पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/११०

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समय। रामाराव पसम्नपाल १३५१" १३०४, १४४० " - द्वारकादास 99 करौली नयक पोछ इस राज्यको दिल्ली में मिला लिया। मुग- सुकनोको कारिवार लोंके गौरवका रवि जब डव गया, तब महाराष्ट्राने १२४२ ॥ पुगेपाल १२८४ " इस स्थानको अधिकार कर २५०००० रु. वार्षिक कर १२८८" विलोकपाल लगा दिया । १८१०ई०को पेशवाने करोचौका विपलपाल १३०४" उपसल अंगरेजीको सौंपा था। अंगरेजोंने करी- २३३० " सीके राजासे यह वन्दोवस्त वांधा-विपद पड़नेसे युगलपान करौलीके राजा सैन्यसंग्रह द्वारा अंगरेजोको यथासाध्य पर्नुनपाल (१म) साहाय्य देंगे। फिर करौंचौका राज्य अंगरेजोक विक्रमजिन्याल १३८६" १४१६" पाश्चित हुवा। पभवांदपाल मयारामपाल १८५२ ई० को महाराज नरसिंहने इहलोक छोड़ा चन्द्रसेनपाव १४(२॥ था। उनके पुवादि न रहनेसे करोचीको अंगरजी मारतीचंद १७८४ " रान्धमें मिलाने की बात चन्नी। किन्तु अनेक कल्प- गोपालदास २५००, नाके पीछे राजाके भामोय मदनपालको राज्यका १५२८ सिंहासन सौंपा गया। मदनपालने १८५७ ई० को सकन्ददास ११५० " विद्रोहके समय कोटा विद्रोहियोंके विपच सैन्य पुगपाल २५८२., तुलसीपाल १५८४ मेज अंगरोंको यथेष्ट साहाय्य दिया था। इसीसे 'धम्यपान (श्य) अंगरेजोंने उनको जि, सी, एस,,आईके उपाधिसे २४३८" । विभूषित किया। १५कै स्थानमें १७ सोपोंको सन्चामी पानिपाल भी हो गयी थी। १८६७ ई०को मदनपालका मृत्य पजयपाल (क्य) १९६२ " होनेपर दो राजावोंके पीछे १८७८ ई० में अजुन- राषिपाल पालको करोगीका सिंहासन मिला। मुजाधरपाल कुंवरपाल (श्य) करौली राज्यके महसूनसे कितना ही कर दिया यीगोपाल १००० " जाता है। यहां रीतिके अनुसार पुलिस नहीं । मारिकपास १०८२ ॥ राजाके सिपाही हो.पुलिसका काम करते हैं। करोली- चमूखपाव १८५४ " में १५० सवार, १७७० पैदल, ३२ गोलन्दाज और ४. परिपात (श्य) १८३६" तो हैं। सिपाही निम्नलिखित १२ दुर्गमें रहते हैं- -मधुपाल करौली नगर, ऊंटगढ़, मन्दरेल, नारोली, सपोतरा, पर्जुनपाल १८७८ दौलतपुर, थाली, नम्बरा, निन्दा, सुदा, उन्द और करौलीके राजा पर्नुनपाल अपनेको छष्णक खोदाई। करौलीको टकसाल प्रजग है। इसमें वंशधर और यदुवंशीय बताते थे। पहले यह वंश चांदीका रुपया बनता है। वृन्दावनके निकट व्रजधाममें वास करता था। किसी २ करौली राज्यका प्रधान नगरं। यह प्रचा. समय बरसाने में भी इसका रानव रहा। १०५३ को २५ ३०.३० और देगा. ७७°५ पू०पर मधुरासे मुसनमानीने यह स्थान अधिकार किया था। उस ३५ कोस. दूर अवस्थित है। किसी किसोर्क मता- समयसे इस वंशने करौली में था अपना राज्य जमाया। नुसार अर्जुनदेवके प्रतिष्ठित कल्याणजीवाले मन्दिरसे १४५४ ई०को मालवपति महमूद खिलजीने करौली ही इस नगरका नाम करौली पड़ा। १३४८ ई०को पाक्रमण किया था। पकबर बादशाहने मालव पर्जुनदेवने या नगर बसाया था। किसी समय रजपाख . २००४ " २०२६, २०४६ १८५६."