पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४४७

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४४० अनिवेद-अनिलारिरस अनिर्वेद (सं० पु० ) न निवेदः, नञ्-तत् । १ असन्तोष, | अनिलयन (सं० त्रि०) शहरहित, लामकां, जो नाराजौ। २ वैराग्यका न बढ़ना। ३ मोहका न कोई बंधा घर न रखता हो। मढ़ना, मुहब्बतका न मचलना। अनिलरस (सं० पु०) रसविशेष जो पाण्डुरोगपर अनिर्वेश ( स० वि०) नियुक्तिविहीन, बेकार, दुर्दशा- चलता है। ग्रस्त, कमबख्त। अनिलरिपु ( स० पु०) एरण्ड वृक्ष, अण्डेका दरख त । अनिल (सं० पु०) अन-इलच । १ वायु, हवा। अनिलव्याधि (सं० पु०) आन्तर वायुका विपर्यय, इसका विस्तारित विवरण वायु शब्दमें देखी। २ वसुविशेष। भीतरी वायुका बिगड़ जाना, वातरोगविशेष, वायुको 'अनिलो वसुवातयोः' । ( मेदिनी) ३ चन्द्रवंशके नृपतिविशेष । खास बीमारी। यह तंसुके पुत्र रहे। दुष्मान्तादि इनके चार सन्तान | अनिलसख (सं० पु० ) अनिलस्य वायोः सखा, टजन्त हुए थे। यही दुष्मान्त भरतके पिता शकुन्तलानाटक ६-तत्। अग्नि, आग। हवा लगनेसे आग खुब के नायक हैं। (विषापुराण ४१सार) धधकती, इसौसे अनिलसख या हवाका दोस्त ३ वातरोग, गठिया, लकवा वगैरह वायुको कहलाती है। बीमारी । ४ शाकतरु, साखूका दरख त । (Capparis | अनिलहर (स० क्लो०) कृष्ण अगुरु, काला देवदारु । Trigoliata) अनिला (स. स्त्री०) १ नदी, दरया। २ खटिका, अनिलकपित्थक (सं० पु०) स्थूलाम्नातक, बड़ा खड़िया मट्टी। अमरा। अनिलाजीर्ण (सं० क्लो० ) वाताजीर्ण, वायु बिगड़नेसे अनिलकारक (स'० पु०) काजिक विशेष, खौलते पैदा हुई बदहजमी। चावलका मांड। अनिलाटिका (सं० स्त्री० ) रक्तपुननेवा। अनिलकुमार (सं० पु०) १ पवनतनय, हनूमान् । अनिलात्मज (सं० पु०) वायुपुत्र। हनुमान् और भीमसेन २ जैन देवविशेष, जैनियोंके खास देवता। दोनो ही पवनके पुत्र रहे। अनिलघ्न, अनिलघ्नक (सं० पु.) अनिलं वातरोगं अनिलान्तक (स'• पु०) अन्तं करोतीति ; अन्त- हन्ति, हन-टक् । सज्ञायां कन् । पा. ४।३।१४७। १ विभौतक णिच्-खुल्-अन्तकः, अनिलस्य वायुरोगस्य अन्तको वृक्ष, बहेरेका पेड़। (Terminalia Belerica) (त्रि.) नाशकः। इङ्ग दोवृक्ष, अङ्गारपुष्प, अङ्गोट । २ वातरोगनाशन, वायुको बीमारी मिटानेवाला। अनिलापहा (सं० पु० ) रक्तकुलस्थक, लाल कुरथी। अनिलज्वर (सं० पु०) वातिकज्वर, वायुका बुख़ार। अनिलामय (सं० पु०) अनिलेन दुष्टवायुना उद्भावित यह साम और निराम भेदसे दो तरहका होता है। आमयः पौड़ा, शाक• तत्। वायुरोग, वातव्याधि, अनिलनिर्यास (स० पु.) प्रियालवृक्ष, पौतसालक : वायुको बीमारी। एक तरहका दरख त । अनिलायन (स० लो०) वायुपथ, हवाको राह, अनिलपर्यय, अनिलपर्याय (सं० पु०) वायुरोगविशेष, जिस डगरसे हवा निकले। जिसमें पलकपर आंखका बाहरी भाग सूजता और अनिलारिरस (स० पु०) वातव्याधिके अधिकारका रस, जो खाक वायुको बीमारीपर चले,- अनिलप्रकृति (सं० वि०) वायुको प्रकृति रखनेवाला। "रसन गन्धं दिगुणं विमद्य वातारिनिर्गुण्डिरसैदिनकं । अनिलभुक् (सं० पु०) सर्प, सांप। सांप हवाको निवेशयेत्ताममये पुटे तत्सर्व मृदावेष्टा च वालुकाख्ये । खाकर जीता-जागता, इसीसे अनिलभुक् कहाता है। यन्त्र पुटे गोमय संवौ स्वभावशीते तु समुद्धरत्तत् । अनिलम्भसमाधि (सं० पु०) जैनशास्त्रोक्त समाधिविशेष, निगुडिकावातहरा नितीयः संच खं यब न विभावयेत्तत् ॥" जैनियोंके ध्यान लगानेका खास तरीक। (रसेन्द्रसारस'ग्रह). दुखता है।