पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५४३

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अन्तर्जलाचार -अन्त]तिस् और पीछे आत्मीय खजन उसे देखेंगे। पहले अनेक हे सुमुखि ! मैं आपसे कहता हूं, गङ्गामें प्राण गृहस्थ किसौको गङ्गायात्रा हो जानेपर दैवात् यदि छोड़नेसे क्या फल मिलता है। मैं उसके कर्णमें वह न मरता, तो फिर उसे मकान वापस न ले जाते परब्रह्म मन्त्र और उसको अपना पद देता हूं। थे। यह प्रथा आज भी कहीं-कहीं है। गङ्गातौरसे "श्रौंदके तु जाहव्यां वियतेऽनशनेन यः । मकान वापस जाना मना है, वह यावज्जीवन स याति न पुनर्जन्म ब्रह्मसायुज्यमेति च ॥" गङ्गावासी बनकर रहेगा। पहले बङ्गालके शान्तिपुरमें (प्रायश्चित्ततत्त्वोइ त अग्निपु.) विस्तर गङ्गावासी इसीतरह ठहर पुनर्वार संसार धर्म अनशन रह आधी देह जलमें डुबा जो गङ्गामें प्राण कर गये हैं। छोड़ता, उसका फिर पुनर्जन्म नहीं होता, वह गङ्गाके दूरवर्ती होनेपर सकल ज्ञानके साथ पहुंच ब्रह्मका सादृश्य पाता है। भागीरथीको गोदमें मर न सकते थे। फिर भी "सन्त्यज्य दह' गङ्गायां ब्रह्महापि च मुक्तये ॥” (क्रियायोगसार) अनाथ व्यक्तिको, मुमूर्षु अवस्थामें पानेसे, बन्धुबान्धव ब्राह्मणघातक भी गङ्गामें देह छोड़नेसे मुक्त हो २०१२५ कोस दूरसे उठा गङ्गाके गर्भमें डाल आते जायगा। रहे। निकटस्थ पल्लीके लोग स्नानके समय किञ्चित् पीड़ितावस्थामें रोगीको दम-दिलाशा देना दुग्ध प्रभृति उसे खिलाते थे। चाहिये। उस समय आसन्न मृत्य की बात कहनेसे गङ्गाके तौर मुमूर्ष को न पहुंचा सकनेसे अन्त- रुग्ण व्यक्ति के प्राणपर वज-जसा आघात पड़ता है। जलकी दूसरी व्यवस्था बतायो गयो है। चबूतरेमें कोई छोटा गत खोदना होगा। वही गर्त जलसे अतएव यह चाल उठ जानेसे ही मङ्गल होगा। लबालब भर आत्मीय स्वजन उसमें मुमूर्षु व्यक्तिके सन् १८६५ ईमें किसी निष्ठुर व्यक्तिने एक गङ्गा- यात्रीका मुंह बालूसे भर दिया था। पैर इसपर गवर्न डुबा देते हैं। हम यह बात नहीं समझा सकते, मेण्ट गङ्गायात्रा करनेको प्रथा रोकनेपर उद्यत मृतकालपर जलमें पैर डुबानेसे कैसे सद्गति मिलेगी। पुष्करिणी प्रभृतिसे अन्तर्जल देनेपर उसका हुयो। किन्तु बङ्गालियोंके विरोधी बन जानेसे यह जल अशुद्ध हो जाता है। शुद्धि जलाशय देखो। निष्ठुर व्यवहार बन्द न हुवा। अन्तर्जात (सं० त्रि०) अन्तर्मध्ये जातम्, तत् । प्राचीनकालमें अन्तर्जलको प्रथा न थी। अन्तेष्टि देखो। देहके मध्य जात, जिस्मके अन्दर पैदा हुवा। जैसे- आज भी सिवा बङ्गालके दूसरी जगह यह नहीं देख मनोमध्यजात सुख, दुःख, द्वेष, क्रोध इत्यादि पड़ती। रघुनन्दन-भट्टाचार्यने कितने ही पौराणिक होता है। प्रमाण दे यह प्रथा बङ्गालमें डाली थी। इसके सम्बन्धमें कितने ही प्रमाण मिलते हैं, कि अन्तर्जानु (स० अव्यः ) जानुनोमध्ये, अव्ययीः । दोनो जानुके मध्य, रानोंके बीच । गङ्गामें प्राण छोड़नेसे मुक्ति होती है,- अन्तर्जान (सं० लो०) भीतरी बुद्धि, अन्दरूनी फहम, "गङ्गायां त्यजतः प्राणान् कथयामि वरानने । कर्ण तत् परम ब्रह्म ददामि मामक' पदम् ॥" जो समझ दिलमें हो। (शुद्धितत्त्वोह त स्कन्द०) अन्तज्योतिस् (सं० स्त्रो०) अन्तमध्ये ज्योतिश्चैतन्य "When & patient, thus situated, happens to खरूपम्, कर्मधा० । १ परमेश्वर, परमेश्वर ज्योतिर्मय । recover, he considers that he has, as it were, acquired a new life, and thenceforth all his former reletions and २ आकाश, आसमान् । ३ योगी, फकीर। (त्रि) friends are treated as strangers; he never returns to अन्तमध्ये ज्योतिः नक्षत्र दीप्तिः दृष्टिा यस्य बहुव्री । the dwelling in which he had frequently resided, bụt ४ अपने भीतर ज्योतिः, नक्षत्र, दीप्ति अथवा दृष्टि wanders down the Ganges, until he arrives at Shanti- par, near Calcutta, where he settles himself." रखनेवाला, जिसके अन्दर चमक, सितारा, रौनक (Honigberger, Thiryfive years in the East..) या नजर मौजद रहे। ।