पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६४२

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अपहरणीय-अपङ्गव किसीकी रखी हुई चीज़का उड़ा लेना। शूलपाणि । अपहस्त (सं० पु०) वहिरपगमनार्थः हस्तः, प्रादि-स० । और जीमूतवाहन साधारणको वस्तुके छिपा देनेको १ गलहस्त, अर्द्धचन्द्र। (त्रि०)२ दत्तगलहस्त, गर्दनमें अपहरण नहीं कहते। हाथ लगाकर नकाला हुवा । अपहरणीय (स० त्रि०) अपहर्त्तमह्यम् अप-ह- अपहस्तित (सं० त्रि. ) अपहस्तः क्रियते स्म अप- अर्वार्थे अनीयर्। अपहरणके योगा, ले लेने लायक, हस्त-णिच् कर्मणि क्त। गलहस्तद्वारा नि:सारित, जो छिपा देने लायक, जिसके अपहरण करनेसे दोष वा गले में हाथ देकर निकाल बाहर कर दिया गया हो। दण्डकी विधि न रहे। अपहार (सं• पु०) अप-ह-घञ्। चौर्य, अपहरण, "वनस्पत्य' मुलफल दा न्यथ' तथैव च । अपनयन, अपचय, चोरी, हानि, छिपाना। तृणञ्च गोभ्यी ग्रासार्थमस्ते य' मनुरब्रवीत् ॥” (मनु ८३३९) अपहारक (सं त्रि.) अप हरति अप-ह कर्तरि पुष्प, मूल, फल, होमाग्निके निमित्त लकड़ी खु ल। चौर्यकारी, अपहरणकर्ता, सङ्कोचक, एवं गोग्रासके लिये घास-इन सब चीज़ोंको विना स्थानान्तरको आकर्षकारी, चोर, लुटेरा, डाकू। अप- पूछे ले लेना चोरी नहीं होता। हारक दी प्रकारके होते हैं। १ ला अप्रकाशमें "वीरहनस्पतीनां पुयाणि स्ववदादीत फलानि चापरिहतानाम् । (गीतम) अपहारक, जैसे चोर आदि। २रा प्रकाशमें अपः जिस स्थानमें बाड़ा न हो, उस स्थानको लता हारक, जैसे सोनार आदि। और वृक्षका फल मूल अपना जैसा ले सकते हैं। अपहारित (हिं० वि०) लुटा हुआ, छिना हुआ, “हिजोऽध्वग: चौणहत्तिविक्ष ई च मुलके । चुराया गया। आददानः परवान्न दस दातुमहति ॥" (मनु ८।३४१) अपहारिन् (सं त्रि०) अप-ह-णिनि। अपहर्ता, जिसके पास राहखर्च न हो, ऐसा दिज पथिक अपहरणकर्ता, चोर, डाकू। बिना मांगे भी यदि दूसरेके खेतसे दो अख या दो अपहारी, अपहारिन् देखी। फल ले ले, तो दण्ड पाने योगा नहीं ठहरता। अपहार्य (सं० वि०) चोरी करने योगा, ले लेने पूर्वकालकी यह व्यवस्था देखनेसे साफ जान लायक, छीनने काबिल। पड़ता है, कि उस समय शासनको ऐसौ कड़ाई न अपहास (सं० पु०) अप अप्रयोजने हास: अप- थी। उस समयके मनुष्य विलासी न रहे, थोड़ी ही हस-घञ्। अकारण हास्य, बेसबब हंसी, उपहास । भोजनवस्तुसे सन्तुष्ट हो जाते थे। इस समय यदि कोई अपहृत (सं• त्रि.) चुराया हुआ, लूटा गया, दूसरेके खेतसे दो ऊख ले ले, तो विचारालयमें उसे वेतका दण्ड मिलता है, किन्तु लक्ष्मीको कृपासे अपहेला (सं० पु०) तिरस्कार, झिड़की। प्राचीन भारतवासी इस कठिन नियमको न जानते अपङ्गव (स० पु०) अप-हु अप्। अपलाप, किसी रहे। उनके खेत शस्यादिसे पूर्ण होते, इसौसे पथिक बातका जानकर छिपाना, स्थायी वस्तुको अस्थायी प्रभृति यदि कोई वस्तु ले लेते, तो खेतका मालिक रूपसे कहना, बहाना, टालमटोल, दुराव । उन्हें कुछ भी न कहता था। अपङ्गव दो प्रकारका होता है-शब्दगत और अपहरना (हिं० क्रि०) चुराना, छीन लेना, लट अर्थगत। शब्दगत यथा-यदि कोई वादी कहे,- लेना, नष्ट करना, क्षय करना। 'वह मेरा सौ रुपया चाहता है।' उसको इस बात- अपहर्तृ ( स० वि०) अप-ह-दृच् । अपहारक, अप पर प्रतिवादीका 'सौ रुपये झूठ हैं' बोलना शब्दगत हरण करनेवाला, चोर। अपझव कहा जायगा। कारण, इस जगह शब्दहारा अपहर्ता (सं० पु.) चार, लुटेरा, ले लेनेवाला, ही प्रकृत विषय गोपन किया गया। छीन लेनेवाला, अर्थगत यथा,-'क्या तुम कलिङ्ग देशमें वास करते छोना छाना।