पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४७०

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अनुपस्थाप्य- -अनुपात ४६३ दूरगत, जो नजदोक न हो, अप्रदत्त अथवा अनत्पन्न, अवयवक विषयमें जो सम्बन्ध बंधता, उसे अनुपात न दिया या न पैदा किया गया। कहते हैं। अनुपातसे मालूम पड़ता,-प्रथम राशि अनुपस्थाप्य (सं० त्रि०) उप-स्था-णिच्-यत्, न उप दूसरे राशिके कितने गुण या कितने भागका कितना स्थाप्यम् । १ अस्मरणीय, न काबिल याद। २जी रखने अंश है। काबिल न रहे। जैसे १२ राशिको ३ अङ्गके साथ मिलाने में देखते, अनुपस्थापिन् (स' त्रि०) अनुपस्थित, गैरहाजिर, कि १२ राशिके भीतर चौगुना ३ विद्यमान है। दूरस्थित, दूर-दराज। इसौसे १२ और ३ इन दो अङ्कका अनुपात समझनेके अनुपस्थित (सं० त्रि०) १ समीपमें अनागत, पास न लिये १२को ३से भाग लगाना पड़ता है, १२+३=४ । पहुंचा हुवा, उपस्थित नहीं, गैरहाजिर, दूरस्थ, अनुपातका साङ्केतिक चिह्न विसर्ग-जैसा विन्दुद्दय जो नजदीक न हो, अप्रवाहित, रुका हुवा । (क्लो०) (:) होता है। वही दोनो विन्दु राशिके मध्य २ व्याकरण में उपस्थित-भिन्न शब्द, जो लफ्ज लगाना पड़ते हैं। जैसे, १२ : ४ है। ऐसे स्थान में 'उपस्थित न कहलाये। प्रथम राशिको आदिम राशि ( Antecedent) और अनुपस्थिति (स० स्त्री०) उप-स्था-क्तिन्, न उप द्वितीय राशिको अन्तिम राशि (Consequent) कहते स्थितिः, न-तत्। १ उपस्थितिका अभाव, न रहना, हैं। क्योंकि ३: ५=३५, जिससे ३: ५= ३ । गैरहाजिरी, मौजूद न होनेको हालत। २ स्म तिका अथात् किसी अनुपातको सामान्य भग्नांशके आकार में अभाव, याददाश्तका न रहना, किसी बातको भूल । ला सकते हैं। इसीसे किसी अनुपातके उभय अनुपहत (सं० त्रि०) न उपहतम् । १ आघातश न्य, राशिका विशेष अङ्कसे गुण या भाग लगानेपर पूर्व बे-जखम, चोट न खाये हुवा, जो मारा न गया अनुपातमें कुछ नहीं घटता-बढ़ता। २ अशुद्ध न किया हुवा, जो नापाक न बनाया क: ख खरल। भनांश देखो। अतएव क :ख गया हो। (ली. ) ३ नूतन वस्त्र, जो कपड़ा नया =क.ल: ख. ल । और कभी पहनने में न पाया हो। अनुपातको उभय राशि समान रहनेसे साम्या- अनुपहतक्रुष्ट (सं० वि०) बौद्ध मतसे-हानि अथवा नुपात ( Ratio of equality) कहते हैं। साम्या- क्रोधसे अप्रतिहत, जिसपर नुकसान या गुस्ने का नुपातमें उभय राशिका मान १ पड़ता है। उभय असर न पड़ा हो। राशि असमान होनेपर वैषम्यानुपात ( Ratio of in- अनुपाकृत (सत्रि.) उप-आ-क-त, न उपाकृतम् । equality ) कहाता है। ऐसे स्थलका मान १ को १ संस्कारपूर्वक वेदग्रहणरहित, जिसे संस्कारके साथ अपेक्षा न्यून अथवा अधिक भी हो सकता है। प्रथम वेद न दिया गया हो। २ संस्कारपूर्वक पशुहननरहित, राशि परके राशिसे गुरु होनेपर गुरुवैषम्यानुपात जिसने कायदेसे यज्ञके अर्थ पशुवध न किया हो। ( Ratio of greater inequality) ठहरता है। ३ यनीय कर्मके अर्चना योग्य न बनाया गया, जो ऐसे स्थलका मान १से अधिक रहा करता है। जैसे, यज्ञ के काम काबिल न हुवा हो। ५ : ३= = १३। प्रथम राशि परके राशिसे अनुपाख्य ( स० वि०) स्पष्टरूपसे विवेचनाके अयोग्य, जो साफ-साफ. समझ न पड़े। कम होनेपर लघुवैषम्यानुपात पाते हैं। इसका मान अनुपात (सं० पु०) राशियमध्ये अवयवसम्बन्धानु १से अल्प पड़ता है। जैसे, ३ : ५= । गतः पातः। पाटौगणित और वीजगणितोक्त अङ्क- दो अनुपातके मध्य गुरु और लघु निकालनेको विशेष, हिसाबको खास जिन्स । (Ratio) उन्हें सामान्य भग्नांश बना डाले। ५६ और.७:८ किसी राशिके साथ दूसरे किसी राशिका गुणनीय । इनके मध्य कौनसा गुरु है ? क कल