पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७०८

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अफरीदी-अफलता कभी-कभी अंगरेजोंके साथ इन्होंने हृद्यता भी देखायो इन्हें भी अन्तको खासौ सजा मिली। सन् १८७७- है। किन्तु अओजाकगली और जेवोयाको राहवाले ७८ ई० में फिर इनपर दूसरी चढ़ाई हुयो। कारण अफरीदीयोंके साथ ही अंगरेज सरकारको विशेष इन्होंने पहली सजाको कुछ न समझा और अंगरेजी घनिष्ठता पायेंगे। इस सारी राहको रक्षा रखनेके राज्यमें लूट-मार मचाते रहे थे। अंगरेजी फौजने लिये पहलेसे यह अनेक नृपतिसे कुछ-कुछ रुपया लेते इनके प्रधान ग्राम विनष्ट किये और कुछ दिन देशपर पाये हैं। गज़नौके राजावों, मुगलनृपतियों, दुरा अधिकार जमाये बैठी रही। अन्तको इन्होंने अंगरेजी नियों, सिखों, अंगरेजों प्रभृति सभी नरनाथोंने इनके शतें मानीं। उसके बाद कोहाट घाटी निरापद साथ कोई न कोई बन्दोबस्त बांधा, किन्तु यह स्वभा बन गयो थौ। सन् १८७८ ई० में बाजौर-उपत्यकाके वत: असभ्य होते, इसलिये किसीके साथ सद्भाव रख ज.काखेल अफ.रीदियोंसे युद्ध ठहरा। इन्होंने २२ नहीं सकते। चूरू और तौरहवाले ओरक अफगान युद्ध में जाती हुयी अंगरेजी फौजको मारा जाइयोंके किसी सर्दार नादिरशाह और उनके सैन्य और उसके डेरोंपर आक्रमण किया था। अंगरेजी सामन्तको पथ देखा पेशाबर लाये थे। चुरूत खान् फौजने इनके देशको ख ब कुचला और इन्हें अपने बहादुर नामक कोई प्रसिद्ध अफरीदी रहे। शाह अधीन बनाया। सन् १८७८ ईमें फिर इन्होंके शुजाने उनको किसी कन्यासे विवाह किया और विरुद्ध अंगरेजी फौज चढ़ी थी। कुछ हानि उठा भारतवर्षसे भाग उन्हीं सर्दारके घर जा छिपे थे। अन्तमें इन्होंने अंगरेजी वश्यता स्वीकार की। सन् जेवोयाको राहके अफरीदी सकलको अपेक्षा १८८७ ई० में तौरह-युद्ध पड़ा। सन् १८०८ ई०के अधिक भयङ्कर होते हैं। इन्होंने पेशावर और कोहाट फरवरी मास ज.काखेल अफ.रोदियोंसे लड़ाई हुयी विभागमें विस्तर अत्याचार मचाया और सिन्धुनदपर थौ, किन्तु शीघ्र ही मिट गयो नौका लूट ली थीं। अफल (सं० त्रि०) नास्ति फलं यस्य, नञ्-बहुव्री। अंगरेजोंने अफरीदीयोंके ऊपर भारतसे कितने १ फलशून्य, न फलनेवाला, जिसमें फल न लगे। ही अभियान भेजे हैं। सन् १८५०१० में कोहाट २ निष्फल, फ.जू ल, जिससे कुछ हासिल न आये। घाटोके अफरीदीयों पर चढ़ाई हुयी ३ वीर्यहीन, जो कुव्वत-बाह न रखता हो। (पु.) सड़क बनानेवाले कितने ही मज़दूरोंमें बारहको मारा ४ भाऊका पड़। नास्ति फलमिव वृषणौ यस्य । और छ: को जखमी किया था। सन् १८५३ ई० में ५ फल-जैसे अण्डकोष न रखनेवाले देवराज इन्द्र। बोरीगांवके जवाको अफ.रोदियोंपर अभियान पड़ा। रामायणके आदिकाण्डवाले ४८ सर्गमें लिखा है, कि अंगरेजी फौजने बोरीका किला तोड़ डाला था। अहल्याका धर्म बिगाड़नेपर गौतम ऋषिने इन्द्रको यह सन् १८५५ ई० में आकाखेल अफ.रीदियोंसे युद्ध हुवा। शाप दिया था,-'दुर्मते ! तू विफल हो जा।' मुनिके सन् १८५४ ई में इन्होंने कोहाट-घाटीकी राह इस शापसे उसी समय इन्द्रका मुष्क गिर पड़ा। इसी- सुरक्षित रखनेको जो रुपया दिया जाता, उसका भाग से इन्द्रको विफल या अफल कहते हैं। नपा पेशावरको सौमापर धावा लगाना शुरू और ६ मेष, भेड़। मेषके मुष्कसे इन्द्रका पुनर्वार मुष्क अंगरेजी डेरपर आक्रमण किया था। अंगरेजी फौज बननेसे उसे अफल अर्थात् फलशून्य कहा जाता है। ने इन्हें खासौ सजा दे जुर्माना लिया। सन् १८७७ अफलकाछिन् (सं०वि०) फलको आकाचा न रखने- ई में जवाको अफरीदियोंपर आक्रमण हुवा। भारत वाला, जो मुफीद बातको तर्फ ख़याल न लड़ाता हो। सरकारने कोहाट-घाटोको रक्षाका पुरस्कार कुछ अफलता (सं० स्त्री० ) पालशून्यता, निष्प योजनीयता, घटाना चाहा, जिससे इन्होंने नाराज हो तार काट बेसूदौ, फल न पालनेको दशा, जिस हालतमें नतीजा डाला और अंगरेजी सीमापर आक्रमण लगाया था। न निकले। Vol I. 176 कारण, इन्होंने