पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५१९

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५१२ अनेकवर्णसमीकरण-अनेकान्त मनात राशि रहता, वह 'अनेकवर्णसमीकरण' जाड़नेसे पांच होता, फिर समस्त राशिमें 2 मिलानेसे (Simultaneous Equation ) कहाता है। राशिका अङ्क उलट पड़ता है। उसी राशिको किसी- क+२=७; यहां क कोई अज्ञातराशि है; तरह स्थिर कीजिये। दूसरे, ४क + ३ख =३१॥ मान लो, कि क वामभाग और ख दक्षिण दिक्का ३क+२ख २२; यहां क और ख यह दोनो अङ्ग है। इसौसे प्रस्तावानुसार, अज्ञात-राशि हैं। यह निकालनेको, कि दोनो राशि क+ख-५, कितनी संख्यामें समान रहते, प्रथम समीकरणको एव', १० क+ख+e=१० ख+क, अङ्क उलट तीन और हितीय समीकरणको चारसे गुण लगायिये, पड़ा; अतएव ८क-ख=-६, अथवा क-ख = वैसा होनेपर- -१ ऊपरके समौकरणमें मिलायिये, १२क+ख-3८३, २ क-8, क-२ ख-३ १२क+ख =८८ हो जायेगा। इसीसे अज्ञातराशि २३ है। घटाकर देखिये, ख = ५; इस बार प्रथम समी- अनेकवार (सं० अव्य०) बहु समय, कई मरतबा, करणमें 'ख'के स्थानमें ५ रखिये, उससे- पुनःपुनः, दुहरा-दुहराकर । ४क+१=३१, ४क+३१-१५, अनेकविध (सं०वि०) अनेका विधा प्रकारो यस्य ४क=१६, क-81 यत्र वा, बहुव्री०। बहुप्रकार, कई किस्मका, बहुत मोटी बात यह है, कि एकसे अधिक अज्ञात-राशि तरहवाला, विभिन्न, मुख्तलिफ । रहनेपर समीकरणके राशिको इसतरह अन्य राशिसे | अनेकशफ (सं० वि०) फटे हुये खुरवाला, जिसके गुण या भाग लगाये, जिसमें योग अथवा वियोग द्वारा सुम चिरे रहें। कोई अज्ञात-राशि देख न पड़े। अनेकशब्द (सत्रि.) बहुसंख्यक शब्दसे प्रकाशित, शक+सखन जो कई तरह की आवाज़से जाहिर हो, पर्यायवाचक, जक-टखम ; क एवख राशि कहीं निकाल हममानी। रखिये और प्रथम राशिको ज, द्वितीय राशिको शसे अनेकशस् (सं० अव्य०) अनेकान् ददाति, अनेक- गुण लगायिये-ज श क +ज स ख=जन वीप्सार्थे कारके शस्। अनेकवार, कई मरतबा, ज श क-ट श ख-मट; वियोग दौजिये, बहुत दफा। ज स ख +2 श ख-जन-मट ; अर्थात्, अनेकाकार (सं० त्रि.) चित्र-विचित्र, रङ्ग-ब-रङ्ग, (जस+ट श) ख=ज न-मट, इसलिये, नानावर्ण,गूनगू, विभिन्न, मुख़्तलिफ, भांति-भांतिका, कई तरहवाला। जस+टश पुनार प्रथम राशिको टएवं द्वितीयराशिको ससे अनेकाक्षर (सं० वि०) बहुसंख्यक वर्णविशिष्ट, जिसमें कितने ही हफ मिले हों।

गुण दीजिये:

अनेकाग्र (सं० त्रि.) न एकाग्रं एक निरतं अना- टश क ट स खम्टन, ज स क ट स ख- सम ; योग लागायिये, कुलं वा, नञ्-तत्। अनासक्त, जो आशक न हों, टश क+ज स क टन+सम ; अर्थात्, अनेकचित्त, जिसका दिल कई बातमें फसा हो। (ट श+ज स) क-ट न+स म, अनेकाच् (सं० त्रि.) बहुसंख्यक स्वरसंयुक्त, जिसमें कई वर लगे हों। अनेकान्त (सं० त्रि.) न एके मुख्येऽन्तो निश्चयो किसी राशि दी अङ्ग हैं। उन दोनो अङ्गको येन यत्र वा, नञ्-बहुव्री० । १ असङ्गत, अन्यथायुक्त, जन-मट इसलिये क-टश+जस टन+सम