पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४६९

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४६२ अनुपरिश्रित्-अनुपस्थापित अनुपरिचित् (स अव्य०) वृत्ताकार परिधिपर, । अनुपशान्त (स० त्रि.) अशान्त, अस्थिर, जो ठण्डा जहां चारो ओर घेरा बना हो। न हो, भड़क उठनेवाला। अनुपलक्षित (सं० त्रि०) न उपलक्षितं सविशेष- अनुपश्य (सं० त्रि०) अपनी प्राकृतिका अनुयायी, मवगतम् । विशेषरूपसे अविदित, अविवेचित, जिसका जो अपनी शक्ल के मुवाफिक रहे, दृष्टि अथवा हृदयमें पता न लगा हो, नामालूम, बेनिशान्, बेपहुंच । रखनेवाला, जो किसी बातको नज़र या खयालमें अनुपलक्ष्य (सं. त्रि.) विवेचनाके अयोग्य, चढ़ाये रखे। समझनेके नाकाबिल, जिसका पता न लगे, जिसे ढूढ अनुपसंहारिन् (सं• त्रि०) १ जो उपसंहारकर्ता न सकें। न हो, मार न डालनेवाला। २ न्यायमतसे दुष्ट अनुपलक्ष्यवमन् (सं० त्रि०) अनुसन्धानशून्य मार्ग हेतु-विशेष-विशिष्ट, जिसमें कोई बुरा सबब लगा हो। विशिष्ट, पता न लगने काबिल राह रखनेवाला, जिस- अनुपसर्ग ( स० पु०) १ उपसर्गभिन्न शब्द, जो को राह ढूढे न मिले। लफ ज ज न हो। २ संयोजनाको आवश्यकता न अनुपलब्ध (सं० त्रि.) अप्राप्त, अविदित, अनिश्चित, रखनेवाला द्रव्य, जिस चीज़में जोड़ने मिलानेको नायाब, नामालूम, बैठौर-ठीक । ज़रूरत न पड़े। अनुपलब्धि ( स० स्त्री० ) न उपलब्धिः, अभावे नञ्- | अनुपसेचन (सं० त्रि०) नास्ति उपसेचनं व्यञ्जनं तत्। लाभका अभाव, प्रत्यक्षका न पाना, अप्राप्ति, यत्र। दध्यादि व्यञ्जन-शून्य, जिसमें दही वगैरह लाइल्मी, बैसमझी। ज़ायकेको चीज न पड़ी हो। यह शब्द भोजनका अनुपलब्धिसम - (सं० पु.) मिथ्याहेतु, दलोले- विशेषण ठहरता है। बातिल, किसी झूठी बातको समझ-बूझकर साबित अनुपस्कृत (सं० त्रि०) उप-कप्रतियत्नाद्यर्थेषु क्त-सुट्- करने की कोशिश। (स्त्री.) अनुपलब्धिसमा। उपस्कृतम् ; न उपस्कृतम्, नञ्-तत्। उपात् प्रतियववकृत- अनुपलभ्यमान (सं० त्रि०) विदित न होता हुवा, वाक्याध्याहारेषु। पा ॥१॥१३९ । १ असमाप्त, अरञ्जित, खत्म जो मालूम न पड़ता हो। न हुवा, नातराश, जो पूरा न पड़ा या जिसपर अनुपलम्भ (सं० पु०) अनुपलब्ध देखो। सैकल न लगा हो। २ विकारशून्य, न बिगड़ा हुवा, अनुपलम्भन (सं० ली.) अनुपलब्ध देखी। जो विकत न हो। ३ अनावश्यक, जिसकी ज़रूरत अनुपवीत (सं• पु.) न उपवीतः । उपनयन न पड़ी हो। संस्कारसे रहित दिज, जिस हिजका यज्ञोपवीत न अनुपस्थान (सं० क्लो० ) न उपस्थानम्, अभावाथ हुवा हो, जिस ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्यको जनेऊ न नज-तत्। उपस्थानका अभाव, पास न रहनेको दिया रहे। अनुपवीतिन्, अनुपवीत देखो। स्थिति, गैरहाजिरी, जिस हालतमें नज़दीक न रहें। अनुपशम (सं० पु.) न उपशमः शान्तिः, अभावार्थे (त्रि.) नज-बहुव्री०। २ उपस्थानशून्य, उपासना. नञ्-तत्। शान्ति का अभाव, अमनका न मिलना, रहित, उपस्थितिविहीन, गैरहाजिर, पास मौजूद चैनका न चेहकना, बेचैनौ, घबराहट । न रहनेवाला, जो आस-पास देख न पड़े। अनुपशय (सं० पु०) रोगबर्धक द्रव्य-विशेष, जिस अनुपस्थापन ( स० क्लो० ) १ अनुपपत्ति, अनुपस्थिति, चीज़से बीमारी बढ़ जाये।- दानका अभाव, पैदाका न होना, किसी चीजका न "हेतुव्याधिविपर्यस्तविपर्यस्तार्थकारिणाम्। रखना, न देनेको बात। २ गैरहाजिरी या नातय्यारी। पौषधानविहाराणामुपयोगं सुखावहम् ॥ अनुपस्थापयत् (सं० त्रि०) उपस्थित न रहते हुवा, विद्यादपशयं व्याधैः सहि सामामिति मा तः । जो हाज़िर न रहे। विपरीतोऽनुपशयो व्याध्य सात्मयाभिस जितः ॥" (माधव निदान) अनुपस्थापित (सं० वि०) अनुपस्थित, नातय्यार,