पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४९०

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अनुमृता-अनुमोदक ४८३ लाश पड़े सड़ते रहती थी। जितने दिन लाश पड़े ज्वालासे छटपटा कोई-कोई सती चितासे नीचे गिर सड़ती, उतने दिन पर्यन्त हतभाग्य विधवा नारी जाती थी। चिताभ्रष्ट सतीको प्राजापत्य प्रायश्चित्त कुछ भी न खाते रहो। उठाना पड़ता है। प्रायश्चित्तके बाद गृहस्थ उसे फिर अन्त्येष्टिक्रियाका आयोजन जुटा मृतदेहको घरमें घुसने न देते। इसीसे मुर्देफरोश उसे ले जाते चितापर रखते थे। प्रेत-पिण्डादि दिये जाने बाद रहे। इस कारण कदाचित् चितासे किसी स्त्रीके नापित सतौका नख काटता, पीछे वह अलङ्कार नीचे गिर पड़नेपर आत्मीय वजन उसके शिरमें लठ निकाल, हाथको चूड़ी फोड़ नहाती-धोती; स्नान फटकार उसका प्राण निकाल डालते थे। चिताका हो जानेसे आत्मीय स्वजन उसे कफ़न पहनाते, रंगे प्रदक्षिण लगाते समय अनेकके शरीरसे धर्मधारा डोरसे हाथमें महावर बांधते, बालों में कडी लगाते बह चलती और अल्पक्षण बाद ही वह मूळ खा और कपालपर सिन्दूर चढ़ा देते। ऐसी वेशभूषा गिरती। कोई-कोई ऐसे समय मर भी गयो है। बननेपर सती, आचमनकर तिल, जल और कुश जिन्होंने यह सकल घटना प्रत्यक्ष देखी, अद्यावधि हाथमें ले पूर्वमुख यों सङ्कल्प लगाते रहो,- वह बृद्ध लोग जीवित हैं। "अद्यामुकै मासि अमुकै पचे अमुकै तिथौ अमुक गोवा श्रीमती अमुकी उस कालमें सहमरण देखनेके निमित्त बालक, देवी अरुन्धतीसमाचारत्वपूर्वक स्वर्गलोकमहीयमानत्व मानवाधिकरणक बालिका एवं अनेक सधवा स्त्री श्मशान पहुंचती 'लोमसंख्याब्दावच्छिन्न वर्गवास भर्तृ सहित मोदमानत्व मातृपितृश्वशुरकुलवय और सतीके हाथको फूटी चूड़ी, कपालका सिन्दूर पूतत्व चतुर्दशेन्द्रावच्छिन्न-कालाचिकरणकाप्सरोगणस्त यमानत्व पतिसहित और बिखरा हुवा लावा बटोर लाती थीं। कोई क्रीड़मानत्व ब्रह्मनकृतघ्नपतिपूतत्वकामा भर्तृ ज्वलञ्चितारोहणमह' करिष्ये ।" बालवधू पतिपरायणा न रहनेपर उसके कपालमें इसतरह सङ्कल्प पढ़ लेनेसे, सती सूर्याध्य देकर वहो सिन्दूर चड़ाया जाता रहा । उस लावेको विस्तर दिक्पालको साक्षी बनाती थी,- पर रखनेसे खटमल भग जाते थे। किसीको "अष्टौ लोकपाला आदित्यचन्द्रानिलाग्नाकाशभूमिजलहदयावस्थितान्त- यमिपुरुषयमदिनरावि-सध्यया-धर्मा यूयं साक्षिणी भवत जलञ्चितारोहणेन पेतिनीमें पानेपर वही फूटी चूड़ी गले में बंधते रहो। भर्तृ शरीरानुगमनमहौं करोमि।" अनुमरणादिका ऐतिहासिक विवरण अनुमरण, सती और अशीचा- प्रकार लोकपालको साक्षी बना सती अञ्चलमें दिका हाल सहमरण शब्दमें देखी। लावा, नारियल और बताशे भर सात बार (व्यवस्थामें अनुमृग्यदाशु (सं० पु.) मनोकामना पूर्ण करनेवाला तीन ही बार लिखा है) चिताका प्रदक्षिण फिरती, व्यक्ति, जो शख्स मुंह-मांगी चीज़ बखूशे । प्रदक्षिण फिरने बाद, ‘इमा नारीः' इत्यादि ऋङ- अनुमाशम् (सं• अव्य०) पुनः-पुनः विचार बांध, मन्त्रका पाठ पढ़ा जाता। शेषमें वह चितापर चढ़ बार-बार ख़याल लड़ा, सोच-सोच, समझ-समझ। स्वामौके पास सो जाती थी। आत्मीय स्वजन बान और अनुमेय (स.त्रि.) अनुमौयते, अनु-मा कर्मणि दरखू तके कच्चे बकलेमें उसे और मृतदेह बड़े-बड़े यत्। १ अनुमान निकालने योग्य, अन्दाज़ लगाने लकड़ीके टुकडोंसे मजबूत तौरपर बांध देते ; फिर काबिल। अनु-मि-कर्मणि यत् । २ पश्चात् क्षेपके अग्निसमर्पण ठहरता, चारो ओरसे लोग झड़ा-झड़ योग्य, पोछे डालने लायक। अनु-मौ कर्मणि यत्। घास-फूस और रमशरका गट्ठा चितापर चलाने लगते। ३ पश्चात् वध्य, जो पीछे कत्लके काबिल हो। कोई-कोई चितापर बड़े-बड़े बांस रख दबाये रखता | अनुमोद (सं० पु. ) अनु-मुद-णिच्-चञ्। सम्मतिजनक था। दूसरी ओर पांच सात ढोल बजते, कीर्तनीय व्यापार, सम्मतिप्रकाश, आह्वादप्रकाश, पीछेको खुशौ। झांझ-मंजीर झनकार आकाश पाताल एक कर अनुमोदक (सं त्रि०) स्वीकार करते हुवा, मानता, डालते। चिताके भीतर घोर नाद निकलनेपर भी हामी भरनेवाला, मञ्ज.र. फरमाता, जो रहमको उसके सुननेका उपाय नहीं था। क्वचित् आगको खुशी जाहिर कर रहा हो। इसी