पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५१

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अक्षयवट-अक्षरचण ४६ की थी। हैं। भक्तिपूर्वक वटवृक्षमें जल चढ़ानेसे अक्षयफल | अक्षयललिता (सं० स्त्री०) भादी महीनेको सातवीं तिथि। मिलता है। प्रयागका अक्षयवट इस समय कि लेके इस तिथिको स्त्रिया शिवदुर्गाको पूजा करती हैं। भीतर पड़ और बहुत छोटा हो गया है ; सम्भ अक्षया (सं० स्त्री०) अक्षयतृतीया। सोमवारको अमा- वतः छायामें रहनेके कारण यह बढ़ता नहीं। वस्या, रविवारको सप्तमी, मङ्गलवारको चतुर्थी होनेसे जगन्नाथजीमें भी अक्षयवट रहनेको कथा मिलती है। अक्षया कहाती है। प्रयागका अक्षयवट बहुत ही प्राचीन वृक्ष है। अक्षयिणी (सं० स्त्री०) काश्मीरको एक देवप्रतिमा, पहले यह खुली जगहमें था, धौरे-धीरे इसको चारो महाराज नरेन्द्रादित्यने भुवनेश्वर नामके एक देवता ओर मट्टीका भराव हो गया, सुतरां वृक्ष भी नौचे और अक्षयिणी नामको एक देवीको मूर्ति प्रतिष्ठित पड़ गया। प्रयागदुर्गके भीतर एलनबरा-बारिकके ठीक पूर्व एक पुराना मन्दिर है, जिसके पास यह अक्षयवट अक्षय्य (सं० क्लो०) घृतमधुयुक्त जल, जो श्रादमें पिण्ड- अवस्थित है। इस जगह इस वृक्षको न धूप लगतौ दानके पीछे देते हैं। और न हवा मिलती है, इसीसे यह बढ़ता भी | अक्षय्योदक (सं० क्लो०) पिण्डदानके पीछे मधु-तिल नहीं। चौनके यात्री (साधु) युअन्-चुअङ्ग इस मिला जल देकर श्राद्ध करना। प्राचीन मन्दिरका उल्लेख अपनी यात्राके प्रसङ्गमें | अक्षर (सं० पु०-क्लो०) न-क्षर-अच् । १ अच्युत। २ कर गये हैं। इसको दक्षिण ओर सम्राट अशोक स्थिर। ३ अविनाशी, नाश न होनेवाला। ४ नित्य । और समुद्रगुप्तका स्तम्भलेख है। पहले अक्षयवट ५ अकारादि वर्ण । हरफ़। मनुष्यके मुखसे निकली वेणीघाटसे बहुत दूर था ; धोर-धौर बाढ़ आनेसे गङ्गा हुई सार्थक ध्वनिको सूचित करनेवाले सङ्केत । यमुना इसके पास पहुंच गई। अकबर बादशाहके तन्त्रमें पांच प्रकारके अक्षरोंका उल्लेख है-१ समय हिन्दू लोग इसी वृक्षके मूलसे गङ्गामें कूदकर मुद्रालिपि, २ शिल्पलिपि, ३ लेखनीसम्भवा लिपि, प्राणत्याग करते थे। आजकल फिर क़िलेके नीचे बहुत ४ गुण्डिका और ५ घूणाक्षर। मुद्रालिपि अर्थात् दूर तक रेत पड़ गई है। वेणीका घाट अब अक्षयवट अँगुलीके अँगूठे इत्यादिसे छापना ; शिल्पलिपि अर्थात् के निकट नहीं है। प्रयाग जा तीर्थयात्री अक्षयवटके चित्रकारी इत्यादि ; लेखनीसम्भवा लिपि, लेखनौसे दर्शन करते हैं, पहले दर्शन करनेमें उन्हें बड़ी जो लिखी जाये ; गुण्डिका, जो चावल आदिके असुविधा होती थी। इच्छा करनेसे कोई व्यक्ति क़िलेके | चूर्ण (पाटा)से या इसी प्रकारको और चौज़ोंसे भीतर न जा सकता था। पण्डा लोग यत्न करके यात्रि लिखी जाय अर्थात् अलिपना इत्यादि ; घूणाक्षर, योंको ले जाते थे। अब लोग मजमें जा सकते हैं। घुन कोड़ा लकड़ीमें तरह-तरहकी रेखायें बनाया अक्षयवटको चारो ओर पक्को चुनाई (गुथाई) की करता है और कोई-कोई उसको रेखा लेखनौसे लिखे छत है और गड्डे के भीतर बड़ा ही अँधेरा रहता अक्षरको भांति भी देख पड़ती है। अङ्रेज़ी है, कोई चीज स्पष्ट नहीं दिखलाई पड़ती। सिड्डीसे शोर्टहाण्ड (Sihort hand) भी ऐसा ही होता है। उतर नीचे दर्शन करने जाना होता है। पुराणों में अत्तरलिपि देखो। लिखा है, कि इस वृक्षको पूजा करनेसे अक्षयफल ८ धम्म । मिलता है। १० अपामार्ग वृक्ष, आपां चिचड़ा, आघाड़ा गयाक्षेत्र में भी एक अक्षयवट है। पाण्डवोंने (Achyranthes aspera)। ११ मोक्ष । १२ जल। वनवासमें लोमश ऋषिके उपदेशानुसार इस वृक्षका अक्षरचण, अक्षरचुचु (सं० पु०) लेखक, सुलेखक, दर्शन किया था। (महाभारत-वनपर्व । ) पण्डित, उत्तम अक्षरोंका बनानेवाला। मुंशीये हफ्त अक्षयवृक्ष (सं० पु०) अक्षयवट। कलम । अक्षरचञ्चु। १३ गगन। ८ तपस्या।