पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 4.djvu/११३

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1 कर्कटकरज्जु -कर्कटाह टेढ़ा रहता है। . ७ इक्षुभेद, किसी किसको कख।। मोम के नामसे विलायत भी बिकनेको भेजा जाता है। ८ इक्षु, जख। कोठामलक, जङ्गली आंवला। इसका दुग्ध पति तीक्ष्ण होता है। फच एक बाजार १० सनिपातन्वर विशेष, एक वुखार । यह मध्यहोन चीज़ हैं। काश्मीरमें इसे चयरोगपर प्रयोग करते हैं। प्रशुद्ध वातादिसे उत्पन्न होता है। इससे व्यथा, वेपथु, मनुक कर्कटशृङ्गोका वल्कल खाता है। काठ तृष्णा, दाह, गौरव, अग्निमान्य प्रभृति रोग लग जाते खेत, प्रभायुक्त तथा मृदु रहसा, किन्तु अभ्यातरम हैं। फिर अन्तर्दाह और वाक्यनिरोध भी हुवा करता कुछ कष्ण निकलता है। इसका संस्क त पर्याय- है। (भावप्रकाश ) .११ कर्कटशृङ्ग, ककड़ासोंगी। कर्कटाख्या, महाघोषा, शृङ्गो, कुलोरतो, अक्राणी, कर्कटकराज (सं० पु०) रज विशेष, एक रस्मो। कुलिङ्गी, कासनाशिनी, घोषा, वनमूर्धजा, चक्रा, इसमें केकड़ेके पले-जैसी एक कोल लगी रहती है। शिखरी, कर्कटाणा, कर्कटी, विषाणिका, कोलोरा, कर्कटकास्थि (सं० लो०) कुलोरकास्थि, केकड़ेको चन्द्रास्पदा और वाचाना है। यह कषाय एवं तिक खोल। रस, उणवीर्य और कफ, वायु, चय, न्वर, अवं वायु, कर्कटको (सं० स्त्री०).१ कर्कटपृङ्गी, ककड़ामोंगी। कृष्णा, कास, हिका, अरुचि तथा वमिनाशक होती २ कर्कटस्त्री, मादा केकड़ा। है। (राजनि०) कर्कटकान्ति (सं: स्त्री०) निरक्षरेखासे साढ़े तेरह कटा (सं० स्त्री०) १ ककैटशृङ्गो, ककड़ामोंगी। कोस उत्तरस्थित अक्ष-रेखा, खत्त-सरतान् (Tropic रखेखसा। यह एक लता है। इसमें कारवेश सदृश

of cancer )

छुट फल पाते हैं। कर्कटाके फनका शाक बनाया कर्कटचरण (सं. पु) कुचौरकपाद, केकड़े का पैर । जाता है। कर्कटच्छदा (सं० स्त्री॰) । यीतोषा, पीले फूलकी कर्कटाच (सं० पु० ) कर्कट इव पक्षि ग्रन्यिभेदोऽस्य, तरीयो। बहुनौ०। कर्कटिकालता, ककड़ीको बेन्च । कर्कटवनी (सं० स्त्री०) १ गजपिप्पली, बड़ी पीपल। कर्कटाख्य, कर्कटाच देखो। २ शुकथिम्बी, खजोहरा.। .३ अपामार्ग, लटजीरा। कर्कटाख्या (सं० स्त्री० ) कर्कटस्य प्राख्या एव पाख्या कर्कटगृषिका (सं० स्त्री.) कर्कटतस्य' मृङ्गमस्थाः, यस्याः, बहुव्री० । १ कर्कटशृङ्गी, ककड़ासींगो। २ कर्क- कर्कटशृङ्गः स्वार्थ कन्-टाप् इत्वम् । कर्कटको, टिका, ककड़ी। ककड़ासौंगो। ककटाना (सं० स्त्रो०) कर्कटस्य अहं श्रृमिव शृङ्ग- कर्कटशृङ्गी (सं० स्त्री०) कर्कटस्य शृङ्गमिव शृङ्गमन मग्रभागमस्याः, कर्कटाङ्ग-टाप । कर्कटाया देखो। -भागो यस्याः, बहुव्री० । खनामख्यात कर्कटदशा- कर्कटादिलेह ( स० पु.) ले विशेष, एक चटनी। कार ओषधि, ककड़ामोंगी। इसे नेपालीमें रनोवलयो। कर्कटशृङ्गो, प्रतिविषा (अतीस ), शुण्ठी, धातकी और पजाबीमें भरखर कहते हैं। ( Bhus succe (धायके फूल ), विस्व, बालक (बाचा), मुस्त तथा danea) यह वृक्ष कोयी ३० फीट ऊंचा होता है। कोलमन्ना (वैरकी गुठलीको मोंगो) बराबर बराबर हिमालयपर काश्मीरसे सिकिम पौर,भूटानतक ककट- कूटपीस और छानकर मधुके साथ वानकको चटानेसे शृङ्गी मिलती है। यह खसिया-पहाड़ और जापान ज्वर प्रतीसार एवं ग्रहयोरोग दूर हो जाता है। में भी पायी जाती है। जापानमें इसकी डालकी खोदकर रस निकालते हैं। इस रससे रङ्ग (वार्निश) कर्कटास्थि (सं० लो०) कर्कटस्य . अस्थि, ६-तत् । तैयार होता है। फिर फलको कुचल कर एक दूसरे कुलोरका प्रस्थि, केकड़े को खोन्त । फलके साथ उबालते और मोम निकालते हैं। इस ककटा (सं: पु.) कर्कटमाझ्यते अर्धते कडक- मोमको बत्तियां बनती हैं। कभी कभी यह 'जापानी । मयत्वात् ककंट- पाक - विवश, बेलका पेड़। (रसरवाकर) -