पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२९०

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अत्ते बक्काल २८३ समय यदि कोई एक झोंपड़ा जल गया, तो ये दूसरेके बचानेको | एक नारियलमे रहनेको बताये जाते हैं। जून मासमें इसलिये चेष्टा नहीं करते, कि जब एक जला, तब ये अपने पूर्वजोंके सम्मानार्थ भोज देते हैं, जब प्रत्येक दूसरा क्यों बाकी बचे तथा एक आदमी सुख और वंशका एक-एक व्यक्ति आध सेर चावल, एक नारियल दूसरा दुःख क्यों उठाये। आग बुझ जानेसे सब लोग और दो-चार आने पैसे इस कामके लिये ले जाता मिलकर जले हुए झोंपड़े बनानेमें लग जाते हैं। है। इन्हें भूत-प्रेतोंपर सुदृढ़ विश्वास है। विवाहका झोंपड़े में प्रायः यह सामान रहता है-चटाई, मौके निर्धारित करनेके भिन्न इन्हें दूसरे किसी बरतन, बांसको टोकरी, लकड़ीका मोढ़ा, सूप, काममें ब्राह्मण पुरोहितको आवश्यकता नहीं खूटी और चावल कूटनेका मूसल । यह पालेहुए पड़ती। ये देवलिय यानी अपने मन्त्रशास्त्रियोंसे पशुओं का मांस नहीं खाते और शराब पीना या रोग होनेपर मत लेते, जो इन्हें बताते, कि किस दूसरे नशेके पदार्थों का खाना बहुत बुरा समझते हैं। भूतने रोग उपजाया और जो इन्हें रोगशान्ति तथा प्रेत- ये नम्र और परिश्रमी होते हैं। ये पहले बेंतका प्रौतिके लिये बकरे या मुर्गेको बलि चढ़ानेको अनु- काम कर अपनी जीविकाको निर्वाह करते आये हैं; मति प्रदान करते हैं। मासमें चार दिन स्त्रियां अब पान और इलायचौके क्षेत्रोंमें मजदूरी करते अशुद्ध समझी जाती हैं और जन्म या मृत्यु होनेसे और दोनों समय भोजन और दो धान रोज पाते हैं। घरकै सब लोग एक दिन अशुद्ध रहते हैं। धाबी इन्हें युवा बालक हबीग ब्राह्मणों के पशु चराते हैं, जिन्हें प्रति शुद्ध करते हैं। यह जन्मके चौदहवें दिन बालकका मास एक-दो रुपये और भोजन दिया जाता है। ये नाम रखते और बड़े लड़केका हो मुण्डन कराते हैं। अपने लिये खेत नहीं जोतते। ये प्रायः हबीग इनमें बाल्य विवाह प्रचलित है। जब कोई अपने ब्राह्मणोंसे ऊंचे व्याजपर विवाहका खर्च चलाने के लिये लड़केका विवाह करना चाहता है, तब वह अपने बत्तीससे चौंसठ रुपयेतक ऋण लेते हैं, और जबतक सम्बन्धियोंके साथ फूल लेकर किसी चुनी हुई लड़कोके रुपये अदा नहीं होते तबतक अपने महाजनके घरमें बापसे जाकर मिलता है। इसके बाद वह लड़कीका केवल भोजनपर काम किया करते हैं । पुरुष, स्त्री और मूल्य निर्धारित कर उसे दो पान और एक सुपारी बालक सबेरै सातसे वारह और तीसरे प्रहर दोसे छः देता है। इसके बाद लड़केके लोगोंका निमन्त्रण बजेतक मजदूरीमें लगे रहते हैं। पांच आदमी किया जाता है। जब लड़कोकी सगाई हो जाती, मिलकर पांच रुपये में महीने भर अपना निर्वाह तब लड़केका बाप पुरोहितके पास पहुंच चार पान करते हैं। इनके मकानमें दश और असबाबमें पांच पैसे, एक नारियल और एक सेर चावल देता है रुपये खर्च होते हैं। यह अपने कुलदेवता वेङ्कट और विवाहका शुभमुहर्त पूछता है। इसके बाद रमणको कालीतुलसौके वृक्षके नीचे रखते और मंडप बनता और विवाहसे दो दिन पहले जातिक तिरूपती तीर्थयात्रा करने जाते हैं। तीर्थयात्री 'दास' लोग बुलाये जाते हैं। विवाहके दिन सबेरे मंडपमें कहलाते और उनका बड़ा आदर होता है। तीन दिनका भोजन रखा जाता, जिसका अष्टमांश बड़ोंके घरमें प्रति वर्ष एक बार वेङ्कटरमणके पूजार्थ वेंकटरमण देवके लिये केलेके पत्तेपर अलग रहता 'हरिदिन' अर्थात् विष्णुका एक महोत्सव सम्पन्न किया है। फिर वरपक्षके दो-तीन आदमी कन्याके घर जाता है। इसके दूसरे देवता मलिकार्जुनका मन्दिर पान-सुपारी लेकर पहुंचते और उसके माता-पितास गोआमें कोकणपर बना है। नवम्बरमें जब वहां मेला कहते हैं, कि वरको बरात तय्यार है। दूसरे दिन लगता है, तब इनके प्रत्येक भवनसे एक-एक मनुष्य सन्ध्याको भोजनके बाद वरपक्षक दी आदमी कन्याके दर्शन करने जाता है। यह अपने पूर्वजोंको भी घर दो पैसे और पान-सुपारीसे भरे दो थाल लेकर पूजा करते हैं, जो रसोईके चूढेके पास वेदोके उपर जात और कन्याके पिताको देवताकी भेंटके लिये दे