पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३८१

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३७४ अध्यशन-अध्यात्मिक धानको कुटाई, जो एकबार चावलको भूसी निकल आनन्द लेनेवाला व्यक्ति, जो शख्स परमेश्वर या रूहके जानपर फिर की जाती है। खयालमें मस्त रहे। अध्यशन (स० क्लो०) अधिकं अशनम् । अतिभोजन ; अध्यात्मरामायण (सं० लो०) आत्मानमधिकृत्य कृतं हदसे ज्यादा गिजा, जो अजीर्ण या बदहज़मी रहते रामस्य अयनं शास्त्रम्। ब्रह्माण्डपुराणान्तर्गत सप्त- भी खाया जाये। इसका लक्षण यों कहा गया है, काण्डात्मक ग्रन्थविशेष। प्राचीन पुराणोंकी उप- क्रमणिकामें बात कहनेको यह प्रथा रहौ, कि "अजीर्ण भुज्यते यत्तु तदध्यशनमुच्यते । प्राग्भुक्त वनले मन्द हिरहो न समाहरेत् ॥ कलिकालमें जब पृथिवी पापभारसे भारी पड़तो, प्रातराश त्वजीणे तु सायमाशो न टुष्यति । तब जीवके परित्राणका क्या उपाय होता था। पूर्वभुक्त विदग्धेऽन्ने भुनानो हन्ति पावकम् ॥ अध्यात्मरामायणके आदिमें भी लेखकने यहो प्रथा सायमाशे त्वजीणं तु प्रातभुक्त' विधोपमम् ।" पकड़ गल्पको आरम्भ किया है। नारदने ब्रह्माके (वैद्यकनिघण्ट दिनचर्या ) पास पहुंच पूछा, कि कलिकालमें लोग नाना प्रकारके अध्यस्त (सं० त्रि०) अधि-अस-क्त कर्मणि । १ कृता पापकर्म करेंगे ; उससे उनके निस्तारका क्या उपाय ध्यास, ऊपर रखा गया। २ आरोपित, खयालो। है? कमलयोनि ब्रह्माने कहा, कि एक समय ३ छिपा हुआ, पोशीदा। महादेवने पार्वतीको अध्यात्मरामायण सुनाया था ; अध्यस्थि (सं० लो) अस्थिके ऊपरको अस्थि, कलिके लोग वह उपाख्यान सुननेसे हो मुक्त होंगे। जो हड्डी हडडीपर जमती है। लेखकने यह भूमिका बना वाल्मीकिरामायणको अध्याण्डा, अध्यण्डा देखो। संक्षेपसे दूसरी कथामें नकल उतारो है। यह नहीं अध्यात्म (सं अव्य.) आत्मानं देहमिन्द्रियादिकं कहा जा सकता, कि अध्यात्मरामायणका प्रकृत क्षेत्रज्ञ ब्रह्म वा अधिकृत्य । अनय । पा ५।४।१०८। आत्मा लेखक कौन था। जो हो, पुस्तक अधिक पुरातन अथवा ब्रह्मको अधिकार कर, रूह या परमेश्वरको नहीं। आदिकाण्डमें लिखा है,- बाबत। (लो०) २ परब्रह्म, परमेश्वर। (त्रि०) "बहुना किमिहोतेन एणु नारद तत्त्वतः । ३ आत्मविषयक, रूहानी। श्रुतिस्मृतिपुराणेतिहासागमशतानि च । अध्यात्मकवायु (सं० पु०) न्यायमतसे प्राणाख्य वायु, अईन्ति नाल्पामध्यात्मरामायणकलामपि।" हवा जिसे प्राणाख्य कहते है। 'हे नारद! इस विषयमें अधिक कहनेसे क्या अध्यात्मचेतस (स० पु.) ईश्वरका ध्यान करने फल है ? मैं मुख्य बात कहता हूं, सुनिये । शत-शत वाला व्यक्ति, जो शख्स परमेश्वत का चिन्तन कर। श्रुति, स्मृति, पुराण, इतिहास, आगम प्रभृति अध्यात्मज्ञान (सं० लो०) ईश्वर अथवा आत्माका अध्यात्मरामायणको एक अल्प कलाके बराबर भो नहों ज्ञान, परमेश्वर या रूहका इला। हो सकते। अध्यात्मदृश् (सं० त्रि०) अध्यात्मं पश्यतीति, दृश- अध्यात्मविद्, अध्यात्मदृश् देखो। क्विन् । आत्मन्न, विषयादि व्यापार-शून्य होकर जो केवल अध्यात्मविद्या. (सं० स्त्रो) अध्यात्मज्ञान देखी। आत्माको देखे ; रूहका राज समझनेवाला, जो सब अध्यात्मशास्त्र (स क्लो०) अध्यात्मप्रतिपादकं शास्त्रम् । दुनियाके सब काम छोड़ सिपर निगाह डाले। शास्त्रग्रन्थ जिसमें अध्यात्मयोगादिका विषय लिखा हो। अध्यात्मयोग (सं० पु०) भागसधिकृत्य योगः। अध्यात्मा (सं० लो०) परमेश्वर, भगवान् । विषयव्यापारसे हटा केवल अात्मतत्व में मनोनिवेश, अध्यात्मिक, आध्यात्मिक (सं० त्रि०) परमात्मा अथवा दुनियाको बातोंसे खींच रूही एलजी 'टलका लगाव । जीवात्मा-सम्बन्धीय, जिसका लगाव ईश्वर या अध्यात्मरति (स० पु०) ईश्वर या आत्माके विचारमें रूहसे हो।