पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७१७

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७१० अबुल्-फजल अबुल फजलने बाजमन्ना एवं अली-शाहसे लड़ फजलके अनुचरोंने भी घाटौ चांदेसे चलनेको अनेक नासिक, जालनापुर और निकटवर्ती अन्य-अन्य चेष्टा को थी, किन्तु इन्होंने किसीका परामर्श न स्थान जीते थे। माना। अब ल-फजल नरवरके पथ आगेको बढ़ने वैसे समय दुष्ट लोगोंको कुमन्त्रणासे सलीम लगे। अन्तमें थोड़ी ही दूरपर कालस्वरूप वीरसिंहके (जहांगीर )का कितना हौ भावान्तर पड़ा। बीच में लोग सामने आ धमके। गदाई खान् नामक अबुल- वह एक बार विद्रोही ही बन गये थे। अकबर उस फजलके किसी विश्वासी नौकरने युद्ध न करने को समय असौरगढ़के युद्ध में व्यस्त रहे; उन्होंने आगरे समझाया था। उस समय तीन कोस दूर अन्त्री वापस पहुंच सलीमको निरस्त किया था। कुछ नामक स्थानपर सम्राट्के तुर्की सवार उपस्थित दिनों तो सद्भाव रहा, किन्तु उसके मिटने में देर न रहे। अबुल फजल चाहते, तो अनायास वहां भाग लगी। सलीम इस बार इलाहाबाद पहुंच स्वयं जा सकते थे। किन्तु संग्रामसे मुंह फेरना कापुरुष- राजा बने और अकबरको चिढ़ानेके लिये खास अपने का काम है; इसलिये यह वीरोचित दर्पसे युद्ध में नामका रुपया ढाल उनके पास भेजने लगे। अक भुक पड़े। शत्रु वोंने चारो ओरसे झपट इन्हें घेर बरने देखा, कि विपदके बन्धु अबल्-फजल रहे। लिया था। दूसरी किसी ओर भागने की राह न दूसरे सब आदमी चुपके-चुपके सलीमका पक्ष लेते रही, शेषमें किसी तुर्की सवारने भालेसे इनका थे। अपने स्वार्थसाधनके लिये लोग सलीमको वक्षःस्थल छेद डाला। अबु ल-फजल देखते-देखते दुरभिसन्धिमें हवा भरते रहे। इस कारण उन्होंने धराशायी हुये। वीरसिंहने आकर इनका मस्तक • अबुल्-फजलको शीघ्र बुलानेके लिये आदमी भेज दिये। काटा था। पीछे वही मस्तक इलाहाबाद सलीमके दक्षिणको लोग दौड़ पड़े। सलीमको समस्त पास भेजा गया। सलीमने मनको वृणा देखाने के सन्धान लग गया था। उन्होंने सोचा,-'अबल लिये अनेक दिन पर्यन्त उस मस्तकको किसी कदर्य फज,लको मार सकनेसे हमें दूसरी कोई पाशङ्का न स्थानमें पड़ा रहने दिया था। रहेगी। पिताके पास प्रतिपन्न होते भी हम कष्ट उधर सम्राट् अब ल-फजलको पहुंचके दिन गिनने नहीं पा सकते। फजलके प्राण लेनेको यही सुयोग लगे। किन्तु अबु ल-फजल न आये, आगरेमें इनकी है।' वीरसिंह उस समय ओके राजा रहे। मृत्यका संवाद पहुंच गया। दूसरे सब लोगोंने उनके साथ अकबर सड़ाव रखते न थे। सलीमने सुना, किन्तु अकबरको खबर न हुयी, उन्हें यह अब ल-फजलका प्राण लेनेके लिये राजा वीरसिंहको संवाद कौन सुनाने वाला था ? तैमूर वंशको रीति नियुक्त किया। दक्षिण-देशसे लोटते समय सम्भव रही,-राजपुत्र प्रभृति किसीकी मृत्यु होने से उनका रहा, कि अब लफजल ओळ राज्यके भीतरसे जाते। वकील हाथमें काला रूमाल लपेट सम्राट के पास वीरसिंहने इनकी खबर लेनेको चारो ओर लोग पहुंचता था। अबु ल-फजलको मृत्य का संवाद लगा दिये थे। देनको इसी रीतिपर वकील हाथमें काला रुमाल अबुल फजल दक्षिणमें अपने पुत्र अब्दुर रहमानके लपेट अकबरके सामने गया। वकीलको देखते ही हाथ समस्त सैन्यका भार रख आगरेको रवाना सम्राट का प्राण घबरा उठा। शेषमें उन्होंने सुना, हुये। साथमें कुछ पहरा देनेवाले सिपाही ही रहे। कि सलीम हो अब ल-फजलको मृत्यु का कारण रहे। यह उज्जयिनी पर्यन्त पहुंचे, किन्तु पथमें कहीं भी अकबर मनोदुःखसे बोल उठे,-"सलोम यदि राज्य विपदको आशङ्का न देखो। हां, उज्जयिनौके लोगोंने लेना चाहते थे, तो उन्होंने मुझे क्यों न मारा ? सलीमको दुरभिसन्धिका कुछ आभास पाया था। अबुल फजलके जीते रहने से मैं बहुत सुखी होता।" उन्होंने अबुल-फजलको सतर्क कर दिया। अबुल वीरसिंहको मारनेके लिये सम्राट्ने पात्रसिंह