पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/५७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अन्वप्रदाह-अन्ववृद्धि ५७१ मतसे, कोष्ठबद्ध पड़नेपर उष्ण जलकी पिचकारी लगानेसे रोग लगे, किसीका जी मिचलाये एवं भोजन करनेसे मल निकल सकेगा। समस्त भुक्त द्रव्य वमन द्वारा निकल जायेगा। एलोपेथोके अन्त प्रदाहका अफीम द्वादशाङ्गुल्यन्त्र में कभी-कभी क्षत भौ पड़ता है। पोछे महौषध होता है। किन्तु ४५ मासके शिशुको वह इस क्षतस्थानमें छिद्र हो जानेसे रोगीको अकस्मात् खिलायी नहीं जा सकती। पूर्णवयस्क रोगीको ३७ मृत्यु हो जायगी। कोई-काई चिकित्सक कहते हैं, विन्दु अफोमका अरिष्ट कर्पूरके जलके साथ ३।४ घण्टेके कि हादशाङ्ग ल्यन्त्रमें कर्कट रीग भी लगता है। किन्तु अन्तरसे खिलाना चाहिये। रोगीको कुछ सुस्थिर इस प्रकारको घटना प्रायः देख नहीं पड़ती। डाकर पड़नेसे अधिक अफीम न दे। किन्तु बिलकुल टेनरने हादशाङ्ग ल्यन्त के मध्य कोई बड़ी पित्तशिला उसे न खिलाना भी ठीक न होगा। इस समय देखी थी। इस पत्थरने अन्त का पथ बिलकुल रोक दूसरी बात भौ स्मरण रखना चाहिये। अफीम अति रखा था। विषेली होती है। वह अल्प-अल्प उदरमें सञ्चित | अन्त मय (सं• त्रि०) अन्त से बना या भरा हुवा, हो, पौछे उसको विषक्रिया एकबारगी ही झलक जिसमें अन्तड़ियां लगी हों। सकेगी। इसलिये अफीम खिलाते समय विशेष अन्त मांस ( स० क्लो०) पक्वमांस विशेष । सतर्क रहना उचित है। यह औषध दो-तौन मात्रा अन्त वल्लिका (सं० स्त्री०) सोनवल्ली लता। देनेस यदि वेदनाका उपशम न हो, तो अल्प अन्त वृद्धि (सं० स्त्री०) अन्त स्य प्रवेशजनिता वृद्धिः । मात्रामें ठहर-ठहर अफोम खिलाता रहे। अण्डकोषवृद्धि, बादफ़तक, फोतोंका बढ़ना। (Rup- रोगमें पहले उदरामय रोकनेको सङ्कोचक औषध ture) इसका लक्षण वैद्यशास्त्रमें यों लिखा है,- न दे। तरुण प्रदाह घट जानेसे काइनो १० विन्दु, "वातकोपिभिराहारैः शोततोयावगाहनः । अहिफन अरिष्ट ७ विन्दु एवं गोंदका रस आध धारणे रणभाराध्वविषमाङ्गप्रवर्तनः । छटांक एकत्र मिला-ऐसी ही दो मात्रा २४ घण्टेके क्षोभणे :क्षोभितोन्यैश्च क्षुद्रान्वावयवं यदा। मध्य खिलाना चाहिये। नाड़ो क्षोण और वेगवती पवनो विगुणोलत्य स्खनिवेशादधी नयेत् । होनेसे अन्त ज्वरको तरह मद्य और मांसका शोरबा कुर्याङ्णसन्धिस्थी ग्रन्थयाभं श्वश्थु तदा ॥ पिला रोगीका बल बचाना आवश्यक होगा। शिशुको उपेक्षामाणस्य च मुकद्धि प्राभानरुक्तम्भवतौं स व युः । प्रपोडितोऽन्तः खनवान् प्रयाति प्रधापयति पुनश्च मुक्तः ॥ श्लैष्मिक झिल्ली में प्रदाह पड़नेसे कर्पूर जलके साथ अन्वद्धिरसाध्योऽयं वातद्धिसमाकृतिः ॥” (माधवनिदानम् ) २।३ ग्रेन क्लोरेट आव पोटाश खिलानेसे उपकार पहुंच सकता है। पेटके नीचे अन्त रहता है। जारसे वज़न हादशाङ्ग ल्यन्त्र-अन्त के केवल इस स्थानपर प्रदाह उठानेमें ऊपरौ डायाफ्राम ( Diaphram) और उठनेसे जीवद्दशामें ठीक-ठीक समझ नहीं पड़ता। अन्यान्य पेशौके दबाव पर अन्त, निम्नदिक् सन्मुख मृतशरीर चारनेसे उसमें क्षतादि देख पड़ेंगे। भागको उतर आयगा। अन्तके अपना स्थान छोड़ अन्त का यह स्थान किञ्चित् विकृत होनेसे एक अन्यत्र उतर पड़नेसे वह स्थान फूल जाता है। इसे प्रकारका अजीर्ण रोग उत्पन्न होता है। उसे हाद हो हम अन्त वृद्धि कहते हैं। शाङ्गल्यान्तिक अजीर्णराग' (Duodenal dyspepsia) प्रसवके बाद पेटसे बहुत नजदीक नाड़ो चौरनेपर कहेंगे। इसका लक्षण अति सामान्य है।भाजनके बाद नाभिके ऊपर सूज जायेगा। चलती बोलीमें हम दक्षिण उपपशुकापर दबानेसे वेदना होगी। न उसे गुमड़ी कहते हैं। यह गुमड़ी सिवा अन्त हडिके दबानेपर भी पञ्जरके नीचे शूलवेदना जैसा कोई असुख दूसरी कोई चीज़ नहों। पेटके बहुत नज़दीक पड़ा करता है। यह पौड़ा उठनेसे किसीको पाण्डु नाडी चीरनेपर भीतरका अन्च सम्मुख दिक्को