पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अन्तःसत्त्वा. ५२५ रक्त परिष्कार होता है। फिर प्रवास डालनेसे अङ्गलि निकलतों, दबावके सबब समस्त हाथ जम उसके साथ शरीरका दुष्ट पदार्थ निकल पड़ेगा। नहीं सकता। दूसरा भी एक प्रकारका आश्चर्य गर्भ में सन्तानका इस प्रकार निवास-प्रश्वास नहीं व्यापार देख पड़ता है। अङ्गहीन सन्तानका चलता। पुष्यसे गर्भिणीके शरीरका परिष्कार रक्त भूमिष्ठ होनेसे पौछे छिन्न हस्तपद पृथक् निकलेगा। सन्तानकी देहमें पहुंचता और पुष्पसे ही सन्तानके इससे स्पष्ट समझते हैं, किसी किसौ स्थलमें गर्भक शरीरका अपरिष्कार पदार्थ निकल जाता है। इसीसे भीतर सन्तानका हस्तपद निकलता, अङ्गपर कोई श्वास प्रश्वासका फल मिलेगा। गर्भमें सन्तानका व्याघात पड़नेसे दब जाता इस विषयमें फेफड़ा या कलेजा यक्वत्-जैसा कड़ा रहता है। सकल चिकित्सकका मत समान नहीं लगता, किस सन्तान भूमिष्ठ होनेपर जब रो दे, तब फेफड़े में तरह वह दब जायेगा। कोई-कोई अनुमान लगाता, छिद्र हो जायेगा। अतएव बच्चे की नाभिके साथ कि नाभिरज्जुहस्तपदमें लपट जाता, जिससे यह जननौके गर्भमें जो नाड़ी और फूल लगा करता, सकल अङ्ग गल कर शेषपर छूट पड़ता है। किन्तु वही सन्तानके जीवनको रक्षाका एकमात्र उपाय डाकर प्लेफेयार यह आपत्ति डालते, किसी अङ्गमें है। रक्तसञ्चालन, खास-प्रश्वास, परिपोषण एवं नाभिरज्जु दृढ़ रूपसे बंधनेपर उसके भीतर रसको स्वाभाविक समुत्सर्ग सभी काम इसी फूलसे हुवा गतिविधि रुकनेको सम्भावना रहती, इसीसे वैसे करता है। स्थलमें सन्तान जौते रह नहीं सकता। इस बातका असली जबाब देना बहुत मुश्किल है, १मास-प्रथम मास में यह ठहराना अतिशय यमज सन्तान कैसे होता है। हमारे शास्त्र में स्त्री, कठिन है, कि यथार्थ गर्भसञ्चार हुवा है या नहीं। पुरुष और नपुंसक उत्पन्न होने का कारण इसतरह किन्तु गर्भ रहनेसे अनेक हौ स्थलमें ऋतु रुक जाती, निर्दिष्ट करते हैं, जी मिचलाता और सर्वदा मुखसे पानी टपकता "युग्मामु पुबा जायन्ते स्त्रियोऽयुग्मासु राविषु ।" है। कोई द्रव्य खानको इच्छा नहीं चलती। ऋतुकी युग्मरात्रिमें पुरुष-संसर्ग लगनेसे पुत्र और जरायुका अधोभाग (cervix) और मुख (os) कोमल अयुग्म रात्रिमें उससे कन्या उत्पन्न होती है। फिर भी होता, उसका छिद्र लम्बा नहीं पड़ता, किञ्चित् गोल इस बात पर कितने ही लोग विश्वास रखते, कि एक बन जाता है। इधर योनिको उष्णता और रस- आवरमें दो सन्तान रहनेसे एक पुत्र और एक कन्या निःसरण बढ़ेगा। निकलेगी। एसौ अवस्था में फल भी एक ही होता २ मास-दूसरे मासमें ऊपरी लक्षण अधिकतर है। पहलेसे अण्डमें दो अङ्गुर फटनेपर ऐसौ यमज स्पष्ट हो जाते हैं। चार सप्ताह बीतते ही स्तन सन्तान उपजगी। फिर दो वरमें दो सन्तान कुछ कड़ा, स्थूल एवं गुटिकायुक्त होगा। स्तनका रहनेसे फल भी अलग-अलग लगता है। किन्तु अग्रभाग कृष्णवर्ण बनता और भीतर दुग्ध भरता है। इसका कोई ठिकाना नहीं पड़ता, किस कारण पुत्र इस समय जरायुका मुख सम्पूर्ण लाकार बनेगा। और किस कारण कन्या होगी। ३ मास-तृतीय मासमें अन्त्रके निजस्थानसे कभी-कभी गर्भसे हस्तपदहीन सन्तान निकलता खिसकने कारण उदर खूब बड़ा देख पड़ता है। है। आंवरमें लार-जैसा रस अल्प परिमाण रहने स्तनका मुख और भी अधिक कृष्णवर्ण हो और पर क्षुद्र भ्रूण अवस्थामें सन्तानके हस्तपद प्रभृति जिस नौलवर्ण शिरा ऊंचे उठेगा। स्तन दबानेसे अल्प: अङ्ग पर अधिक दबाव पड़ता, वही अङ्ग बढ़ने नहीं अल्प धन दुग्ध निकलता है। इस अवस्थामें गर्भक पाता। उसी कारण अनेकके हस्त पद अदृश्य हो |-भौतरी फलसे एक प्रकारका मृदु-मृदु शब्द उठता, जाते हैं। किसीके कन्धे पास केवल दो-एक जरायुके ऊपर कान लगानेसे सुना जा सकेगा। 132