पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६०१

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अन्न-अन्नगति ५६५ । सूअरका मांस 9) 99 ३॥ " 99 " " 99 आलू घण्टा नानाविध पौड़ाके कारण मूत्रयन्त्रमें उग्रता होनेसे चिकित्सक मांडको व्यवस्था करते हैं। पुराना गोमांस चावल आधी छटांक, एकसेर जल एक ढके हुए भेड़का मांस बरतनमें २० मिनटतक पकाकर कपड़ेमें मलकर मुर्गीका मांस निचोड़ डाले। इसमें कुछ चीनी मिलाकर रोगीको इसलिये मालूम हो गया, कि अन्न बहुत जल्दी खिलावे । ज्वरसे पीड़ित रोगी यदि अवसन्न पड़ जावे, हजम होता है। हमारे देशमें अन्नके परिपाक तो उसमें मांसका शोरबा मिलाकर देना पथ्य होगा होने में एक घण्टे से अधिक समय लगता है। और शरीरमें बल बढ़ेगा। गेहूं यव प्रभृति शस्यको विलायतमें अन्नसे खेतसार प्रस्तुत किया जाता अपेक्षा अन्नमें ग्ल टेन अति अल्प परिमाणमें होता है, है। जुलाहे तथा धोबी इस श्खेतसारसे कपड़ों में इससे यह अधिक अन्तरुत्सित नहीं होता। रोगीका कलप देते हैं। उदर स्फोत हो जानेसे अन्नका मांड अधिक उदगमान अन्नका गुण-स्निग्ध, बलदायक, द्रवजनक, नहीं होने देता। किन्तु बहुमूत्ररोगीको अन्न हितकर मूत्रकर तथा धारक। वैद्यकके अनुसार नवीन अन्न नहीं हो सकता। बहुमूत्ररोगीके पेशाबके साथ श्लेष्मकर, स्वादु, शीतल, मांसवईक, तथा गुरुपाक चौनी निकलती है। उधर अन्नमें खेतसार अधिक और पुराना अन्न-विरस, रूक्ष, सुपथ्य तथा होता है। उदरमें परिपाकके समय यह खेतसार अग्नि बढ़ानेवाला होता है। अतिशय उष्ण अन्न चीनी बन जाता है। इसलिये बहुमूत्ररोगौके भोजन करनेसे बल नष्ट होता है। शुष्कान्न लिये अबभोजन अति कुपथ्य है। 'सूखा भात' कहलाता है। यह भात शीघ्र नहीं आयुर्वेदमें यह लिखा है,-अन्नको अपेक्षा पिष्टक पचता। अतिशय सिद्ध अन्न शरीरको ग्लानिकर अठगुना पुष्टिकर है ; पिष्टकको अपेक्षा दुग्ध अठगुना, तथा असिद्धान्न अर्थात् कड़ा भात गुरुपाक होता है। दुग्धको अपेक्षा मांस अठगुना, मांसको अपेक्षा त वैद्योंका मत है कि, उष्ण अन्न शीतल जलमें धो कर अठगुना और घृतको अपेक्षा तेलमर्दन अठगुना जब भोजन किया जाता है, तव वह शीतल, लघु पुष्टिकर होता है। किन्तु तेल भोजनमें पुष्टिकर तथा शीघ्र परिपाक होता है। पर्दूषित अर्थात् नहीं है। जलमें भिगोये हुये वासौ भातको हमलोग वासी अबकाम (सं० पु०) भोजनका इच्छुक । जिसे भात कहते हैं। वासी भात रुक्ष तथा त्रिदोष भूख लगी हो। भूखा। जनक होता है। भुने हुए चावलोंका अन्न लघु अन्नकाल (सं० पु.) भोजनका समय। पाक तथा आग्नेय होता है। द्रवान्न ढप्तिजनक, अन्नकिट्ट ( स० क्लो०) अन्नस्य किट्ट मलम् । अन्नमल। लघुपाक तथा धारक होता है। इससे क्षुधा और अन्नकूट (सं० पु०) अन्नको राशि। एक उत्सव तृष्णा दोनों ही शान्त हो जाती हैं। तरलान है। यह वैष्णवोंके यहां विशेष करके कार्तिक शुक्ल खानेसे पसीना तथा क्षुधा बढ़ती है। यह वायु प्रतिपदाको मनाया जाता है। उस दिन अनेक तथा मलका अनुलोम है। इससे तृष्णा, ग्लानि, प्रकारके सुन्दर सुन्दर भोजन बनाकर परमेश्वरको शरीरको दुर्बलता और कुक्षिरोग नष्ट होता है। भोग लगाते हैं। दुग्धके साथ अन्न मिलाकर खानेसे चक्षुरोग, पित्त, अन्नकोष्ठ (सं० पु.) अन्नस्य कोष्ठ । ६-तत् । रक्तदोष तथा ज्वर नष्ट होता और बलवृद्धि होती अन्न रखनेका बरतन । गोला, कोठो। खत्तो। है। मट्ठाके साथ अन्न खानसे श्रम, अर्श तथा अरुचि | अब्रगति (सं. स्त्री०) जानवरोंके गलेके भौतरको नष्ट होती और आहारमें विलक्षण दृप्ति होती है। वह राह जिससे चारा पानी ऐटमें जाता है।