पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/१

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हिन्दी विश्वकोष (चतुर्थ भाग) भागवतमें लिखते-कपिन्त भगवान्का पञ्चम कपिल (स० वि०) कम-इलच् पादेशच । कर्मः पथ । एए १०५५। १ पिङ्गलवर्ण, भूरा, तामड़ा, मटमैला । अवतार रहे। उन्होंने महायोगी कदसके औरस पौर (पु.) २ अग्नि, भाग। ३ वर्णविशेष, मटमैला रंग। देवतिके गर्भसे जन्म खिया था। उनके जन्मक्षात ४ कुक्कुर, कुत्ता। ५ शिलारस, लोबान्। ६ महा पाकाशमें वर्णयौन मेघसे नानाविध वाद्य वजे, गन्धर्व देव ।। ७ विष्णु। ८ सर्पविशेष, एक सांप। दानव नाचने लगे, अप्सरोंने आनन्दगीत आरम्भ किये, विशेष, एक राक्षस। १० वणवक्ष, एक पेड़। पक्षियों द्वारा पुष्य बरसाये गये और दिक, जल एवं ११ पित्तल, पोतल । १२ मूषिकभेद, किसी कि.मका सर्वप्राणोके मन प्रसन हुये। स्वयं ब्रह्मा कर्दमके इसके काटनेसे व्रणकोथ, न्वर और ग्रन्थ्य अव पाश्रम पाये थे। उन्होंने कर्दमको पोर देखकर चूहा। होता है। (मनुत) १२ कुशद्वीपका पर्वतविशेष, एक कहा-हे सुने। तुम्हारे यह वाचक साक्षात् ईश्वर पहाड़। (मागणव प्रा२०१५) १५ सूर्य, आफताब। हैं। यह सिद्धोंके अधोखर हो जायेंगे और सांख्या- १४ वितथके पुत्र। १५ वसुदेवके पुत्र। नराचीके चार्य कटक पूनित हो जगत्में 'कपिल' नाम पायेंगे। गर्भसे यह उत्पन्न हुये थे। १६ मुनिविशेष। इनके इन्होंने ज्ञानसाधन सांख्यशास्त्र- उपदेश करनेको हो पिताका नाम कर्दम और माताका नाम देवइति यह अवतार लिया है। रहा। इन्होंने सांख्यदर्शन बनाया है। कपिलने अपने पिता कदम चौर माता देव- सांख्याचार्य कपिण एक अति प्राचीन ऋषि थे। इतिको ज्ञान उपदेश किया था। देवइतिने स्त्री वैदक उपनिषदागमें एनका नाम मिलता है। यह होते भी पुवसे तत्त्वकथा सुन भाग और मोक्ष पाया। सिवर्षियों में सर्वश्रेष्ठ रहे। इसीसे भगवान्ने गोतामें भागवतमें देवइतिके उपदेशच्छतसे कपिलकाटक सांख्यमत वर्णित है,- "गन्यांपां चिवरयः सिद्धानां कपिलो मुनिः। (गोता २०२६) "जो सकन पन्ट्रिय प्रज्ञाशामक रात और लिनके हम गन्धों में चित्ररथ और, सिहोंमें कपिल द्वारा पद स्वर्गदि विषय अनुभव वदले. कार्ति "मुनि। भगवान्वे प्रति उनकी साधन पंत्तिलो भी • "षि प्रसूत पापिलं यस्तमय भानविमति ।" (चाववर UR) निष्वामा भागवतो मत करते हैं। अमरल इएषी प्रस्त कपित पियो जिन्होंने सर्वपणन पातारा पोषय पिया। बिये व सुधिर श्रेष। 'पिस्तु इन्द्रियों व कहा है-