पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७२३

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७१६ अबीर रहेगी। अन्यरूप हो गयी है। किन्तु यह परिवतन सकल वही परमेश्वर सृष्टिकर्ता और सकलके प्रधान हैं। स्थानमें नहीं पड़ा। सचराचर यह वृक्ष-विशेषके किन्तु उनके अधीन अनेक सामान्य-सामान्य वनदेवता बकलेका कौपीन चिटकी तरह बांधेगे। कौपीनको रहेंगे। हम जैसे वरुणको जल, सरस्वतीको विद्या पिछलौ ओर शृगालकी पूंछ-जैसी कोई हाथ भर और लक्ष्मीको सौभाग्यका देवता समझते, अबीर- लम्बो पुछल्लो लटका करती है। बैठते समय उसका देवतावोंके हाथ भी वैसे ही भिन्न-भिन्न कार्य सौंपा आसन लगे और लेटने में तकियेका काम निकलेगा। गया है। यह परकालपर विश्वास रखेंगे। मनुष्यके अच्छीतरह सजने-बजनमें इनकी पोशाक दूसरी तरह मर जानेपर यम उसके पापपुण्यका विचार करते उस समय हाथको सिलो रङ्गीन फतुही हैं। विचार होनेसे मनुष्य इस जन्म जैसा काम पहनते हैं। फिर फतुही पर टाट जैसा मोटा पशमौ करता, मृत्युके बाद उसका भोग्य वैसा ही सुख-दुःख जाकेट भी चढ़ायेंगे। किन्तु राजकार्यके समय अस्त्र पड़ता है। पौड़ा होनेसे कोई औषध लेना मिथ्या शस्त्र ले जब यह ठाट-बाटसे खड़े होते, तब उस ओर है। मनुष्यपर भूत चढ़नेसे हो पौड़ा उठेगी। पूजा देखने पर महापाणी भी कांप उठता है। इनके करने और वलि देनेसे भूत भागता है, इसलिये फिर माथेपर विकटाकार शिरस्त्राण रहेगा। भौतरी ठाठ पौड़ा नही रहती। रिगम नामक कोई पर्वत है। बिलकुल हमारे देशको टोकरी-जैसा बेतसे वुना होता कदाचित् भूत उसी जगह रहना पसन्द करते हैं। है। उसका उपरिभाग भालू के चमड़े से मढ़ा जायेगा। अबीर बता देंगे,–'रिगम पर्वतपर जानेसे कोई मनुष्य बीच-बीच सूवरका दांत, सुरागायको पूंछ और वापस नहीं आता। पक्षीको बड़ी चोंच खोंस देते हैं। हाथमें भाला, इनके मध्य विचक्षण लोग ही पुरोहित होते हैं; छुरा, सोधो तलवार और धनुर्वाण ले लेंगे। इनमें पुत्रपौत्रादिक्रमसे कोई पुरोहित बन नहीं सकता। स्त्री पुरुष सभी लोग घोड़े पर चढ़ सकते हैं। अबोर पुरोहितको देवतार कहेंगे। पुरोहितमें गुण स्त्रियां सचराचर दो वस्त्र पहनेंगी। एक वस्त्र यही रहता, कि पक्षीको नस और शूकरका यकृत् तो कमरमें बंधता है। पीछे खिसक पड़ने कारण देख मनकी बात बता सकता है। किसौके मरने उसे बेंतसे गूंथ देंगे। इस वस्त्रसे घुटनेतक शरीर किंवा पीड़ित होनेसे पुरोहित सूवरका गुर्दा देवतापर ढंकता है। दूसरा वस्त्र छातीपर चिपका रहेगा। चढ़ायेगा। उसके बाद रुग्ण और वृद्ध लोग वही किन्तु यह कोई बात नहीं, वस्त्राभावसे कैसे काम प्रसाद खाते हैं। मोरङ्ग-भवनमें जो लोग रहें, वह चल सकता है। व्यवहार चल जानेसे हमें लज्जा भी देवताका प्रसाद खाने पायेंगे। निमन्त्रण दे एक आयेगी। किन्तु अबोर-युवती स्वच्छन्द विवस्त्र हो दूसरेको मांस खिलानेपर जो बात ठहरती है, किसी नाचती हैं, जिससे कोई भी नहीं शर्माता। मन्द्राजी तरह उससे अन्यथा नहीं आता। ऐसौ प्रतिज्ञाको. स्त्रियोंको तरह इनके कानमें भी बड़े-बड़े छिद्र होते, सनमुङ्ग कहेंगे। जिनमें बैंतके कुण्डल लटकते हैं। कोई छिद्रके मध्य इनके विवाहका नियम अति सहज है। किसी- काले भमके डालें और कोई हड्डी लगायेंगी। किसी स्थल में वरकर्ता एवं कन्याकर्ता विवाह ठह- गले में पड़ी हुयी नानावर्णको माला कमरतक लटक रायेगा। किन्तु यह नियम सकलके पक्षमें नहीं लहराती है। पैरमें विचित्र बेतको किङ्किणी होती, चलता। इनमें बाल्य विवाहका अभाव रहनेसे जिसमें छोटी-छोटो घण्टी लगो रहती,-चलते समय युवक युवती स्वयं कन्यापात्र चुन लेती है। दोनोके झुन-सुन बज उठती है। अबोर स्वौपुरुषों के बाल मन ही मन मिल जानेपर वर, कन्या और उसके छोटे-छोटे कटेंगे। पिताको भेंट भेजेगा। अबोरोंकी उपादेय सामग्री अबोर एक परमेश्वरका अस्तित्व मानते हैं। मट्टीका चूहा और काठको बिल्ली है। वर बीच-बीच