जाती है। कर्कटाढा-कर्कन्धु खेतमें क्यारी बनाते और. सीन चार वीज ३ फोटके ककटाता (सं० स्त्री.) कर्कटा-टाए। कर्कटङ्गी, ककड़ासौंगी। पन्तर लगाते हैं। दश दिनमें खेत सौचना पड़ता है। कर्कटि (सं. स्त्री०) करं वाटति मानोति, कर-कट- ककड़ीके वोनका तेल मोठा होता है। यह खाने और जलाने में लगता है। . इन् शकन्धादिलात् पलीयः। कक टी, ककड़ी। भावप्रकाशके मतसे कर्कटौ मधुर, शीतल, रुक्ष, कर्कटिका (सं० स्त्रो०) कटौ स्वाथै कान-टाप् इस्त्रश्च । मलरोधक, गुरु, रुचिकर और पित्तनाशक है। पक्क कर्कटी, ककड़ी। कर्क टी वृष्णा, अग्नि एवं पित्त बढ़ाती और मूवरोध कटिकेश (सं.ली.) कामरूपका एक ग्राम । घटाती है। तित कर्कटी रजापित्तनाशक और श्राइके पीछे इस ग्रामका प्रदक्षिण करना पड़ता है। कफदोषकारक होती है। इसका पाक इस प्रशार "उद्यान्नु गर्या गन्त' थाई' त्वा विधामनः । बनता है-परिपुष्ट ककटीको वल्कल' तथा बौज विधाय कर्फटिक ग्रामस्यास्त्र प्रदक्षिणाम्।" ( योगिनीतन्त्र ) निकाल गोलाकर खण्ड खण्ड काटते हैं। फिर तप्त कर्क टिनी (सं० स्त्री०) कर्कटवत पाकारो ऽस्यस्याः, तैलमें तलकर हस, दुग्ध और थर्कराके साथ यह पागी कर्कट-इन-लोप । दामहरिद्रा, दारुहल्दी। अन्ततः सूक्ष्म एलाका चूर्ण सुवासित कर- कर्कटी (सं० स्त्री०) कर्क कण्टक प्रति गच्छति, नेको पड़ता । यह पाक खानमें प्रति स्वादु भोर कर्क घट-इन-डोष प्रकाधादित्वात् प्रलोपः वा करं स्वास्थ्य लिये लाभदायक है। कटति, कर-कट-इन्-डीए। १ शाल्मलीवृक्ष, सेमरका कर टीवोज. (स' सी.) कटाके फलका बोज, पेड़। २ सपैविशेष, एक सांप। ३ देवदासी लता, ककड़ीका बोजा। इसे ठण्हाई में डालते है। .. एक वेल। ४ कर्कटशृङ्गी, ककड़ासोंगी। ५ एकि, कर्कटु (सं० पु.) कर्कट-कु । 'करटुपक्षी, एक व घोटिका वृक्ष, एक पेड़ । ७ वदरी, वरी। चिड़िया। ८कोमल श्रीफल। ८. घट, गगरी। १० तरोयो। ककड़ (म. पु. ) खटिका, खड़िया महो । ११ फललताविशेष, ककड़ी। (Cucumis Utiliss- कर्कद-चहत्तस्थ ग्रामविशेष भवि. वनखण्ड १५४२२) imus) इसका संस्कृत पर्याय-कटुदली, छर्दापनिका, सन्दु, कर्क देखो। पीनसा, मूत्रमला, वपुषा, हस्तिपर्णी, लोमशकाण्डा, कन्धु (सं० पु. स्त्रो०) कर्क" कण्टकं दधाति, मूत्रला, बहुकन्दा, कर्कटाक्ष, शान्तनु, चिभंटी, | कर्क -धा-कु-तुम्। क्षुद्रवदरवक्ष, झड़वेरीका पेड़। बालुकी, एरि पौर वपुषी है। (Zizyphus jujuba ) यह समग्र भारत, सिंहल, इसे पश्चिमोत्तर प्रदेश, बङ्गाल और पञ्जाबमें बीते मचक्का, ब्रह्मदेश, अफगानस्तान, अफरीका, मलय- है। फल सीधा या सुका होता है। यह कच्ची पक्की दोपपुज, चीन और अष्ट्रेलियामें होता है। भारतवर्ष -खायो जाती है। कच्ची ककड़ी छोलकर नमक और इसका श्रादि उत्यत्तिस्थान है। यहौसे. कन्धु पन्य काली मिर्च के साथ खानसे बहुत अच्छी लगती है। देशों में फैला है। कहते-पहले साधुसन्त बदरिकाश्रम- कोई कोई इसको तरकारी भी बना डालते हैं। में इसीका फल खा जीवनयात्रा निर्वाह करते थे। कर्कटीका फल २२३ फीट लम्बा होता है। नर्म इसका वल्कल और फल चमड़ा रंगने लगता है। ककड़ियोयर मुलायम भूरे रूये रहते हैं। पहले यह ब्रह्मदेशमें ककन्धुके फलसे रेशम भो रंगा जाता है। पौली हरी लगती, किन्तु पकनेसे नारनी पड़ती है। दरिद्र फलको अधिक खाया करते हैं। कभी कभी कर्कटौ ग्रोम ऋतुका फल है। युवाप्रदेशमें दूसर फलको कूट पीस रोटी भी बना लेते हैं। पत्र पशुका समय यह हो नहीं सकती। इसके लिये भूमि सूखी, खाद्य है। तसरके कौड़े भी इसके पत्रपर पलते हैं। दौली और खुली रहना चाहिये। खाद डालकर भावप्रकाशके मतसे यह अन, कषाय तथा र्वषत् फूट।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/११४
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