पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४९६

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अनुराधपुर-अनुराधा ४८ 3B जिसकी ढालू पड़ा; कहीं-कहीं किसी जगह छोटा छज्जा बना, महायान बौद्धगणने सन् ई०के ८वें शताब्दपर ओर अजण्टे-जैसा मनुष्यका चित्र अनुराधपुरमें विजयाराम नामक जो बृहत् विहार खिंचा है। बनवाया, वह आज भी भग्नावस्थामें विद्यमान है। महाविहारको पश्चिम ओर मरीचवती विद्यमान प्रत्नतत्त्ववित् बेल साहब ( Mr. Bell ) इस विहारका है। सन् ई०से १६१ वर्ष पहले दुट्ठगामनि राजाने विस्तृत विवरण लिख गये हैं। विजयारामका इसे बनवाया था। महाविहारके ठीक उत्तर रावण कारुकार्य एवं चित्रादि देख विमोहित बनना पड़ता वल्ली है। इस पीठस्थानकी दुट्ठगामनि राजाने है। इसको देखनेसे आभास आता, बौद्ध वहां कैसे आरब्ध किया था, पौछे उनके भाई मध्यतिष्यने पूरे अपना जीवन बिताते थे। बहुतर बौद्ध देव-देवीको उतारा। जलविम्बको देख कर यह विहार बना था मूर्ति, सभाग्रह, शयनागार, नानागार, भाण्डारगृह, महावंशमें इसके सम्बन्धपर अनेक अलौकिक घटना पुष्करिणी प्रभृति इस विहारके मध्य विद्यमान है। वर्णित है। महावंश १७ से ३३ अध्यायतक देखी। अनुराधपुरसे आविष्कृत एक ध्यानी-बौद्द-मूर्ति अभयगिरि महाविहारके ईशान-कोणमें अवस्थित कोलम्बोके अजायबघरमें रखो, यह मूर्ति ५ फोट है। सन् ई•से १०४ वर्ष पूर्व राजा पराक्रमवाहुने ८ इञ्च ऊंची है। पहले ही कह चुके, कि विभिन्न इसे बनवाया था। इन राजाका दूसरा नाम बट्टगामनि विहारके प्राचीर-गावमें जो सकल नाना वर्ण के चित्र अभय रहा। पहले इसी जगह एक देवमन्दिर अङ्कित हैं, वह अतिशय नयनाभिराम दख पड़ते ; था; गिरि नामक जनेक व्यक्ति उन्हीं देवताको सेवा रूपनवेलिवाले विहारके चित्र सर्वापेक्षा मनोरम हैं। साधते थे। गिरि सेवकवाले देवमन्दिरके स्थानमें यह सकल चित्र खींचने में खेत, हरिद्रा, लाल, नील, अभय राजाके यह विहार बनवानेसे इसका नाम और हरित रङ्ग लगा था। यह रङ्गीन चित्र अजण्टेको अभयगिरि रखा गया। इस विहारके गुम्बदका तरह नजर आते हैं। पद्मोपरि किबर और वामनका व्यासार्ध १८०, परिधि ११०. और उचाई कोई चित्र विशेष उल्लेख-योग्य है। २४४ फौट पड़ेगी। किन्तु महावंशमें लिखा है, अनुराधा (सं. स्त्री०) अनुगता राधां विशाखाम्, कि यह १२० हाथ ऊंचा रहा। महाविहारके अत्या०-तत्। राशिचक्रके सत्ताईस नक्षत्रमें सप्तदश वायुकोणमें लङ्कारामविहार बना है। सन् २३१ नक्षत्र । इसके देवता मित्र हैं। यह रूपमें सप्ततारामय ई में अभयतिष्य राजाने इस विहारको बनवाया सर्पकी आकृति रखता है। महाविहारसे उत्तर जतवनाराम खड़ा, मृगशिरा, हस्ता, अश्विनी, चित्रा, स्वाती, रेवती एवं यह २५१ फौट ऊंचा और पचौस बीघे ज़मीनपर पुनर्वसु-यह नक्षत्र पार्खमुखगण कहाते हैं। अवस्थित हो रहा है। इस स्तूपको चारो ओर प्राचौर इन सकल नक्षत्र में यन्त्र, रथादिनिर्माण, नौका- वेष्टित जो भूखण्ड लगा, उसका आयतन ४३ बौधे गठन, गृहप्रवेश और हस्तो, अश्व, गर्दभ, गो- देखते हैं। महासेन राजाने सन् २७६ ई० में इस इन्हें प्रथम दमन देना किंवा गाड़ी में जोतना शुभ विहारका सूत्रपात लगाया था, पौछे सन् ३३० होता है। अनुराधा नक्षत्र मृदुगणमें लिया गया है। ई में उनके भाईने उसे पूरे उतारा। मृदुगण नक्षत्रमें मित्र, अर्थ, सुरतविधि, वस्त्र, भूषण, इल्लल नामक जनैक मालवने सिंहलमें पहुंच मङ्गलगीत प्रभृति कार्य हितकर रहते हैं। अनुराधा दुट्ठगामनिको राज्यच्युत बनाया था। कुछ काल बाद नक्षत्रमें जन्म लेनेसे लोग कलान एवं कौति, कान्ति- दुट्ठगामनिने उसे युद्धमें परास्त और निहत किया। “युक्त निकलते, सर्वदा उत्सवमें रत रहते और रिपुको इस युद्ध-जयका चिह्नवरूप एक समाधिमन्दिर बना, जीतते हैं। यह नक्षत्र यात्रामें भी अच्छा ठहरता है। अद्यापि उसका भग्नावशेष पड़ा है। मन मशहर है,-'अनुराधा क्यो न साधा ?' 123 अनुराधा, ज्येष्ठा, था।