पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५३१

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५२४ अन्तःसत्वा छः मासके बच्चेका वजन सचराचर कोई आध गर्भावस्थामें सन्तानका वजन कोई ३ सेर निकले सेरसे कम नहीं पड़ता। शरीर नापनेसे १०।१२ इञ्च और दैये न्यूनाधिक २० इञ्च पर्यन्त पड़ेगा। किन्तु निकलेगा। बाल काले पड़ते, चक्षु वंद रहते, जनक-जननी दीर्घाकार होनेसे अनेकस्थलमें गर्भका उनमें कछ-कुछ पक्ष भी जमने लगते हैं। इस सन्तान भी दीर्घाकार निकलता है। नभास्कोशियमें अवस्थामें पुत्र-सन्तानको अण्डवोचि पेड़ में रहती है। कोई स्त्री ७ फीट 2 ईञ्च लम्बी रही, उसका स्वामी सप्तम मासमें बच्चेका वजन डेढ़ सेरसे दो सेरतक भौ ७ फोट ८ इञ्च लम्बा था। इस स्त्रीके एक सन्तान और दैर्घ्य न्यूनाधिक १४।१५ इञ्च पड़ेगा। इसी उत्पन्न हुवा और भूमिष्ट होते ही मर गया। उसका अवस्थामें चक्षु आता और अण्डवीचि पेडुसे कोषके वजन कोई १२ सेर निकला और देयं ३. इच्च पड़ा भीतर उतर जाती है। था। किन्तु ऐसी घटना अति विरल है। फिर भी, सुश्रुतमें लिखा, कि पञ्चम मासपर सन्तानका ११।१२ मासमें सन्तान भूमिष्ठ होनेसे अपेक्षाकृत मनः बनता, षष्ठ मासमें बुद्धि आती है। सात मासके उसके कुछ ज्यादा वज.नो और बड़े निकलनेको बच्चे का समस्त अङ्गप्रत्यङ्ग ख ब सफाईसे निकलेगा। सम्भावना रहती है। अष्टम मासमें गर्भका सन्तान अस्थिर पड़ता और जरायुमें बच्चेका मत्था नीचेको झुक जायेगा। उसके शरीरमें ओजः धातु दौड़ता है। ओजः धातु चिवुक कण्ठके नौचे वक्षस्थल में दबा रहता है। दोनो उत्पन्न न होनेसे निरोज और नैऋत-भावसे प्रयुक्त हाथ परस्पर बाहुके ऊपरसे छातीमें लगे होते; पैर अष्टम मासमे भूमिष्ठ हो सन्तान जो नहीं सकता। जरुके नीचे पटपर खिंच जाते हैं। नाभिरज्ज ऊरु आठ मासके बच्चे का वजन दो सेरसे ढाई सेरतक और बाहुके मध्यस्थलमें लगती, इसीसे इसमें दबाब और दैर्ध्य १७११८ इञ्च होता है। इस अवस्थामें नहीं पहुंच सकता। बच्चे के इससे अन्यथा सन्तान प्रायः कोई अङ्ग निकलनेको बाकी नहीं रहता। निकलनपर प्रसवके मध्य विघ्न लग सकता है। किन्तु शरीर भी खूब हृष्टपुष्ट और परिपक्व पड़ जायेगा। संस्थानका सामान्य रूप व्यतिक्रम पड़नेसे कुछ भी इसीसे सातवें-आठवें महीने भूमिष्ठ हो अनेक सन्तान अनिष्ट नहीं निकलता। जीते रहते हैं। गर्भमें सन्तान मुखसे नहीं खाता; किन्तु फिर भी जीते रहता, दिन-दिन हृष्ट पुष्ट पड़ता है। उसका कारण, भोजनके फलका अन्यप्रकारसे सिद्ध होना है। इस विषयमें अनेक मतभेद है, गर्भसञ्चारको प्रथमा- वस्थामें अण्ड कैसे परिपोषण पायेगा। कोई-कोई अनुमान लगाते, कि अण्डप्रणालीके भीतरसे किसौ प्रकारका रस निकलता है। जरायुको ओर अण्ड आते समय यह रस उसके आवरणमें मिल जायेगा। प्रथम प्रथम उसमें भ्रणका पोषण होता है। गर्भा- शयमें अण्ड जा पड़नेसे नाभिपदार्थमें पोषण पायेगा। उसके बाद पुष्प और नाभिसे नाडौरज्जु निकलता, पौछ जननीवाले शरीरके रससे सन्तान दिन-दिन बढ़ता है। पूर्णगर्भावस्था । हम नाक और मुंहसे निश्वास लेते, निश्वासके ८।१० मासमें पूर्णगर्भावस्था पहुंचती है। पूर्ण- वायुमें नाइट्रोजेन पाते हैं। उसो नाइट्रोजेनसे शरीरका