वह मार्ग अवलम्बन करने- २१ । असदृश, असमान, अनुपम, बेजोड़, बेअन्दाज, वाला जो रुक न सके। बेहिसाब। अतूल-अतुल देखो अतुल्ययोगिता (सं० स्त्री० ) अलङ्कार-विशेष। यदि अटणाद (सं० त्रि.) न तृणं शष्पादिकमत्तौति, कई पदार्थों का समान धर्म होनेपर भी किसी पदार्थका ढण-अद-अण, नञ्-उपपद । १ढण न खानेवाला, विरुद्ध आचरण प्रदर्शित किया जाये, तो अतुल्य जो घास न चरे। (पु०) २ नया उत्पन्न हुआ बछड़ा। योगिता अलङ्कार होता है। अण्णा (सं० स्त्री) एका लघु परिमाण, अतुष (सं० त्रि०) नास्ति तुषोऽस्मिन् । बिना थोड़ी घास। छिलकेका, विना भूसोका। अदिल (वै० पु०) वृद्-किलच्, न उद्यते बध्यते; अतुषारकर (सं० पु.) सूर्य, आफताब ; जिसकी नञ्-तत् । पर्वत, पहाड़। (त्रि.) २ बधके अयोग्य, किरणें ठण्डौ न हीं। मारनेके नाकाबिल। अतुष्टि (सं. स्त्री० ) असन्तोष, लालच । अप (वै० त्रि०) असन्तुष्ट, आसूदा नहीं। अतुष्टिकर (स० त्रि०) न तुष्टिम् करोतीति, न-तुष्टि अटप्त (सं• त्रि) असन्तुष्ट, सेर नहीं। क-ट आनुकूल्यार्थे । जी हेतुताच्छोल्यानुलोन्येषु। पा ।२।२० । अप्ति (स. स्त्री०) न दृप्तिः सन्तोषः, अभावार्थे असन्तोषकर, अप्रीतिकर, अरुचिकर, नाराज़ी पैदा नञ्-तत्। असन्तोष, आसूदा न होनेको हालत । करनेवाला, मुहब्बत मिटानेवाला, बेलुत्फी फैलाने- अषित (वै० त्रि०) प्यासा नहीं, लालची नहीं ; वाला। जैसे,-- जिसे प्यास या लालच न हो।