पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४०३

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- अनन्तर-अनन्तराशि: अनन्तर (स० त्रि०) नास्ति अन्तरं व्यवधानं यत्र, और जिसका पिता उसकी मातासे एक वर्ण ऊंचा नञ्-तत्। १ व्यवधान-रहित, जिसके बीच में कोई रहे, क्रमोढ़ा स्त्रीजात पुत्र । रोक न हो। २ अनवकाश, जिसे समय न मिले। "सजातिजानन्तरजाः षट्सुताः दिजधर्मिणः।" (मनु) पूर्वकालमें चारो वर्णको कन्यासे विवाह कर ३ पश्चात्, पिछला। ४ अविलम्ब, जल्द । ५ व्यवधान- भिन्न, रोकसे ख़ालो। अव्यवधान दो तरहका होता लेनेको चाल थी। ब्राह्मण यदि पहले ब्राह्मण-कन्या, है-देशमें और कालमें। देशके अव्यवधानका उदा फिर क्षत्रिय-कन्या, फिर वैश्य-कन्या और फिर शूद्र हरण लीजिये- कन्यासे विवाह करता अर्थात् वर्णानुक्रमसे अन्यथा न जाता, तो वह सब क्रमोढ़ा कहाती थीं। क्षत्रियादि "कुरुक्ष्वञ्च मत्स्वाथ पञ्चालाः शूरसेनकाः । एष ब्रह्मर्षि देशी वे ब्रह्मावदिनन्तरः ॥" (मनु श१८) भी इसीतरह क्रमान्वयमें अपने-अपनसे नीचे वर्णकी 'ब्रह्मावर्तके बाद कुरुक्षेत्र, मत्स्य, पञ्चाल और कन्याके साथ विवाह कर सकते थे। अर्थात् ब्राह्मणके औरस और विवाहित-क्षत्रियकन्याके गर्भसे जो पुत्र शूरसेनक-यह सब ब्रह्मर्षिदेश हैं।' फिर देखिये,- "अयन्त्वनन्तरस्तस्मादपि राना भविष्यति।” (महाभारत ११११५।२१।) उत्पन्न होता, वह अनन्तरज है। इसीतरह क्षत्रिय 'यह उसके बाद राजा होगा। कालका व्यवधान और वैश्यकन्या, तथा वैश्य और शूद्रकन्याजात पुत्र अनन्तरज होता है। ३ बड़ा या छोटा भाई। “सर्गशेषप्रणयनादिश्चयो नेरनन्तरम् । अनन्तरजात, अनन्तरज देखो। पुरातनाः पुराविदृभिर्धातार इति कीर्तिताः ॥" (कुमार० हारा) अनन्तरन्धका (सं० स्त्री०) खपर-पोलिका। 'ब्रह्माको, बाकी सृष्टि पीछे रचनेसे पुराविद् अनन्तराम-१ वैष्णवधर्म-मीमांसाकार। २ विवाद- व्यासादि पुरातन धाता कहते हैं।' चन्द्रिका और स्वत्वरहस्य नामसे ग्रन्थकार । ३ खानु- अथातो धर्मजिज्ञासा वेदाध्यायादनन्तरम् ।" (स्मृति ) भूति नामसे संस्कृत नाटक रचयिता। ४ कपूरस्तव- वेदाध्ययनके अनन्तर धर्मजिज्ञासा अच्छी है। टीकाकार। ५ दत्तकदीधिति नामक धर्मग्रन्थकार। इन सकल स्थानों में उत्तर-कालपर व्यवधान देख अनन्तराम-विद्यावागीश-रामचरण न्यायालङ्कारके पुत्र, पड़ता है। कहीं-कहीं पूर्वकालमें भी अव्यवधान सहानुमरणविवेक-रचयिता। रहाता है,- अनन्तराय (सं० वि०) नास्ति अन्तरायः प्रतिबन्धको "अनन्तरीदौरित लनभाजी पादौ यदीया बुपजातवस्ताः।" यस्य, बहुव्री०। १ निष्पतिबन्धक, निर्विघ्न ; बेखटके । छन्दोमञ्ज में प्रथम इन्द्रवजा और उपेन्द्रवज्चाका (अव्य०) २ निर्विघ्न रूपसे, बेखटके । लक्षण बता कविने फिर लिखा है, कि जिसका पाद- अनन्तराशि (सं० पु०) अनन्तस्य आकाशरूपशून्यस्य इय पूर्वोक्त लक्षणहयके लक्षणसे आक्रान्त हो, उसे राशिः, ६-तत्। १ वीजगणितवाले शून्य भागहरणादि- उपजाति वृत्त कहते हैं। इस बातसे स्पष्ट हो पूर्व- के लिये एक कल्पित राशि, वह मानी हुई जिन्स जिससे कालमें अव्यवधान देख पड़ता है। अनन्तर शब्दको वीजगणितका ख़ाली तकसीम किया जाता है। अनन्तो कोई-कोई क्लीवलिङ्ग बताता है ; किन्तु यह भूल है, राशिः, कर्मधा० । २ वह राशि जिसका कोई अन्त ठीक नहीं। नहीं, पूरी न होनेवाली जिन्स। ३ अनिर्दिष्ट राशि, अनन्तरज (सं० वि०) अनन्तरं जायते, जन-ड ; उप. अनिश्चित राशि, जिन्स जिसका कोई ठिकाना नहीं। । स.। १ अनन्तरजात, पश्चात्जात ; पीछे पैदा हुआ। (indeterminate quantity) उदाहरण उठाइये,- (सं० पु.) अनन्तरस्या अनन्तरवर्णायाः स्त्रियाः ) जायते, जन-ड; ५-तत् । 'सर्वनानी इत्तिमा पुवभावः' इति भाष्यम् । २ पुत्र, जिसकी माता क्षत्रिय या वैश्य हो, ४० ३०