पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६५६

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यस्याः। अपूर्वपति-अपेक्षाबुद्धि अपूर्वपति (सं० स्त्री०) न पूर्व पतिरस्याः, नज- अपृणत् (वै० त्रि०) १ पूरा न करते हुवा, जो बहुव्री। १ कुमारी, अविवाहिता बालिका, जिस दानसे सम्मान न देता हो। २ कपण, कज्जस। लड़कीको शादी न हुयो हो। अपूर्वः आश्चर्य: पति- अपृथक् (सं० अव्य०) सहयोगसे, सहित, साथ, २ सुन्दर पतिवाली स्त्री, जिस औरतका मिलाकर, अलग-अलग नहीं। 'किम्त्वपृथग्दद्यात्।' (शूलपाणि) खाविन्द खूबसूरत रहे। अपृथग धर्मशील (स त्रि०) समान धर्मविशिष्ट, अपूर्वपतिका, अपूर्वपति देखो। जिसका धर्म अलग न रहे। अपूर्वरूप (सं० पु०) काव्यालङ्कार विशेष। इसमें अपृथगधी (सं० त्रि०) सम्पूर्ण द्रव्यमें परमेश्वरको देखते पूर्वावस्थाका मिलना असम्भव बताते हैं। जैसे हुवा, जो सब चीज में ईश्वरका ख.याल रखता हो। बहुरि मिले धन जो गयी बहुरि मिले भुवि राज। अपृष्ट (सं० त्रि०) पूछा न गया, जिससे बात न पर यौवन फिर नहि मिले मानिनि मान अकाज ॥ हुयो हो। अपूर्ववत् (सं• अव्य० ) विलक्षणतासे, अनोखेपनमें, अपेक (सं० पु०) दुरालभा, लटजौरा । अजीब तौरपर। अपक्षण (स लौ०) अपेक्षा देखो। अपूर्ववाद (सपु० ) अपूर्वो विषयो वादो वाक्यम् । अपेक्षणीय (स० त्रि.) अप इक्ष कर्मणि अनीयर् । १ अपूर्वविषयक वाक्य, तत्त्वज्ञानेच्छुको कथा, अनोखी १ अपेक्षाके योग्य, अनुरोधके योग्य, प्रतिपाल्य, खयाल बात। २ गङ्गशोपध्याय विरचित शब्दचिन्तामणिका रखने काबिल, जो राह देखने लायक हो। २ अपेक्षा ग्रन्थविशेष। किया जानेवाला, जिसकी राह देखना पड़े। अपूर्वविधि (सं० पु०) विधीयतेऽनेन, वि-धा करणे अपेक्षा (सं० स्त्री० ) अप-ईक्ष भावे टाप् । १ कि ; अपूर्व प्रमाणान्तराप्राप्ते अपूर्वस्य प्रमाणान्तरा- आकाङ्क्षा, खाहिश। २ किसी पदके साथ दूसरे प्राप्तस्य वा विधिः विधायकं वाक्यम्, ७ वा ६-तत् । पदका अन्वय, एक जुमलेसे दूसरे जुमलेके मानीका अन्य किसी प्रमाणसे न पाये जानेवालेका प्रापक मिलान । ३ स्मृहा, लालच। ४ अनुरोध, हवाला। वाक्य । विधि देखो । जैसे–“स्वर्गकामो यजेत।" अर्थात् स्वर्ग ५ न्यायोक्त ज्ञानवाली स्थिति और उत्पत्तिको प्रयो- जानेवालेको यज्ञ करना चाहिये। किन्तु यन्न करने जकता, कार्य और कारणका सम्बन्ध। जो बात से स्वर्ग जानेको बात सिवा इस वाक्यके दूसरी किसी जिस बातको अतेक्षा करे, वह उसी बातको प्रयोजक जगह प्रमाणित नहीं पड़ती। बने और जो स्थिति और उत्पत्ति जिस स्थिति “विनियोगविधिरप्यपूर्वविधिनियमविधि-परिस'खयाविधिभेदास्त्रिधा ।" और उत्पत्तिको अपेक्षा रखे, वह स्थिति और (गदाधर) उत्पत्ति उसी स्थिति और उत्पत्तिको प्रयोजक अपूर्वीय (सं० त्रि०) दूर अथवा अप्रत्यक्ष कर्मफल होगी। जैसे, घटका ज्ञान पानेमें यदि घटका सम्बन्धीय, जो दूरदराज़ या पहले न देखे गये कामके ही ज्ञान अपेक्षा अड़ाता, तो घटके ज्ञानका प्रयोजक नतीजेका हवाला रखता हो। घटज्ञान ही निकलता है। इसीतरह घटको स्थिति अपूर्वेण (सं० अव्य०) पहले कभी नहीं। और उत्पत्ति ही घटको स्थिति और उत्पत्तिको अपूर्य (सं० त्रि.) १ प्रथम, प्रौव्वल, जिससे पहले प्रयोजक होगी। श्रुतिवाक्य में अन्य किसी वाक्यको दूसरा न रहे। २ विलक्षण, अनोखा, निराला, अपेक्षा नहीं आती। अजीब। अपेक्षाबुद्धि (स. स्त्री०) अपेक्षया युक्ता सह वा अपृक्त (सं० त्रि०) पृच्-त, नज-तत्। १ असम्बद्ध, बुद्धिः, ३-तत्। १ वैशेषिक शास्त्रका मानसिक प्रयोग, असंयुक्त, जो मिला न हो। (पु.) २ पाणिनिके सम्बद्ध और नियमबद्ध बनानको योगाता। मतानुसार एक अक्षरका शब्द अथवा विभक्ति । निर्मलता, अक्ल की सफाई। २ बुद्धिको