पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६६४

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अप्रगुण-अप्रता अप्रगुण (सं० त्रि०) न प्रकृष्टो गुणः अङ्गः उपकरणं अप्रजनि (वै० वि०) सन्तानरहित, बेऔलाद, जिसके कार्यसामथ्यं वा यस्य । १ अङ्गशून्य, उपकरणरहित, कोई बाल-बच्चा न रहे। कार्यमें अक्षम, व्याकुल, अज़ासे खाली, बेऔजार, | अप्रजस् (सं० पु०-स्त्री०) नास्ति प्रजा सन्ततिः यस्य काम न कर सकनेवाला, घबराया हुवा। (पु.) यस्या वा, नज-बहुव्री०। प्रजारहित, सन्तानरहित, २ प्रकृष्ट गुणका अभाव, अङ्ग उपकरणादि भिन्न, निःसन्तान, बेऔलाद, जिसके बालबच्चा न रहे। "अप्रजस्वमाबनिमित्तत्वेन ।” (जीमूतवाहन) कामिल वस्फको नामौजूदगी, अजा-ौजार वगैरहको छोड़ दूसरी चीज़। अप्रजस्ता (सं० स्त्री०) सन्तानराहित्य, औलाद न अप्रग्राह (सत्रि०) अप्रतिहत, स्वतन्त्र, बेलगाम, होनेकौ हालत। रोका न गया। अप्रजस्त्रीधन (सं.क्लो०) अप्रजाया अपत्यरहिताया अप्रचङ्कश (सं०वि०) १ दृष्टिरहित, नाबौना, जिसे स्त्रिया धनम्, ६-तत्। सन्तानरहित स्त्राका धन, देख न पड़े। २ कुरूप, बदसूरत, जो खूबसूरत औलाद न रखनेवाली औरतकी दौलत । न हो। "अप्रजस्त्रोधन' भर्तु ब्राह्मयादिषु चतुष्वं पि।” (याचवल्का) अप्रचरित, अप्रचलित देखो। अप्रजा (स. स्त्री०) प्रकष्टं जायते प्रजं सन्तानम्, अप्रचलित (सं० त्रि०) प्रचलनविहीन, व्यवहार प्र-जन-ड ; नास्ति प्रजौं सन्तानं यस्याः, नज-बहुव्री० । वजित, जो काम आये, नाजायज.। टाप । अपत्यरहिता स्त्री, निःसन्तान स्त्री, जिस अप्रचुर (सं० वि०) तुच्छ, न्यून, कम, थोड़ा। औरतके औलाद न रहे, बांझ । अप्रचेतस् (सं० वि०) न प्रकष्टं चेतति जानाति, न "अप्रजायामतीतायां बान्धवास्तदवाप्नु युः।” (याज्ञवल्का) प्र-चित उण् असुन्। १ अज्ञान, बेवकू.फ। (पु.) अप्रजात (सं० त्रि०) निःसन्तान, बे-औलाद, जिसके न प्रचेताः, नज-तत्। २ वरुण भिन्न, जो देवता बालबच्चा न रहे। वरुण न हो। अप्रजाता (सं० स्त्री०) प्रकृष्ट जातं अपत्यम् पप्रचेतित (सं० त्रि.) अज्ञात, जो जाना-बूझा यस्याः सा प्रजाता, न प्रजाता कदापि न जातापत्या । न हो। गर्भ न रखनेवाली कन्या, वन्ध्या, बांझ, जिस औरतके अप्रचोदित (सं० त्रि०) १ अनिच्छित, खाहिश न कभी हमल न रहा हो। रखा गया, जिसके लिये आज्ञा न निकली हो। अप्रणीत (सं० त्रि०) प्र-णी-क्त प्रणीतम् ; न प्रणी- २ अनुक्ती, कहा न गया। ३ अयाचित, न तम्, नञ्-तत्। १ असम्पब, अकृत, अक्षिप्त, अप्रवे- शित, खालो, नाकाम, डाला न गया, जो पहुंचा न अप्रच्छन्न ( स० त्रि) प्रच्छन्न भिन्न, आवरणरहित, हो। (लौ०)२ वेदविधानसे'असंस्कृत अग्नि । स्पष्ट, बेपरदा, साफ, ज़ाहिर, जो ढंका न हो। अप्रणोद्य (सं० त्रि.) दूरीभूत न किया जानेवाला, अप्रच्छेद्य (सं• त्रि.) अन्वेषण लगानेके अयोगा, जो निकाला न जाये। जिसको तलाश न हो सके। अप्रत् (वै० त्रि०) १ न बहनेवाला, जो रुका हो। अप्रच्युत (स त्रि०) १ न हिला डुला, जो सरका २ निर्धन, गरीब। न हो। २ अपतित, गिरान हुवा। अप्रतक्यं (सं• त्रि.) न प्रतयितुं शक्यम् ; न अप्रज (स.नि.) न प्रजायते भार्यागर्भ पुत्ररूपेण, प्रतक शक्यार्थे यत्, नञ्तत्। १ तर्कके अयोगा, प्र-जन-ड। १ अजात, पैदा न हुवा। २ वन्ध्य, बांझ। बहसके नाकाबिल। २ अवर्णनीय, अभावनौय, ३ जनशून्य, जहां लोग न रहते हो। (स्त्री०) समझमें न आनेवाला, जिसका बयान बंध न सके। अप्रजा। अप्रताः (स. त्रि०) प्र ताय सन्तानपालनयोः क्लिप मांगा हुवा।