पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७१४

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उस अबुल फजल वह मर गये। उसी समय नगरमें दारुण दुर्भिक्ष | एकड़ बुलानेको आज्ञा दो थो। मुबारकने देखा, रहा। असंख्य-असंख्य लोग अन्नाभावसे चलते बने । विषम कुचक्र रहा ; आगरेमें रहनेसे प्राण बचानेका खिज.र्के परिवार में भी दूसरे सब लोग मरे ; केवल उपाय न था, इसलिये वह चुपकेसे भाग खड़े हुये। मुबारक और उनकी माता जोते बची थीं। किन्तु उनका यह कष्ट अधिक दिन न रहा। मुबारक अतिशय माटभक्त रहे, जननीको छोड़ अकबरके धाळपुत्र खान्-आज.म मिर्जा कोकाने कहीं रुक न सकते थे। पढ़ने लिखनेमें वह खूब सम्राटके मनको मलिनता निकाल डाली थी। ध्यान लगाते; नगरके पास उस समय जो सकल समय फैजीका वयस बोस वत्सर रहा ; किन्तु विहान रहे, उनके पास विद्याध्ययन करने चले जाते । उनको मधुर कवितामें सभी लोगोंका मन फस गया फ.कौर खाजा अहरर उनके प्रधान उपदेष्टा रहे। था। अपनौ विद्या, बुद्धि और कवित्वके गुणसे क्रमशः खाजा साहबने उन्हें नाना शास्त्रमें ज्ञान दिया था। वह अकबरके प्रियपात्र बन बैठे। कुछ दिन बाद माताको मृत्यु हुयी। उसी समय इसी समय अबुल्-फ.जल दिवारान निर्जनमें मालवेमें भी गोलयोग पड़ा था। मुबारक नगरसे अध्ययन करते थे। पन्द्रह वत्सरके वयसमें ही गुजरातान्तर्गत अहमदाबादमें जाकर रहने लगे। इन्हें अगाध शास्त्रज्ञान उत्पन्न हो गया। लोग कहते वहां पर शैख यूसफ के साथ उनको विशेष हृद्यता हैं,-अबुल फजल जब पञ्चदश वत्सरके बालक रहे, हुयी थी। अन्तको सन् ८५. हिजरोमें वह अह तब उनके हाथ कोई इस्फहानी पुस्तक लगा। मदाबादसे निकल आगरको बगलमें रामबाग़के पुस्तकको अधीश आगमें जल गया था ; सुतरां प्रत्येक पास जाकर रह गये। उस समय मीर रफीउद्दीन को पत्रका आधा भाग रहा, बाकी आधा नहीं। अबुल- बड़ी प्रतिपत्ति रही। रामबागके पास वह रहते फ.ज.लने पहले कभी वह पुस्तक देखा न था। किन्तु और अनेक छात्र शिष्य उसी जगह शास्त्राध्ययन जो जो अंश जला, वह लिख देना इन्हें उचित समझ करते थे। उपयुक्त गुरुको देख मुबारक भो उनके पड़ा। इसलिये इन्होंने पुस्तकको दग्ध दिक् काट- पास पढ़ने लगे। उसी जगह शैख अबुल्-फजी एवं छांट समस्त पत्रमें नया कागज, लगा दिया। पीछे उनके कनिष्ठ अबुल्-फ.ज.लका जन्म हुवा था। फेजो प्रत्ये क पत्रके आधे अर्थसे मेल मिला अवशिष्ट पत्र से फ.जल चार वर्ष छोटे रहे। सन् १५५१ ई०को पूरण किया था। कुछ दिन बाद कोई समग्र पुस्तक १४वीं जनवरीको इनका जन्म हुवा था, मुबारक इनके हाथ लगा। इन्होंने दोनोको मिलाकर देखा,- यत्नपूर्वक अपने सन्तानको विद्याकी शिक्षा देने अनेक स्थानमें नूतन शब्द सबिवेशित हुवा, अनेक लगे। स्थानका पाठ भी सम्पूर्ण नया बना ; किन्तु साधारणतः कुछ दिन बाद भारतवर्षके नाना स्थानमें माधियों समस्त पुस्तकके भावका व्यतिक्रम कहीं भी पड़ा न का उपद्रव उठा। मुबारक अकेले ईखरका अस्तित्व था। यह देख इनके बन्धुबान्धव चमत्कृत हो गये। मानते रहे ; किन्तु मुसलमान-धर्मपर उन्हें अच्छौ अकबरसे राज्यशासन पानेके १८वें वर्ष यह तरह श्रद्धा न थी। इससे लोग उन्हें नास्तिक कहते, सम्राट्स मिले। इनके लेखसे प्रमाणित है, कि उस कोई-कोई हिन्दू बताते थे। माधियोंका उपद्रव समय पूर्वमें यह अतिशय विद्वान् और उत्तम ग्रन्थकार उठनेपर मुबारक उनके साथ रहे। किन्तु मालूम रहे। फैजौने अपने कनिष्ठका परिचय बता सम्राट्के नहीं, इसतरह योग देनेको अभिसन्धि क्या थी। साथ पालाप करा दिया। प्रथम दिन हो अबुल- माधी अकेले ही सर्वनाश करने चले थे, फिर मुबारक फ.ज.लके प्रति उनकी कृपादृष्टि पड़ी थी। इसी समय भी उनके पक्षपर खड़े हो गये ; इसौसे अकबरके अकबरने बङ्गाल और विहार जीतनेको उद्योग सभासदौको अतिशय क्रोध आया। सम्राट्ने भी उन्हें लगाया ; युद्ध-सज्जा हुयो, विहारके अभिमख सैन्य-