पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३९२

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अनतिविलम्बिता -अनद्यतन जाये; नहीं। माधुर्यका गुण ; राग उत्पन्न हो; ८ महार्थता-अर्थक गौरवका हैं। कहीं-कहीं शिष्टत्वको जगह लिष्टत्व और गुण ; ८ अव्याहतत्व-ऐसा गुण जो खण्डन न किया अममंबोधितौदार्यको जगह अममेवेधितौदार्य लिखा है। १० शिष्टत्व-शिष्टप्रयोगका गुण अर्थात् अनत्यन्तगति ( स० स्वा० ) १ सामान्य शब्दोका ग्राम्यादि दोषको परिशून्यता; ११ संशयासम्भव अर्थ, आम लफ़्जोंके माने । २ गति जो अधिक न ऐसा गुण जिसमें संशय उत्पन्न न हो सके ; १२ निरा हो, जो चाल ज्यादा ज़ोरको नहीं। कृतान्योत्तरत्व-ऐसा गुण जिससे दूसरेका प्रतिकूल अनत्यय ( स० वि०) विनाशशून्य, खण्डरहित ; उत्तर खण्डित हो सके ; १३ हृदयङ्गमिता-ऐसा लाजवाल, समूचा; जो मिट न सके, टूटा हुआ नहीं। गुण जिससे भाव सहजमें हृदयगत हो जाये ; १४ अनत्युद्य (वै० त्रि०) वर्णन करनेको पूर्ण रूपसे मिथःसाकाङ्क्षता-वह गुण जिसमें वाक्यको परस्पर अयोग्य, जिक्र करनेके लिये बिलकुल नाकाबिल । आकङक्षा या सम्बन्ध रहे; १५ प्रस्तावौचित्य- अनदत् (सं० त्रि०) भोजन न करता हुआ, जो खाता प्रस्तावानुरूप वाक्य प्रयुक्त करनेवाला गुण ; १६ तत्त्व- हुअा नहीं। निष्ठता-वाक्यको सारगर्भता या उसके गूढाथका अनदेखा (हिं० वि०) न देखा हुआ, जो देखा न गुण; १७ अप्रकीर्णप्रसृतत्त्व-सुशृङ्खल अर्थात् गया हो। अमिश्रित रूपको विस्तृति या फैलाव; १८ असंश्लाघ्य- अनद्या, अनधो (वै० अव्य०) न अड्वा । १ अनिश्चित लाध्य-शून्यता; १८ अनिन्दितता-निन्दा-शूतन्या; रूपसे, अयथार्थ रूपसे ; सच्चे तौरपर नहीं, दरअसल २० आभिजात्य-पाण्डित्य-गुणको प्रकाशकता; २ अप्रकाश्यरूपसे, साफ-साफ नहीं। २१ अतिस्निग्ध-मधुरत्व-अतिशय कोमलत्व और 'तत्त्वे त्वद्धाञ्जसाइयम् ।' ( इत्यमरः) (त्रि.) नह-ती, नञ्- २२ प्रशस्यता-प्रशस्त शब्द और तत्। ३ अपरिबद्ध ; न बंधा हुआ, खुला। उत्कृष्ट भावादिके प्रयोगका गुण ; २३ अमर्मबोधितौ- अनदापुरुष (वै० पु०) न अड्डा स्वकार्ये निश्चयो यस्य दार्य-अर्थका ईषत् प्रच्छन्नभाव और उसकी सरलताका तादृशः पुरुषः। देव-पिट-कार्यसे विमुख व्यक्ति, जो गुण; २४ धर्मार्थप्रतिविद्धता-धर्मार्थयुक्त गुण; आदमी पूजा-पाठ और श्राद्ध-तर्पण न करे। २५ कारकाद्यविपर्यास-ऐसा गुण जिसमें कारकादि- अनद्धा-मिश्रित-वचन (सं० क्लौ०) जैन-मतसे- का परस्पर सच्चा अन्वय लगे; २६ विनमादि समयके विषयमें असत्य-कथन, वक्त बतानेको वियुक्तता-भ्रमशून्यता; २७ चित्रकत्व-पद्मादिके झूटी बात। चित्रकी रचनासे मिला गुण या चमत्कारकारित्व ; अनद्य (सं० पु०) न अद्यः भक्ष्यः, अप्राशस्ते नञ्-तत् । १८ अद्भुतत्व-कौतुकोत्पादक गुण ; २८ अनति- १ गौर सर्षप, सफेद सरसों। (त्रि.) २ अभक्ष्य, विलम्बिता-अधिक विलम्बसे अर्थक बोध न होनेका खानेके नाकाबिल। गुण; ३० अनेकजातिवैचित्रा-नानाप्रकारसे अर्थ अनद्यतन (सं० पु०) नञ्-तत्। अद्यतन भिन्न भूत अलङ्कार या छन्दकी विचित्रता; ३१ आरोपितविश भविष्यत् काल, जमाना जो मौजूद रोजमें काम न षता-एक वस्तुमें दूसरी वस्तुवाले धर्मके आरोपका आये। अद्यतन देखो। गत रात्रिके अन्तिम दो प्रहर गुण; ३२ सत्त्वप्रधानता-सत्त्वगुणके प्राधान्यको ओर आगामौ रात्रिके प्रथम दो प्रहर, इन दोनोके प्रकाशिता; ३३ वर्णपदवाक्यविविक्तता-वर्ण, पद मध्यका समस्त दिवस परित्यागकर अवशिष्ट विगत और वाक्यमें परस्पर भेदके लिये विच्छेदको रक्षा; या भविष्यत् समय अनद्यतन कहलाता है। गत ३४ अव्युस्थिति-विरोधका राहित्य और ३५ अखे अर्धरात्रके प्रथम समयका भूत-अनद्यतन और दित्व-खेदको शून्यता। आगामी अर्धरात्रके पिछले समयका नाम भविष्यत् पुस्तकविशेषमें वाग्गुणके कई पाठान्तर विद्यमान अनद्यतन है। 97