पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५२०

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अनेकान्तवादिन्–अनेकार्थ ५१३ व्यभिचारविशिष्ट, दुष्टहेतु, नामाकू ल, झूठा, बदचलन, यद्यपि हरि शब्दसे विष्णु, सिंह प्रभृति अनेक बदमाश। न एकान्तं नितान्त अतिमात्रमिति अर्थ निकलते, किन्तु इस जगह 'सचक्र' अथवा यावत्, नज-तत्। २ अतिशयशून्य, जो नितान्त न चक्र लिये इस शब्दसे हरि शब्दके मिलनेपर अर्थका हो, खफीफ, थोड़ा, कम। कोई गड़बड़ नहीं पड़ता। हम सहजमें ही समझ अनेकान्तवादिन् (स• पु० ) एकान्त एकनिश्चय सकते, कि इस स्थलपर हरि शब्द विष्णुका अर्थ देता ईखरास्तित्वन वदति, अनेकान्त-वद-णिनि। बौद्ध है। कारण, सिवा विष्णुके सिंह प्रभृति चक्र नहीं विशेष। यह ईश्वरका अस्तित्व अथवा अनस्तित्व कुछ चलाते। फिर यदि कहा जाये,–'उन्नतकेशरायो भी निश्चय न बताते, इसीलिये लोग इन्हें उक्त नामसे हरिः' यानी हरि बढ़े हुये अयालका है, तो सिंहका पुकारते रहे। हो अर्थ निकलेगा। कारण, सिंह-भिन्न विष्णु किंवा अनेकार्थ (स. त्रि०) अनेके बहवोऽर्थो अभिधेया सादिके केशराग्र या अयाल नहीं होता। मोटौ यस्य, बहुव्री०। नानार्थबोधक, ज़ मानी, जिसके कई बात है, कि किसी शब्दका अनेक अर्थ होनेसे विशेषण माने लग सकें। जैसे, हरि होता है। हरि शब्दसे देख समझ सकते,-कहां कौन अर्थ लगेगा। विष्णु, सिंह, भक, सर्प प्रभृति अनेक अर्थ निकलते हैं। एक वस्तुसे अन्य वस्तुके संयोगका प्रभाव देखाने- नानार्थबोधक धातुको भी अनेकार्थ कहते हैं। पर विप्रयोग पड़ता है। जैसे-'अचक्रो हरिः' यानी एक-एक धातुका अनेक अर्थ आता, किन्तु जो अर्थ हरिके पास चक्र नहीं देख पाते। इसका अर्थ यह अधिक प्रसिद्ध होता, वही सचराचर लिखा जाता है,-विष्णुके हाथमें चक्र रहता, किन्तु इस अवस्था अन्य अर्थको प्रयोग देखकर समझते हैं। सिवा या इस मूर्तिपर वह चक्र नहीं लिये हैं। सिंह इसके, उपसर्ग हारा भी धातुका अनेक प्रकार अर्थ प्रभृतिके हाथ चक्र कब चढ़ता है। अतएव 'अचक्र' झुका करता है। 'उपसर्गेण धात्वर्थों बलादन्धन नीयते।' जैसे; या 'चक्र नहीं ऐसा अभावबोधक विशेषण लगनेसे प्र-हृ प्रकार, आ-हु आकार, उप-हृ उपहार और सं हरि शब्द इस जगह सिंहका अर्थ नहीं दे सकता। हृ संहार बनाते हैं। यहां उपसर्गके कारण ह कारण, सिंह किसी समय चक्र नहीं उठाता, इसीसे धातुके कितने अर्थ निकल पड़े। उसे चक्रहीन कहना असङ्गत ठहरता है। किसी शब्दके अधिक अर्थ रहनेसे यह समझनेके परस्परको सहायतासे साहचर्य होता है। जैसे, कई उपाय विद्यमान हैं, कहां कौन अर्थ सङ्गत 'रामलक्ष्मण'। दशरथ राजाके पुत्रका नाम राम- पड़ेगा। इन कई उपायके नाम हैं-संयोग, विप्र- लक्ष्मण रहा। अन्यान्य लोगोंका भी राम और योग, साहचर्य, विरोधिता, अर्थ, प्रकरण, लिङ्ग, अन्य लक्ष्मण नाम विद्यमान है। किन्तु यह चिरप्रसिद्ध शब्दका सानिध्य, सामथ्र्य, औचित्य, देश, काल, व्यक्ति, है, कि दशरथके रामलक्ष्मण दोनो पुत्र एक साथ खर इत्यादि। रहते, वन-वन घूमते और परस्पर सहायता पहुंचाते "सयोगो विप्रयोगश साहचर्य विरोधिता। थे। इसीसे 'रामलक्ष्मण' कहनेपर दशरथके पुत्र हो अर्थः प्रकरयां लिङ्ग' शब्दस्यान्यस्य सनिधिः ॥ समझ पड़ते हैं। सामर्थ्य मौचिती देश: काली व्यक्तिखरादयः । परस्परका शत्रुभाव विरोधिता कहलाता है। शब्दार्थस्यानवच्छ दै विशेष म तिहतवः ॥” (भर्ट हरि) जैसे, 'रामार्जुन' । 'राम' कहनेसे दशरथके पुत्र • एक वस्तु के अन्यवस्तुसे मिलनेपर संयोग गंठता अथवा बलराम समझ पड़ते हैं। पाण्डुके पुत्रका है। जैसे, 'सचक्रो हरिः' अर्थात् हरि सुदर्शन चक्र नाम अर्जुन रहा। किन्तु रामार्जुन शब्दसे इनमें लिये हैं। यहां 'सचक्र' अथवा 'चक्र लिये शब्द किसीका बोध न होगा, इसके द्वारा परशरांम विशेषण है। यह विशेषण हरिके साथ लगा है। और कार्तवीर्यका अर्थ लगाना पड़ेगा। कारण, 129 -